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जितना दूध नहीं, उससे कई गुना खोया (मावा) दीपावली पर आ जाता है..?

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खुशी के पल में अगर मिलावट का खेल होता हैं तो खुशियां अधूरी हो जाती हैं एक इंसान अपने रिश्तों में प्यार परोसना चाहता हैं अगर उसी प्यार में धोखा होता हैं तो दिल मायूस हो जाता हैं I लेकिन मिठाइयों में मिलावटखोर थोड़ा ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए आम लोगों की जिंदगियों से खिलवाड़ करते हुए डरते नही हैं और इन्सानयत मानवता को कुछ रुपयों के कारण तार तार कर देते हैं I दीपावली पर नकली मावा और मिठाइयां धड़ल्ले से बनाई भी जाती और खुलेआम बेची भी जाती हैं!  I दीपावली का त्यौहार को देखते हुए नकली मावा बनाने व बेचने वाले सक्रिय हो जाते हैं! दीपावली पर्व पर हजारों क्विंटल मावे की मिठाइयां बनाई जाती हैं औऱ लोग इन मिठाइयों पर विश्वास कर कर अपने दोस्तों रिश्तेदारों व जान पहचान वाले लोगों को खुशी ख़ुशी देने पहुंचते हैं I लेकिन लोगों के सामने यह दिक्कत होती हैं कि नकली मावे की बनाई हुई मिठाई की पहचान कैसे की जाए I ऐसे में जरूरत यह है कि नकली मावे को यहां पहुंचने से पहले संबंधित विभाग के अधिकारियों के द्वारा इस को रोक दिया जाना चाहिए। दीपावली पर मिठाइयों की ज्यादा बिक्री को देखते हुए बाजारों में नकली मावे की खपत बढ़ जाती है I यदि जिम्मेदार अधिकारी उदासीन बने रहे तो यह नकली मावे की मिठाइयां हमारी सेहत तो बिगाड़ती ही हैं साथ बहुत सी बीमारियों को दावत भी दे देती हैं I दीपावली के सीजन में क्षेत्र में बड़ी तादाद में मिठाई की दुकानें लगती हैं और मिठाई की रिकॉर्ड तोड़ बिक्री भी होती है I ऐसे में गाँव देहात व शहरी मोहल्लो व बाहर से आने वाला मावा नकली भी हाे सकता है I जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता हैं! पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि दीपावली के समय में क्षेत्र में नकली मावे की कई फैक्ट्रियां पकड़ी जाती हैं और उससे बनी मिठाइयां भी I पिछले कई वर्षों से नकली मावा बनाने वालों की तादाद बढ़ी है! प्रशासन व सम्बंधित विभाग के आला अधिकारी अभियान चलाकर कार्यवाही तो करते है लेकिन इस व्यापार को रोकने में कामयाब होते दिखाई नहीं देते है I जिलों में जितना दूध नहीं होता उससे कई गुना मावा दीपावली पर कहाँ से आ जाता है? ऐसे में तय है कि यह मावा नकली होता है? रासायनिक तरीके से बना मावा जहर के समान होता है I देश में त्योहारो के आते ही सिंथेटिक मावा खोया बनाने वाले सक्रिय है और खाद्य विभाग की लचर प्रणाली के चलते यह माफिया बाजारों में केमिकलयुक्त सिंथेटिक खोया मावा खपाकर लोगो की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते है I लेकिन जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारियों को ये कोई कैसे समझाए कि लोगो के जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले इन माफियाओं की जो केमिकल का इस्तेमाल करके नकली मिठाइयां बनाते है और बाजारों में खपाते है आखिर ऐसे माफियाओं पर अब तक कार्यवाही न होने की असली वजह क्या है?आखिर सम्भन्धित अधिकारियों के द्वारा हर साल अभियान भी चलाया जाता हैं लेकिन कार्यवाही शून्य ही रहती हैं I कब तक लोगो की जिंदगी से खिलवाड़ होता रहेगा। हर साल दीपावली आते ही खाद्य विभाग नमूना लेने निकल पड़ता है I खानापूर्ति कर ली जाती है, कोई ठोस कदम उठाए बिना ही अभियान का एंड कर दिया जाता है I जनता मावा रूपी जहर खाने का लाइसेंस दे दिया जाता है I

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