US Tariffs : अमेरिकी शुल्क से जूझते भारतीय निर्यातकों को सरकार से जल्द राहत
1 min read

विशेष रिपोर्ट – रवि नाथ दीक्षित
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने और नए अवसरों की तलाश में उल्लेखनीय प्रगति की है। मगर हाल ही में अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50% तक आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने के फैसले ने निर्यातकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस फैसले से खास तौर पर वस्त्र, रत्न-आभूषण, चमड़ा, जूते-चप्पल, इंजीनियरिंग सामान, रसायन, कृषि और समुद्री उत्पाद से जुड़े उद्योग प्रभावित हुए हैं।
अब केंद्र सरकार इस चुनौती को अवसर में बदलने की कोशिश में जुट गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार संकेत दे चुकी है कि जल्द ही एक विशेष राहत पैकेज की घोषणा हो सकती है, जिससे छोटे और मझोले निर्यातकों को तात्कालिक सहारा मिलेगा।
मुश्किलें क्यों बढ़ीं ?
अमेरिका ने भारत से आयातित कई वस्तुओं पर भारी-भरकम शुल्क थोप दिया है। इनमें लगभग 25% शुल्क रूस से कच्चा तेल खरीदने की वजह से दंडस्वरूप लगाया गया है। इसका सीधा असर उन उद्योगों पर पड़ा है, जिनका सबसे बड़ा निर्यात बाजार अमेरिका है।
वस्त्र उद्योग – लाखों श्रमिकों को रोजगार देने वाला यह क्षेत्र अब अमेरिकी बाजार में चीन, वियतनाम और बांग्लादेश से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने लगा है।
रत्न व आभूषण – विदेशी मुद्रा कमाने का प्रमुख स्रोत रहे इस उद्योग की कीमतें अब अमेरिकी ग्राहकों के लिए अपेक्षाकृत महंगी हो गई हैं।
कृषि व समुद्री उत्पाद – पहले से ही अंतरराष्ट्रीय मानकों और नियमों के बोझ तले दबे निर्यातकों पर यह टैरिफ और अतिरिक्त बोझ साबित हुआ है।
सरकार की प्राथमिकताएँ
सूत्रों का कहना है कि सरकार इस राहत पैकेज को तीन मुख्य मोर्चों पर केंद्रित करना चाहती है:-
1. पूंजी संकट दूर करना – घटते ऑर्डर और बढ़ती लागत के बीच छोटे निर्यातक नकदी की कमी से जूझ रहे हैं। आसान ऋण और ब्याज में छूट पर विचार हो रहा है।
2. रोजगार बचाना – टेक्सटाइल और ज्वेलरी जैसे क्षेत्रों में करोड़ों लोगों की रोज़ी-रोटी दांव पर लगी है। सरकार चाहती है कि उत्पादन और रोजगार दोनों सुरक्षित रहें।
3. नए बाजार तलाशना – अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए यूरोप, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और खाड़ी देशों में निर्यात बढ़ाने की योजना है।
कोविड-19 जैसी मदद का खाका
यह राहत पैकेज उसी ढाँचे पर तैयार हो सकता है, जैसा कोविड-19 महामारी के समय एमएसएमई (लघु, छोटे और मझोले उद्यमों) के लिए लाया गया था। उस समय आपातकालीन ऋण गारंटी और विशेष प्रोत्साहन योजनाओं ने उद्योगों को पटरी पर लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। अब निर्यातकों के लिए भी वैसी ही रणनीति अपनाने की तैयारी है।
एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन को गति
बजट में पहले से घोषित निर्यात संवर्धन मिशन (Export Promotion Mission) को अब तेज़ी से लागू करने की कवायद चल रही है। इसके मुख्य उद्देश्य हैं:-
भारत को वैश्विक व्यापार का भरोसेमंद केंद्र बनाना।
उत्पादों की गुणवत्ता व पैकेजिंग को अंतरराष्ट्रीय मानकों तक पहुँचाना।
निर्यातकों को वित्तीय व तकनीकी साधनों से मजबूत करना।
विशेषज्ञों की राय
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह पैकेज सिर्फ तात्कालिक राहत ही नहीं देगा, बल्कि लंबे समय में भारत के निर्यात ढाँचे को और मजबूत बनाएगा।
छोटे निर्यातकों को यह योजना सुरक्षा कवच उपलब्ध कराएगी। विदेशी निवेशकों के लिए यह संदेश जाएगा कि भारत वैश्विक झटकों से निपटने की क्षमता रखता है। इससे भारत की विकसित अर्थव्यवस्था बनने की राह तेज़ होगी।
अमेरिकी टैरिफ भारत के लिए बड़ी चुनौती है, लेकिन केंद्र सरकार इसे केवल संकट के रूप में नहीं देख रही। उसकी रणनीति है कि इस अवसर को उद्योगों को सशक्त बनाने, नए बाजारों तक पहुँच बनाने और वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति और मजबूत करने में बदला जाए। आने वाले दिनों में घोषित होने वाला राहत पैकेज छोटे और मझोले निर्यातकों के लिए उम्मीद की किरण साबित हो सकता है।

