एक सवाल आदमी से……….
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प्राचीन भी एक युग था जब सभ्यता और शिक्षा कम थी और आम आदमी की जीविका चलाने के लिये वस्तुओं का आदान प्रदान हीमाध्यम था।उस युग में प्रगति कम थी पर पारस्परिक स्नेह और मन की शांति आदि बहुत थी।मन के अंदर छल कपट, निंदा व्यभिचार और संग्रह आदि की सीमा नहीं के बराबर थी।
समय के साथ – साथ हर क्षेत्र में प्रगति की शुरुआत हुयी । आपसी लेन-देन में मुद्रा काप्रयोग होने लगा।वर्तमान समय को हम देखें तो इंसान ने हर क्षेत्र में प्रगति खूब कर रहा है।संसार में कुछ धनाढ़्य व्यक्ति ऐसे भी हैं जिनकी दौलत उसकी आने वाली सौ पीढ़ी भी खर्च नहीं कर सकती। उन लोगों ने धन तो खूब अर्जित कर लिया और आगे भी कर रहे हैं।पर उनकी मानसिक शांति बहुत दूर – दूर जा रही है।
उनके जीवन के हर दिन का हर मिनट किसी ना किसी काम के लिये बँटा हुआ है।वोचाह कर भी अपना थोड़ा समय अपने मन की शांति के लिये नहीं निकाल सकता।क्या धन दौलत ही जीवन है।मान लिया कि जब इंसान प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है तो वो फिर पीछे कभी लोट नहीं सकता।
वो दो कदम और आगे बढ़ने की सोचेगा तब ही कुछ और प्रगतिकर पायेगा। परन्तु यह भी बात सत्य है कि हर अविष्कार के पीछे कुछ ना कुछ नुक़सान ज़रूर होता है।जैसे परमाणु बम का अविष्कार,मोटर वाहन का प्रयोग,घर में हर काम मशीन से करना और जिस फेक्टरी में हज़ारों वर्कर क़ार्य करते थे उसमें कम्प्यूटर युग ने कुछ लोगों तक सीमित कर दिया आदि – आदि ।
हम देखते है कि ब्रह्मांड में भी सूरज, चाँद, सितारे, पृथ्वी, सागर और आकाश ये सारेअपनी सीमाओं को कभी नहीं लाँघते हैं । तो हम मनुष्य कैसे मर्यादाहीन चिन्तन विहीन आदि बन इधर से उधर और उधर से इधर अपनीसीमाओं को फाँदते हैं।क्यों अनचाही बीमारियों व समस्या आदि को जानते हुए निमंत्रण दे रहे है ।
इसलिये इंसान को अपनी मन कीशांति रखनी है तो वो उस इंसान के ऊपर निर्भर करता है कि मुझे अपनी लाइफ़ को बेलेंस कैसे बनानी है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ राजस्थान)