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सही औषधि, स्वस्थ रहने की विधि…..

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प्रकृति की उदारता हमें सदैव निःशुल्क प्राप्त हुई है ।जो हमारे जीवन का आधार बनी है । लेकिन उसकी उदारता का मानव ने दुरुपयोग करते हुए दोहन, शोषण प्रारंभ कर दिया ये चिंतनीय है । आखिर मानव स्वाभाव इतना स्वार्थी क्यों प्रकृति को यदि हम संरक्षण और संवर्धन नहीं दे सकते तो उसके दोहन से दूर रहना चाहिए । जंगल है तो प्राण वायु है । बादल है पानी है जो हमारे जीवन का आधार है । हो नित आसन, व्यायाम और प्राणायाम ।

शरीर है संसार सागर से तारने की नौका। नौका को मजबूत बनाने का छोडना नही चाहिए कोई भी मौका। आसन, व्यायाम और प्राणायाम से कर लो वायदा। प्रतिदिन करने से होगा इनसे फायदा। दिल और दिमाग बन सशक्त पतवार ।शरीर के सभी अंग बने सक्रिय। स्वस्थ तन और मन से ही आत्मा रा कारज सरै। आसन, व्यायाम और प्राणायाम को अपनी दिनचर्या मे अवश्य जोडे। अष्टांग योग मे है इनका महत्वपूर्ण स्थान। आसन से करे स्थिर तन। व्यायाम से शरीर के हर अंग बने तंदुरुस्त।

प्राणायाम से सध जाये श्वास। इन तीनो का नियमित करे अभ्यास। स्वतः घटित होने लगेगा ध्यान। शरीर रुपी नैया से आत्मा बन नाविक, कर लेगी संसार पार। आसन, व्यायाम और प्राणायाम मे शक्ति अपरम्पार। जीवन जीने की कला है सबसे बड़ी आर्ट। इसकी क्लासेस चलती है आज ।धन के साथ न छोड़े आसन, प्राणायाम साथ ही दिनचर्या में जुड़ जाए ध्यान। अनिद्रा, भोजन सम्बन्धी दोष जायेंगे भाग ।पहला सुख निरोगी काया ।
प्रसन्न मन और स्वस्थ तन सबको भाया ।

प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़, राजस्थान)

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