विषय आमंत्रित रचना – जीवन का विकास
1 min readहर जन्म लेने वाला मनुष्य विकास करता है । जब समझ आने लग जाती है तब मानव अपने चिन्तन से अपनी प्रतिभा का विकास करते हुए जीवन को विकसित करने लग जाता है । सतर्कता और बुद्धिमता जीवन के विकास में सफलता के लिए बहुत जरूरी है। इसके सही से सिंहावलोकन के बिना बात कुछ-कुछ अधूरी है।
यह गणित पहले भी था , आज भी है ,और कल भी रहेगा । सच मानिए ये सभी बातें जीवन के विकास के पहिए की धूरी है। सोच-समझ कर संभल-संभल कर हम अपने जीवन विकास के कदम उठायें । सतर्कता से ही सार्थक हमारा जीवन होता हैं । अभिज्ञान काम का तभी जब वो जागरुकता का करे वरण ।
क्यों कि चेतन मन ही जीवन विकास में सही दिशा प्रदान कर सकता है व ग़लत दिशा में उठे चरण को वही रोक देता है । जीवन में संबल हैं ,सहारा हैं , विश्वास हैं , नाद है , साहस का संचार है , उँचा मनोबल है । वह संकल्प से जागता है इसके विकास से सहिष्णु होता है । ध्येय पूर्ति की लगन-संकट झेल पाता है । स्थिरचित्त होता है वही जितेंद्रिय संकल्प के पार पहुँचता है ।
जितने भी महापुरुष हुए है उनकी कामयाबी की चमक लोगों को दिखाई देती है उसने कितने अंधेरे देखे है यह कोई नही जानता है । मनोबल रहेगा हमेशा तु और भी इम्तिहान ले ज़िंदगी के हमारे हौसलों की स्याही अब भी बाक़ी है । मनुष्य ने अपनी तार्किकबुद्धि का विकास तो बहुत कर लिया है लेकिन भावनात्मक विकास में उतना ही पिछड़ा है । जो कुछ हुआ वो सब पहले से मनुष्य जानता था की कभी तो इस अति का दुष्परिणाम सामने आएगा ही लेकिन कब का नहीं ।
इसलिये मनुष्य जीवन के विकास में सही से सन्तुलन बनाकर चले ।स्वाभाविक प्रकृति के साथ कभी छेड छाड़ न करें । अपनी सीमाओं का उल्लंघन न करें ये जरूरी होता है । लेकिन मनुष्य ऐसा जीव है जो जब तक परिस्थितयां सामने न आये अपनी मनमानी करने से डरता नहीं।यही हमारे दैनिक जीवन की दिनचर्या से भी सम्बंधित है ।
हम में से बहुत कम अपने विवेक की छलनी से अपनी बुद्धि और भावों का सही से सन्तुलन बिठा जीवन का विकास कर पाते हैं।इसलिये बहुत जरूरी है हम अपने बुद्धि का सदुपयोग जीवन के विकास में करें न कि अहंकार में आकर उसका दुरुपयोग।बुद्धिमान तो बहुत मिलेंगे लेकिन संवेगों पर नियंत्रण करके शांतिमय जीवन जीने वाले बहुत कम बिरले मिलते है । हम अपने संवेगों पर नियंत्रण करना सीख जाएं तो कोई भी परिस्थिति हमें कभी भी विचलित नहीं कर सकती है ।
मनोबल बढ़ने से शारीरिक बीमारी व कर्म योग वाली परिस्थिति आदि भी नकारात्मक प्रभाव शरीर पर डालने में कारगर नहीं हो सकती है ।ये मेरा अपना जीवन विकास का अनुभव है जो मैं बता रहा हूँ । धर्म की शाखा जीवन के विकास में सदैव हरी भरी रहती है । जहां विकट स्थिति तो क्या ऐसी कोई चुनौती आ जायें तो भी हम हमारे भावों के सन्तुलन को शांत कर सकते है ।
मनुष्य के मस्तिष्क में वो सारी अनंत शक्ति है जो उसका सदुपयोग करके जीवन में विकास करते हुए अपनी आत्मा की मुक्ति के राह पर आगे बढ़ते हुए अपना सही से आत्मकल्याण कर सकता है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ ,राजस्थान )