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जीवन में अध्यात्म की बातें….

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कुछ भी तो नहीं शाश्वत

जीवन क्षणभंगूर हैं, शरीर अनित्य है आत्मा शाश्वत। हमारी सोच-हमारा दृष्टिकोण सही दिशा में होने से अन्यो के लिए प्रेरणा एवं आनंददायक भी हो सकती हैं ।जब व्यक्ति का चिंतन सकारात्मक होता है। स्व के प्रति,शरीर के प्रति, स्वास्थ्य के प्रति,परिवार के प्रति,व्यवसाय के प्रति,कर्म के प्रति तब उसका पुरुषार्थ,कर्म,व्यवहार सफलता के साथ निश्चित ही साथ देता है। क्या देखना है, क्या देख रहे है ।

शरीर और आत्मा का यह सम्वाद ।आत्मा और शरीर के बीच चल रही वार्तालाप , कान लगाकर ,ध्यान से सभी सुने आज ।आत्मा- मैं सबको देखता,पर सदा प्रसन्न रहता । शरीर- क्या आप मुझे भी देखते है ? आत्मा-हाँ, तुम जो करते हो उसे जानता व देखता हूँ। शरीर- मैं जो देखता हूँ उसका परिणाम कभी खुशी कभी गम है।मेरा देखना तो मात्र उलझन है ।आत्मा-शरीर क्या तुमने मुझे कभी देखा ?शरीर-राग और द्वेष है मेरी दो आंखे और उनकी नज़र है बाहर।
आत्मा-मैं तो बाहर-भीतर दोनो को देखता हूँ ।

फिर भी सदा रहता हंसता । शरीर-मुझे भी प्रसन्न रहने का बताए राज । आत्मा- क्या देखना है ,क्या देख रहे हो ,अपने-आप से करो ये चिन्तन। शरीर-समझ गया हूँ कि तुम बिन मैं नही हूँ कुछ। जो आत्मा को देखता वही रह सकता खुश ।आत्मा- शरीर अब तुम लगाओ अनासक्ति का चश्मा और श्वास पर टिके नजर। शरीर- धन्यवाद आत्मा तुमने दिखा दी मुझे सही राह। अब मैं जान गया कि मुझे देखना है वही जिसकी अन्तिम मंजिल है सिर्फ और सिर्फ प्रसन्नता । क्योंकि न हमारे विचार हैं । न संवेदनाओं के आचार हैं ।

न मनोहारी टृश्य हैं । जो आज दीखते हैं सब एक दिन हो जाएँगे क्षण में अदृश्य। कीट, पतंगे, पशु, पक्षी और मनुष्य ये सब कोई आज, कोई कल है जो हो ही जायेंगे एक-एक कर अदृश्य कर पूरा अपना-अपना आयुष्य। तभी तो कहा हैं की कुछ भी तो नहीं शाश्वत ।

 क्यों देखें हम किसके पास क्या है

किसी भी कार्य की जन्म स्थली होती है मन की कल्पना।हमारे मन में ना जाने कितनी कल्पनायें बनती है और ख़त्म होती है।उन्हीं में से एक़ाद कल्पना मन में स्थिर होती है और फिर उसके ऊपर चलता है चिंतन-मंथन। कोई भी नया कार्य को सफलता पाने के लिये उसकल्पना के बारे में दिन रात चिंतन मंथन करते रहो और जंहा कमियाँ लगे उसे सुधारते रहो।धीरे धीरे वो प्रयास एक सकारात्मक रूपलेकर हमारे सामने प्रस्तुत होता है।

यह सही बात है कि कुछ सोचेंगे तो ही कुछ नया करेंगे।अगर सोचेंगे ही नहीं तो क्या करेंगे। सफलता और प्रसन्नता दोनो स्वयं के हाथ मेंहैं । जब हम यह महसूस कर ले की मैं जो कर रहा हुँ वो काम कितना अच्छा है । अगर कार्य के संपादन में ख़ुशी है और यह समझ नहींरहे है तो सफलता और प्रसन्नता नहीं मिलेगी क्यूँकि अपनी हालत तो ये है की – कहीं पे निगाहे कही पे निशाना या यूँ कहे की परायीथाली में घी चोको लागे। पड़ोसी के पास तो कितनी सुंदर कोठी है। वो पीछे वाली गली में जो श्रेष्ठी हैं सुना हैं उनकी बैंक में जमा रकमखासा मोटी है ।

फलाँ कितना भाग्यशाली है कि उसका बेटा लंदन में पढ़ता है । उसका दूसरा बेटा मर्सिडीज में चढ़ता है। आदि-आदि दूसरों के पास क्या है यह हम क्यों देखे क्योंकि इसका कोई अन्त नहीं है । अगर इसकी जगह पेड़ की जड़ो की तरह अपने कार्य , लक्ष्यपे अडिग रहकर चले तो सफलता और प्रसन्नता दूर नहीं हैं । जो व्यक्ति सृजनात्मक रचनात्मक कार्य में लग जाते है उन्हे दूसरों की बुराईऔर दोष देखने का वक्त नहीं मिलता हैं ।

आचार्य तुलसी ने जो सपना संजोया वह विशाल धर्मसंघ की गरिमा को शत गुणित करनेवालाबना ।मन में गुंथी हुई सार्थक दिवास्वपन जीवन जीने की भव्यतम कल्पना का साकार रूप बनती है और वही हमारे सृजनशीलता में यथोचित रंग भरते है । वाल्ट डीजनी को अखबार संपादक ने यह कहकर निकाल दिया की उनके पास कल्पना और नए विचार नहीं ।वही आज वह दुनिया का बेस्ट कार्टून क्रियेटर है । तभी तो कहा है की मानव की कल्पना समग्र विश्व को भायी है । अद्भुत जिनका चिंतनउनकी ज्योति जगमगायी हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़,राजस्थान ) 

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