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बड़े गौर से सुन रहा था जमाना,हमीं सो गए दास्तां कहते कहते….

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अमेठी। बड़े गौर से सुन रहा था जमाना,हमीं सो गए दास्तां कहते कहते। किसी शायर की यह पंक्तियां आज विश्व यात्री डॉ कामता कमलेश के लिए चरितार्थ साबित हो रही हैं।दुनिया के विभिन्न देशों में भ्रमण करने के बाद अपनी अंतिम यात्रा के लिए गए मातृ भूमि अमेठी पहुंचे।जहां से रविवार की शाम संसार को विदा कह कर अनन्त यात्रा पर अग्रसर हो गए।

सोमवार को आखिरी बिदाई देने के लिये निवास चाणक्यपुरी में लोगों का तांता लगा रहा।डॉ कामता कमलेश का जन्म 10 जनवरी 1939 में क्षेत्र के कुड़वा डालव गांव में हुआ था।कालांतर में अमेठी नगर चाणक्यपुरी मोहल्ले में घर बना कर वे रहने लगे।हिंदी के बारे में कहा जाता है कि हिंदी की बिंदी भी चमकती है और यहां कुछ भी मूक नहीं है। हर अक्षर हर व्यंजन हर मात्रा बोलती है ।

इसी कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है अमरोहा के जेएस हिंदू डिग्री कॉलेज के पूर्व हिंदी प्रोफेसर , विभाग अध्यक्ष डॉ कामता कमलेश ने जिन्होंने एक छोटे से शहर अमेठी  की धरती पर जन्म तो  लिया पर हिंदी के दम पर विश्व के कोने कोने में न केवल हिंदी को पहुंचाया बल्कि देश का नाम भी  ऊंचा किया। 45 वर्षों तक हिंदी की सेवा अपने अध्यापन  , लेखन से करते रहे। 500 लेख राष्ट्रीय , अंतर्राष्ट्रीय पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। 70 से अधिक वार्ताएं आकाशवाणी से प्रसारित हो चुकी हैं।

18 पुस्तकें लिखी हैं जोकि  बाल साहित्य कथा साहित्य उपन्यास हिंदी का व्यावहारिक ज्ञान विश्व हिंदी की यात्रा आदि विषयों पर आधारित  हैं। 35 शोधार्थियों ने हिंदी साहित्य पर शोध किया जिसमें देश , विदेशी दोनों प्रकार के छात्र शामिल हैं। विश्व हिंदी सम्मेलनों में प्रतिभागी होने के साथ-साथ उन्होंने विदेशों के कई विश्वविद्यालयों में अपने व्याख्यान भी दिए। 2 वर्षों तक वे दक्षिण अमेरिका के विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में भी कार्यरत रहे।

डॉ कमलेश का मानना रहा हिंदी की सार्वभौमिकता वैज्ञानिकता सहजता उसको स्वयं ही  वैश्विक पटल पर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करती हैं । यही कारण है कि विदेशों में भी हिंदी का  मान  – सम्मान है और लोग उसके अध्ययन की ओर आकर्षित हो रहे हैं।  हिंदी मात्र एक भाषा नहीं है  बल्कि हृदय के उद्गारों की भाषा है इसीलिए हृदय के  निकट है।

सेवानिवृत होने के बाद भी डॉ कमलेश हिंदी की सेवा निरंतर अपनी लेखनी से करते रहे।रविवार की शाम मां सरस्वती के इस सपूत ने आखिरी सांस ली। सोमवार को अंतिम संस्कार के लिए उन्हें गोमती नदी के तट पर सुल्तानपुर ले जाया गया। वे अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ कर गये हैं पत्नी शांति देवी पुत्री जयश्री बरौनिया राज्यश्री जायसवाल कविश्री जायसवाल इला जायसवाल हैं।

अंतिम बिदाई यात्रा में अवधी साहित्य संस्थान अमेठी अध्यक्ष डॉ अर्जुन पाण्डेय ,चंद्र श्री,मुकुल,कमल श्रीकांत सोनल, आदित्य , हर्षा सिंधुजा, श्रेयांश , अनन्या, दिव्यांशु, महक, सुहास, कमल किशोर, अरविंद मोहन, चिंतामणि, सिद्धार्थ अनिल कुमार, राजेश, राधेश्याम, मूलचंद,शिवलाल, अरविंद जायसवाल, हिमांशु जायसवाल, शिवम्, राजकुमार जायसवाल, रामप्रकाश, अशोक, शिवकुमार आदि शामिल रहे।

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