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आध्यात्मिक की बातें….

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सुख और दुःख

सुख और दुःख जीवन के दो पहिये है । सुख है कभी तो कभी दुःख है । उतार , चढ़ाव , ऊँच – नीच , कथनी – करनी आदि – आदि हमारे जीवन के साथ जुड़े हुए पहलू है । सुख दुःख का कर्ता और कोई नहीं है करने वाली हैं सिर्फ और सिर्फ हमारी आत्मा ।

सुख संध्या का लाल क्षितिज है जिसके पश्चात कर्म अनुसार जैसे हो जरुरी नहीं है की हो ही परन्तु क्षणिक सुख के बाद घनघोर अंधकार आता हैं और दुःख प्रातः काल की लालिमा हैं जिसके पश्चात प्रकाश ही प्रकाश हैं । सोच से ही सुख भी मिलें और सोच से ही दुखः भी मिलें । अगर सोच सही से सकारात्मक कार्य हो तो कर्म भी सुकर्म होंगे और अगर सोच हमारी नकारात्मक हो तो कर्म भी हमारे बुरे कर्म होंगे इसलिए हम सदैव अपने सोच व कर्म को सकारात्मक रखें।

अग्नि चाहे दीपक की हो या चिराग की हो अथवा मोमबत्ती की लौ से हो इसके सिर्फ और सिर्फ दो ही कार्य है जलना और प्रकाश करना । यह हमारे अपने विवेक के ऊपर निर्भर करता है कि हम इसका कहाँ , कैसे , कब आदि उपयोग करें ।यही लौ मनुष्य के शरीर को शांत भी कर देती है । यही लौ अन्धकार को दूर कर सम्पूर्ण जगत को प्रकाशमय कर देती है । अतः यह हमारे चिन्तन की बात है वह उपयोग करने के ऊपर निर्भर है की उसी वस्तु से हम पुण्यार्जन कर सकते है तो थोड़ी चुक होने पर पापार्जन भी कर सकते है।

गरीब कुछ नहीं होते हुए भी मेहनत से दो वक्त की रोटी खाकर चैन की नींद से सोता है इसके विपरित अमीर सब कुछ होते हुए भी चैन की नींद नहीं सोता है । इसलिये आध्यात्मिक दृष्टि से
सुख और दुःख मानसिकता व कर्मों का खेल है  I

कार्य-कौशल का फॉर्मूला

कार्य करने की कुशलता का सही फॉर्मूला जीवन में कोई भी कार्य करे वह सही नीति सही योजना से करे व उसका सही से
क्रियान्वयन करे । संस्कार ग्रहण करना अपनी क्षमता पर आधारित है क्योंकि संस्कार दिए नही जाते लिए जाते है।

एक माँ अपनी हर संतान को समान रूप से परवरिश देती है यह उनके बुद्धि कौशल एवं निर्णय पर आधार उनकी दिशा तय करती है | भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उकसा कर लाखों आदमियों को महाभारत के युद्ध में मरवा दिया-ख़ून की नदियाँ,लाशें ढा दी पर अर्जुन के कर्म बँधे नही | क्योंकि अर्जुन के मनोभाव पवित्र थे |पाप का विनाश और धर्म की स्थापना उद्देश्य था।

दुनिया का भिखारी भी यदि दिल का धनी तो वह बादशाह गिना जाएगा उसके कर्म किस नियत से किए जा रहे है वह दर्ज होगा। सद्दभाव से फाँसी लगानेवाला जल्लाद भी पुण्यात्मा गिना जा सकता है। सीप की क़ीमत कुछ नही मोल तो मोती का है। अपने प्रमाणिक कार्य के प्रति सही से आत्मविश्वास जगाओ।

दैनिक कर्म में निमग्न हो जाओ कि मेरे अंदर अपनी कार्य-योजना की है पूरी श्रद्धा-भक्ति एवं इसे पूर्ण करने की शक्ति।तब अपने प्रस्तावित काम का जो स्वप्न सजाया है उसके क्रियान्विती की सही से चिन्तनपूर्वक व्यवस्थित योजना बना लें। उसमें दृढ़ निश्चय का मसाला मिला लें। और सुनियोजित विधिपूर्वक उसकी सही से क्रियान्विती के लिए आगे बढ़ जाएँ। यही कार्य-कौशल का सही फॉर्मूला है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान )

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