मानव की आध्यात्मिक जीवन शैली
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अनर्गल को कर दें सुना अनसुना
मैंने देखा है की कइयो की आदत हो गई है अनर्गल बोलने की ।
मुझे दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराज जी स्वामी (श्री डूंगरगढ़ ) ने बोरावड़ में कितनी – कितनी बार कहा की प्रदीप
सामने वाले का गलत बोलने का जवाब वापिस प्रतिक्रिया से नहीं देकर मौन रहकर भी दिया जा सकता है । मैंने कहा उस समय मुनिवर यह बहुत मुश्किल है तो मुनिवर ने कहा असम्भव भी नहीं है जिन्दगी में तुमको मेरे द्वारा बताये हुए लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये बहुत कुछ आगे बढ़ना है । तब बात की गहराई मैंने समझी । इसको मैं ऐसे कहूँ की भीतर में कुछ बाहर में कुछ रखते है या अन्य अपने स्वार्थ सिद्धि आदि कारण से अनर्गल बोल देते है । विद्वत बताते हैं कि वाणी हमारे मुख से निकले तो अच्छी निकले । वह बोलने से पहले वक्ता मन ही मन शब्दों को इन तीन बटखरों से तोले सत्य, मृदु और आवश्यक। यानी कभी असत्य न बोले ।कटु वचनों से जबान न खोले । और अनर्गल, अनावश्यक बात से अपनी दूरी रख ले। तब सम्भाषण हमारा होगा सार्थ। विपरीत इसके कोई भी अनियन्तरित उच्चरण कर देते हैं अनर्थ। प्रकृति ने इंसान को तेज दिमाग दिया है। दिमाग ही मनुष्य के कार्यकलापों का केंद्र है।जैसे मशीन में समय समय पर तेल लगाकर रखा जाए तो वह मशीन बहुत अच्छी चलती है । यदि उसको काम में नहीं ली जाए तो जंग लग जाती है । उसी तरह दिमाग को व्यस्त रखा जाए तो सक्रिय रहता है । यदि दिमाग खाली हो तो सबसे पहले उसमें नकारात्मक सोच आएगी और अनर्गल बातें सोचने में ही अपना समय बर्बाद कर लेंगे। सकारात्मक सोच , विवेक, अच्छे विचार दिमाग में रहेंगे तो कोई भी कार्य श्रेष्ठ होगा। अतः यह तय कर लें कि हम सदा अपनी मौज से जिएँगे।किसी की भी अनर्गल बकवास से अपने मन को विचलित नहीं होंने देगें।
कुदरत की निःशुल्क भेंट
मैंने महसूस किया अपने जीवन में की जिस वस्तु के पैसे नहीं लगते है उसकी उपयोगिता को हम सही से नहीं समझ पाते है । विपरीत जिसके पैसे लगते उसको हम उपयोगी समझते है भले ही निःशुल्क ज्यादा उपयोगी हो तो भी हम शुल्क देकर आने वाली वस्तु को ज्यादा उपयोगी समझते है । यही चिन्तन आज के समय का मानव को सही गलत से दूर कर रहा है । कुदरत ने हमको शुद्ध हवा , पानी आदि निःशुल्क भेंट किए है ।परन्तु दुःख की बात है की जानते बुझते हुए भी हम इसका सही से उपयोग नहीं कर पा है और उलटा इसको हमने अपने स्वार्थों से दूषित और कर रहे है । इसके इन प्रभाव से हमको नाना प्रकार की बीमारियाँ व रोग आदि उत्पन्न हो रहे है । अद्भुत उदाहरण प्रकृति का है जो हमें सिर्फ और सिर्फ देना सिखाती है । बिना किसी स्वार्थ के सिर्फ बांटना सिखाती है । बिल्कुल मॉं की तरह जो सदा से ही अपने बच्चों को निस्वार्थ प्रेम से देना ही जानती है।जल हमें हर परिस्थिति में ढलना और बाहरी बाधाओं को पार करना सिखाती है ।वायु हमें गतिशील रहना सिखाती है ।पृथ्वी हमें धैर्य रखने और दृढ़ता के शिक्षा देती है।आग हमें स्वयं में जलकर उष्मा व ऊर्जा प्रदान करने की सीख देती है। आकाश हमें अनंत विस्तार की संभावनाओं के सीख देती है। एकमात्र मनुष्य है जो अपनी इच्छा पूर्ति के लिए स्वार्थ आदि के लिए अक्षम्य अपराध कर रहा है । मिथ्याभिमान में खोद कर हृदय धरा का कर रहा है अपना ही नुकसान। ईश्वर का अनुदान समझ कर कुदरत की इस निःशुल्क भेंट का महत्व समझकर जियो और जीने दो को अपनाना है वह भी बिना किसी का नहीं करके नुकसान।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ , राजस्थान )