परमात्मा से जुड़कर मानवीय गुणों से युक्त जीवन जियें
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समालखा, हरियाणा I ‘‘परमात्मा को प्रतिपल स्मरण करते हुए मानवीय गुणों से युक्त जीवन जियें’’ उक्त उद्गार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने समालखा (हरियाणा) में आयोजित 75वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में 18 नवंबर को सत्संग के मुख्य सत्र में उपस्थित विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।
सत्गुरु माता जी ने आगे प्रतिपादन किया कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के उपरान्त जब संत विवेकपूर्ण जीवन जीते हैं तभी वास्तविक रूप में वह वंदनीय कहलाते हैं। फिर वह पूरे संसार के लिए उपयोगी सिद्ध हो जाते हैं। ऐसे संत महात्मा ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति का स्वरूप बन जाते हैं और अपने प्रकाशमय जीवन से समाज में व्याप्त भ्रम-भ्रांतियों के अंधकार से मुक्ति प्रदान करते हैं। ज्ञान के दिव्य चक्षु से संत महात्माओं को संसार का हर एक प्राणी उत्तम एवं श्रेष्ठ दिखाई देता है और समदृष्टि के भाव को अपनाते हुए हृदय में किसी के प्रति नकारात्मक भाव उत्पन्न नहीं होता।
जीवन की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए सत्गुरु माता जी ने कहा कि जीवन का हर एक क्षण अमूल्य है जिसे व्यर्थ में न गंवाकर उसका सदुपयोग करते हुए सकारात्मक भावों से युक्त जीवन जीयें। अपने परिवार एवं समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए एक कदम आगे बढ़कर स्वयं का आत्मविश्लेषण करे और अपने आपको और बेहतर बनायें। हम जहां अपना जीवन सुखमय करें वहीं दूसरों के जीवन में भी हमारा सकारात्मक योगदान हो। वास्तव में हम एक आध्यात्मिकता से युक्त जीवन जीने के लिए मनुष्य तन में आये हैं इस बात को प्रमाणित करते ‘रूहानियत और इन्सानियत संग संग’ वाला सार्थक जीवन जियें।
मिशन के इतिहास का जिक्र करते हुए सत्गुरु माता जी ने कहा कि सच्चाई का यह दिव्य संदेश युगों युगों से संतों द्वारा दिया जा रहा है जिसका वर्तमान स्वरूप यह मिशन है। संत निरंकारी मिशन केवल एक रातोरात का सफर नहीं अपितु गुरुओं और संत महात्माओं के बरसों बरस के तप-त्याग का ही परिणाम है कि आज इसका इतना विस्तृत स्वरूप दृष्टिगोचर हो रहा है।
ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी को जिसने भी प्राप्त किया उसका जीवन उज्ज्वल होता चला गया। जिस प्रकार सूर्यमुखी का पुष्प सूर्य की ओर ही उन्मुख रहता है उसी प्रकार ब्रह्मज्ञानी संत ज्ञान की दिव्य ज्योति में स्वयं को प्रकाशित रखते हैं और दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनते हैं।
सत्गुरु माता जी ने सभी श्रद्धालुओं को अपना पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए सबके लिए यही मंगल कामना की कि सबका जीवन सत्संग, सेवा, सुमिरण करते हुए निर्मल, स्वच्छ एवं सुंदर रूप में व्यतीत होता चला जायें।
कायरोप्रैक्टिक शिविर
निरंकारी संत समागम की विभिन्न झलकियों में *कायरोप्रैक्टिक शिविर* श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। कायरोप्रैक्टिक थेरेपी के अंतर्गत विशेष रूप में मांसपेशियोें एवं जोड़ों से सम्बन्धित दर्द का उपचार किया जाता है। पिछले करीब 10 वर्षों से निरंकारी सन्त समागम में इस शिविर का आयोजन किया जा रहा है जिसमें प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में लोग उपचार करवाकर लाभान्वित हो रहे हैं।
इस शिविर में विभिन्न देशों से लगभग 55 डॉक्टरों की टीम अपनी निष्काम सेवाओं द्वारा लोगों का उपचार कर रही है जिसमें कनाडा, यूएसए, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी, चीन, ताईवान एवं स्विज़रलैन्ड इत्यादि देशों के विशेषज्ञ डॉक्टरों का समावेश है*। इंडियन कायरोप्रैक्टिक असोसिएशन के अध्यक्ष माननीय जिम्मी नंदा ने इस शिविर में पिछले दो दिनों से मिल रही सफलता पर अति प्रसन्नता व्यक्त की है। जिस गति से श्रद्धालुओं द्वारा इसका लाभ उठाया जा रहा है उसे देखते हुए यही अनुमान लगाया जा रहा है कि पूर्ण समागम के दौरान लगभग 15 हजार लोग इससे लाभ प्राप्त कर सकेंगे। संत निरंकारी चैरिटेबल फाउंडेशन एवं सेवादल के क्रमशः 250 एवं 150 स्वयंसेवक इस शिविर में डॉक्टरों की सहायता कर रहे हैं। प्रवीण श्रीवास्तव ने बताया कि उक्त समागम का आनन्द लेने के लिए एवं अपने सतगुरू के दर्शनों हेतु अमेठी जनपद की छः ब्रांचों करौंदी, परसावां, गौरीगंज, अहुरी, शाहगढ़, जगदीशपुर से हज़ारों की संख्या में पहुंचे हुए हैं।
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