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SPIRITUALITY : आत्म सुख ही सबसे बड़ा सुख है-शांतनु ज़ी महराज

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REPORT BY LOK REPORTER

AMETHI NEWS।

आत्म सुख ही सबसे बड़ा सुख है और वह हमारे भीतर ही है बस हम उसका अनुभव नहीं कर पा रहे हैं। सुख की खान भगवान ही हैं इसलिये उनसे ही नाता जोड़ना होगा’।यह उद्गार सुप्रसिद्ध कथा वाचक आचार्य शांतनु महराज ने जामो क्षेत्र के लालपुर गांव में उत्तर प्रदेश पूर्वांचल बोर्ड के सदस्य विजय विक्रम सिंह के यहाँ चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन की कथा में श्रोताओं को कथा सुनते हुए व्यक्त किए।

आचार्य शांतनु ने  कहा कि राजा परीक्षित नेशुकदेव महराज से पूछा कि मरने वाले मनुष्य को क्या करना चाहिये तो शुकदेव जी ने कहा कि उन्ही गोविन्द के पदकमलों का ध्यान करो गोविन्द ही इस कलिकाल से मुक्ति दे सकते हैं। इसके बाद आचार्य ने सृष्टि की प्रक्रिया की चर्चा करते हुए कहा कि सृष्टि के आदि दम्पति मनु और शतरूपा की रोचक कथा सुनाई। इसके बाद भगवान के वाराह अवतार की कथा सुनाई।

देवहूति मॉ और कर्दम मुनि की कथा सुनाई जिनके यहाँ भगवान कपिल का जन्म हुआ जिन्होनें सांख्य शास्त्र का उपदेश दिया और अपनी माँ देवहूति  को भी उपदेशित किया। जिसे श्रीमद्भागवत में कपिल अध्यायी कहते हैं उन्होंने कहा कि कपिल भगवान कहते हैं कि आत्मा की तृप्ति सांसारिक संसाधनो से नही होती आत्मा की तृप्ति के लिये उसे पूर्ण परमात्मा में लगाना पड़ता है।कथा व्यास ने कहा ऐसे लोगों का संग करो जिनका मन भगवान के चरणों में लगा हो।

सन्तों के लक्षण के बारे में शांतनु जी महराज ने बताया कि जिसके अन्दर धैर्य, करुणा, और सबमें भगवान का दर्शन करता हो वही सन्त है। इसी प्रकार भक्तों के बारे में चर्चा करते हुए कथा व्यास ने कहा कि उत्तम कोटि का भक्त वही है जो कभी भगवान से कुछ नही मांगता इसलिये बस केवल भगवान के चरणों का आश्रय लीजिये इसी में आनंद है।इसके बाद शांतनु जी ने दक्ष प्रजापति और भगवान शंकर और माता सती की कथा सुनाई।

उन्होंने कहा कि दक्ष को बड़ा पद मिलने के कारण उसे अभिमान हो गया और उसने ब्रहमा जी की सभा में भगवान शंकर का अपमान कर दिया इसके बाद भगवान के गणों नें दक्ष को बकरे के मुंह वाला होने का श्राप दे दिया। इसी का बदला लेनें के लिये उसने यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को नहीं बुलाया। परन्तु माता सती शिव जी के मना करनें के बाद भी अपने मायके गयी लेकिन यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देख उन्हें बहुत क्रोध आया और अपने आप को योग की अग्नि में जलाकर स्वयं को राख कर लिया।

सती के दहन को सुनकर भगवान शंकर नें वीरभद्र को प्रकट किया वीरभद्र नें जाकर यज्ञ को विध्वंस करते हुए दक्ष के गर्दन को काटकर यज्ञ कुंड में ही डाल दिया और सम्पूर्ण यज्ञ को नष्ट कर दिया।अन्त में शांतनु जी नें ध्रुव चरित्र सुनाया। ध्रुव की विमाता के दुर्वचनों नें ध्रुव को परमात्मा को प्राप्त करने के लिये मन में लगन लगा दिया।और नारद जी नें आकर भक्त ध्रुव  के वैराग्य की परीक्षा ली।

ध्रुव के परीक्षा में पास होने पर नारद जी नें द्वादश अक्षर का गुरुमन्त्र दिया है और पाँच वर्ष की अवस्था में अत्यन्त कठिन साधना की। और भगवान नें आकर ध्रुव को दर्शन दिया और भगवान के आशीर्वाद से छत्तीस हजार वर्षों के राज्य के बाद अपने ध्रुव लोक को प्रस्थान किया।

इन विशिष्ट जनों की रही उपस्थिति

आज की कथा में विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री शब्द कर्म और ज्ञान की एकरूपता से हिंदुत्व के जागरण और उत्थान के लिए समर्पित परम श्रद्धेय अम्बरीष जी, विधायक गौरीगंज राकेश प्रताप सिंह, करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीर प्रताप सिंह वीरू जी, राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष सनी सिंह जी,ब्लॉक प्रमुख जगदीशपुर राजेश विक्रम सिंह , ब्लॉक प्रमुख तिलोई मुन्ना सिंह, ब्लॉक प्रमुख भादर प्रवीण सिंह , भाजपा अमेठी के वरिष्ठ नेता रविन्द्र सिंह l,भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष कालीबक्स सिंह , भाजपा जिला मंत्री प्रभात शुक्ला जी, जिला पंचायत सदस्य राजेंद्र बहादुर सिंह, पूर्व ब्लॉक प्रमुख सिंहपुर  अमर बहादुर सिंह पूर्व प्रमुख तिलोई, सुंदर लाल जायसवाल मौजूद रहे।

लखनऊ से आये भारत सिंह सचिव मान्यता प्राप्त पत्रकार एसोसिएशन, तिरछी कटारी और भड़ास कालम के लेखक वरिष्ठ पत्रकार अनिल कुमार सिंह, डी डी न्यूज के वरिष्ठ पत्रकार  रामेंद्र सिंह, पूर्व विधायक सरेनी अशोक सिंह के सुपुत्र अविनाश सिंह काकू जी सहित हजारों लोगों ने श्रीमद्भागवत कथा को श्रवण कर जीवन को कृतार्थ किया।

 

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