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फिर दु:ख काहे का…..

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जीवन है इसमें उतार – चढ़ाव आते रहते हैं कभी परिस्थिति हमारे अनुकूल होती है तो कभी परिस्थिति हमारे लिये प्रतिकूल हो सकती है ।जिसने सब परिस्थिति में सम्भाव से अपना जीवन जी लिया उसके दुःख कभी नहीं आता हैं । कहते है कि जो उदित होता है वह निश्चित ही समय आने पर अस्त होता है। इस सच्चाई को सही से आत्मसात करने वाला कभी पस्त नहीं होता है।

सृष्टि का यह शाश्वत नियम जङ, चेतन दोनों पर लागू होता है ।जन्म-मरण के रहस्य को जानने वाला कभी त्रस्त नहीं होता है। बूँद-बूँद से घड़ा भरता है और उसी बूँद से नदी बनती है ।अगर उसकी गहराई में जाओ तो नदी हम्हें जीवन जीने कि बहुत ही अच्छी सीख देती है। जो अपना रास्ता स्वयं बनाती है, प्यासों की प्यास बुझाती है,अपने हृदय में अनेक जीव जंतुओं को पनाह देती है,पर उसके बदले में कोई चाह नहीं और उसका पानीइतना निर्मल होता हैं जैसे किसी महापुरुष का दिल हो।

इसी लिये भगवान भी उसमें वास करते हैं।वो निरंतर गतिमान रहती है जैसे आलस्य का वंहा कोई बहाना ही ना हो।हम उसमें कितनी भी गंदगी डालें पर वो तो अपने सरल मन से हम्हें मीठा और शीतल जल ही प्रदान करती है।फिर एक दिन समुद्र में मिलकर अपना अस्तित्व ही समाप्त कर लेती है।इसलिये हर इंसान को भी नदी से सीख लेनी चाहिये कि चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति आये अडिग रहो| जीवन में छल कपट नहीं सरल बनो,कभी अच्छे क़ार्य करके नाम के पीछे मत भागो,हर समय पर हित की भावना रहे और मन इतना सरल हो जैसे एक छोटे बच्चे का।

कहते हैं ना कि बच्चे के दिल में भगवान का वास होता है क्यों कि उसका मन सरल होता है।और जीवन में सत्कर्म करते करते इस दुनियाँ से विदा हो जाओ। क्योंकि यहाँ न हमाराजीवन रुकता है न मौत रुकती है| इस तथ्य को जो सहर्ष स्वीकार कर लेता है फिर उसको दुःख काहे का होये ।जीवन की हर परिस्थितिमें वह हर्ष मना सकता हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़,राजस्थान)

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