Lok Dastak

Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi.Lok Dastak

विषय आमंत्रित रचना – रिश्तों में मिठास क्यों नही रही…..

1 min read
Spread the love

मैंने मेरे जीवन में अनुभव किया कि मेरे बचपन का समय और अभी के समय में देखते देखते कितना परिवर्तन आ गया है । समय का परिवर्तन तो आया उसके साथ – साथ रिश्तों में मिठास भी खत्म होती जा रही है । वो भी एक युग था जब सभ्यता और शिक्षा कम थीऔर आम आदमी की जीविका चलाने के लिये वस्तुओं का आदान प्रदान ही माध्यम था।

उस युग में प्रगति कम थी पर पारस्परिक स्नेह और मन की शांति बहुत थी। मन के अंदर छल कपट,व्यभिचार और संग्रह की सीमा आदि नहीं के बराबर थी। समय के साथ हर क्षेत्र मेंप्रगति की शुरुआत हुयी।आपसी लेन-देन में मुद्रा का प्रयोग होने लगा।वर्तमान समय को देखें तो इंसान ने हर क्षेत्र में प्रगति तो खूब कररहा है।संसार में कुछ धनाढ़्य व्यक्ति ऐसे भी हैं जिनकी दौलत उसकी आने वाली सौ पीढ़ी भी खर्च नहीं कर सकती।

उन लोगों ने धन तो खूब अर्जित कर लिया और आगे भी कर रहे हैं।पर उनकी मानसिक शांति बहुत दूर जा रही है।उनके जीवन के हर दिन का हर मिनटकिसी ना किसी काम के लिये बँटा हुआ है।वो चाह कर भी अपना थोड़ा समय अपने मन की शांति के लिये नहीं निकाल सकता।क्या धनदौलत ही जीवन है।उतर मिलेगा-नहीं।एक समय था कि व्यक्ति अतिमितव्यता में भी अपने परिवार का लालन-पालन बड़े प्रेम से कर लेता था और अपनी आमदनी में से कुछ पैसे बचा कर अपने बच्चों के लिये गहने और जायदाद भी जोड़ लेता था।वो समय था सादाजीवन उच्च विचार। इंसान बहुत सुखी और खुशहाल था।

बड़ा और भरा पुरा परिवार होने के बावजूद मन में किसी चीज़ की कमी नहींलगती थी।बड़ों के प्रति आदर और पारिवारिक सदस्यों में बहुत प्रेम था। जमाना तो बदला ही पर साथ में इंसान का सोच भी बदल गया।इस आर्थिक उन्नति के पीछे भागते हुये इंसान रिश्तों की मर्यादा भूल गया।आज अख़बार में प्रायः पढ़ने को मिलता है कि अमुक व्यक्ति नेअपने पिता की जायदाद हासिल करने के लिए बाप-बेटे के रिश्ते को तार-तार करते हुये स्वयं को जन्म देने वाले और उसकी परवरिश करने वाले माँ-बाप को एक मिनिट में मौत के घाट उतार देता है।

इसलिये वर्तमान समय को देखते हुये सामाजिक स्तर पर इंसान नेभौतिक सम्पदा ख़ूब इकट्ठा की होगी और करेंगे भी पर उनकी भावनात्मक सोच का स्थर गिरते जा रहा है।जो प्रेम-आदर अपने परिवार मेंबड़ों के प्रति पहले था वो आज कंहा है ? मानव पहले भी थे और अब भी हैं । परिवार रिश्ते पहले भी थे और अब भी हैं । फिर रिश्तों में मिठास क्यों नही ? आज के युग में इंसान का यही सोच होते जा रहा है कि बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया । हर युग मे ऐसीसंवेदनहीन कहानियां कमोबेश रूप मे दुहराई जाती है। इतिहास के रक्त रंजित पन्नों की चीखें चतुराई से छुपाई जाती है।

अकेला वर्तमान ही दोषी नहीं है इन अमानवीय कृत्यो के लिए हमारी मानसिकता भी भटक जाती है जब बात अपने हितों की आती है। अपनों से अपनोंका होता अटूट रिश्ता जो अब हो गया विपरीत बिल्कुल घनघोर घटा ।कहीं दिखावे का प्यार बहता तो कहीं अपना -अपनों से ही लड़ता।रिश्तों की मधुमय मिठास में अब खटास आ गई है । हर ओर एक अंधियारी धुन्ध छा गई है ।खेल -खेल में सीखें हम जीवन के अनमोल गुर ।स्वजनों के बग़ैर नहीं बज सकते विजय के मधुर सुर ।अपनों के साथ से ही बाज़ी होती है चलायमान जो आपसी ताल-मेल से ही होता है हासिल जीत का आसमान ।

यही है ज़िंदगी का भी फ़लसफ़ा ।आत्मीय लोगों का साथ बना रहे तभी है जीवन जीने का मज़ा ।एक और एक सदैव ग्यारह के बराबर हैं । आचार्य तुलसी-महाप्रज्ञ की राम-हनुमान सी जोड़ी आदि – आदि – सूर्य-चंद्र सा साक्षात्कारकराती हैं । बिना डोर पतंग बेकार वैसे ही रिश्ते भी एक दूसरे के सहयोग बिना बेकार है। सपनो को जब मिले हौसलें के सशक्त पंख साकार होना निश्चित हो सहारा सहयोग मिले असंख्य। पेड़ पर फल लगने मे कितनो तत्वॉ का योगदान है।

बीज से लेकर पत्ते और अन्तमे फल।ठीक इसी तरह एक सदस्य से परिवार नही बनता हैं ।सब मिलते है और परिवार बन सामुहिक प्रयत्न जिन्दा रखता है। रिश्तों मेंमिठास रहती हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ राजस्थान)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright ©2022 All rights reserved | For Website Designing and Development call Us:-8920664806
Translate »