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होता वही है जो मंजूरे ‘उसे’ होता है….

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कहते है कि विधि के विधान के आगे कोई कुछ नहीं कर सकता है । होता वही है जो उसे मंजूर होता है । कर्म के आगे किसी का कोई भी जोर नहीं चलता है । मिथ्यात्व के चलते हम अपने साथ होने वाले अच्छे और बुरे के लिए भगवान को जिम्मेदार ठहराते है । जब हमारा दृष्टिकोण सही होता है तब हमें समझ आती है कि हम ही कर्मों के कर्ता है हमारे किये का फल भोग रहे हैं और आगे करने से बचने की कोशिश करेंगे अशुभ कर्म ।

क्योंकि कर्ता आत्मा होती है उसके द्वारा कृत कर्मों से ही हम जन्म मरण व भव – भव के आयुष्य को प्राप्त करते हैं ।मन के होने से ही हम सब जीवों में श्रेष्ठ विवेकशील जीव है मनुष्य। हम अपने मन का सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों करने में सक्षम है सबसे ज्यादा। घोर कर्म कर्ता और क्षय करता सिर्फ मनुष्य ही है। मनोबल मनुष्य का वह साहसिक कार्य है जिससे वह चट्टान जैसे बंधे हुए कर्मों के उदय को समभाव से सहन कर अपना आत्मोद्धार कर लेता है । जैसे सबसे बड़े उदाहरण हमारे सामने गजसुकुमाल मुनि हुए हैं जिन्होंने समभाव से वेदना को सहकर मुक्तिश्री का वरण किया ।

कर्म सदा बलशाली होते भी है और नहीं भी क्योंकि कर्म जब तक उदय में नहीं आते हैं तब तक उनका अस्तित्व बना रहता है । काल के परिपाक होने पर कर्म उदय में आकर हमें पुण्य या पाप के रूप में प्रभावित करते हैं । उससे पहले नहीं तो कर्म जितने बलशाली है उतना ही समय भी बलवान और बलशाली है। अनेकांत दृष्टिकोण से हम समय और कर्म दोनों को मुख्य और गौण रखते हुए हम कह सकते हैं कि कर्म और समय दोनों बलशाली हैं।

अतः हमें हर पल जागरूक रहना चाहिए अप्रमत्त रहना चाहिए। भाव शुद्धि ही भव शुद्धि का हेतु है । हम भी अपना दृढ़ मनोबल बनाये रखते हुए अपने कर्मों को क्षय करने में सफल हो । कभी भी हम यह भ्रम न पालें कि मैं न होता तो क्या होता। इसलिये हम यह समझ लें होता वही है जो मंजूरे उसे’ होता है। ( यानी जो कर्मों का फल होता है) ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान)

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