आमंत्रित विषय रचना -सुखी परिवार
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संसार है एक नादिया इसमें दुःख सुख दो किनारे हैं । न जाने कहाँ जाएँ हम यह बहते धारें हैं । संसार में ये दो ही तत्व हैं ।किए कर्मों का मिलता यहाँ फ़ल है ।पुण्यायी से मिलता है हमे सुख का भोग व पाप कर्म से मिलता दुःख का संजोग । चुप रहना चाहिए । सहना चाहिए । समय पर कहना भी चाहिए । और सही से प्रेम से रहना चाहिए । यह सुखी परिवार (Happy Family) का अमोघ मन्त्र है । सुखी परिवार वह है जो परिस्थितियों के बहाव में कभी भी बहता है । अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होता ।
दुःख और सुख सभी परिस्थितियों से जिसने स्वयं को परे कर लिया वह परिवार कभी भी समस्याग्रस्त और विषादग्रस्त नहीं होता है । इस दुनिया में सारा दुःख और सुख अहंकार और ममकार के धरातल पर होता है । परिवार क्या हुआ ? परिवार व्यक्तियों का वह समूह है जो विवाह और रक्त संबंधो से परस्पर जुड़ा हुआ होता है। जहाँ प्राकृतिक प्रेम, सहानुभूति, परानुभूति, सही से आदर सम्मान आदि भावनाएं होती हैं परस्पर स्वभावतः परिलक्षित।जहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कार संक्रमित और विकसित होते जाते हैं।जहाँ सहजीवन,सह रहन-सहन आदि नैसर्गिक होता है।
हम यह कह सकते हैं की परिवार-व्यवस्था आदिम युग की अनुपम देन है ।जहाँ पारिवारिक सहयोग भावना स्वतः सर्वोपरि मेन होती है। इसीलिए सुख-दुःख सब बंट जाता है । तभी तो वह सुखी व समृद्ध परिवार कहलाता है । निस्वार्थ भावना परिवार की रीढ़ है । सब पारिवारिकजन अपेक्षित है रखें आपस में सब परस्पर सहयोग वृत्ति। प्रथम ईकाई समाज व्यवस्था की परिवार है ।और आदर्श ईकाई को ही समृद्ध व सुखी परिवार हम कह सकते हैं । आदर्श व सुखी परिवार समाज में वरदान है । विपरीत इसके छिन्न-विछिन्न परिवार अभिशाप है आज में। मुखिया का बहुमान सुखी,समृद्ध परिवार का एक लक्षण है ।परस्पर आदर सम्मान वैसे तो सब सदस्यों का भी हो ।कम से कम एक वक्त का तो करे सकल परिवार में संग बैठ कर सह खान-पान। इस तरह संगठन भाव जहाँ होगा वहाँ स्वतः सुख समृद्धि होगी ।
समर्पण भाव बहुत मुख्य सात्विक लक्षण है । पूर्ण सद्भाव सब सदस्यों का परस्पर होता है। परिवार संचालन में सबकी योग्यतानुसार सहर्ष सहभागिता हो । अपनी क्षमतानुसार सब सहयोग को तैयार हों । संसकारों का दृढता से पालन हो बहुत अहम बात है । इस आधुनिकता की अंधी आंधी में भटकान न हो । आधुनिक वातावरण में यह सर्वोच्च प्राथमिकता है । सब सदस्यों को इसकी समुचित चिंता और व्यवस्था रखनी चाहिये । छोटों के प्रति पूर्ण स्नेह भाव बड़ों को रखना चाहिए ।और छोटों का भी कर्तव्य है बड़ो के प्रति सही से समुचित आदरभाव रखें । सास बहू को बेटी समझे और बहू सास को माँ समझे ।
परस्पर ऐसा स्नेह-आदर और अपनत्व जहॉं उस परिवार में होगा सुख-समृद्धि वहाँ कभी कमी नहीं होती है । या ऐसी चर्या होगी जिस परिवार में उससे सुखी परिवार इस संसार में कोई हो भी नहीं सकता है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान)

 
                         
                                 
                                 
                                 
                             
                             
                             
                            