काल करे, सो आज कर, समय बड़ा अमूल्य……
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काल करे। सो आज कर समय बड़ा अमूल्य हैं । हम अपने जीवन में हर पल – हर क्षण को सहज सुन्दर बनाते हुए जीते जाये । प्रायः आदमी यह सोचता है कि अध्यात्म साधना तो बुढापे में करनी होती है । अभी तो करेंगे बस सैर सपाटे और मौज-मस्ती। पर यही सोच तो हमें तरने नही देती संसार सागर की कश्ती ।
सबकुछ जानते हुए भी अनजान बनने की इन्सान की प्रवृति होती है । परिवर्तन स्वाभाविक है जीव और अजीव सब में ।गुण हमेशा साथ रहता है और पर्याय बदलते रहते है हमें दिशा परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है। विवेक से अपने कर्म संस्कारों को खपाकर आत्मलीन होकर अपना भव भ्रमण को सीमित करने की सोचने की ओर अग्रसर होना चाहिए ।
यही हमारा आत्मशुद्धि कालक्ष्य होना चाहिए । अब वन्स मोर एटी फ़ॉर से हम बचे । जीवन को हम गतिमान करने का सदैव प्रयत्न करके ,शक्तिमान समय के काल – भाव के आगे झुके , बाधाओं से कभी हम हार ना माने , दुगने उत्साह से निरन्तर हम बढ़े आगे , कामयाबी के हर साज पर गुनगुनाए, चलते हुए क़दमों की हौसला अफजाई हो। जीवन का काल नहीं है निश्चित फिर क्यों हो हम इससे भयभीत ।रहे सदा अपनी मौज – मस्ती में जिसमें पापों से हो छुट्टी ।
कषायो से हो हमारी मुक्ति। अभय बनने की पी ले ऐसी घुंटी जिससे मौत के आभास को मिल जाये शान्ति ।मानव यह जानता है की कभी भी दगा दे सकता है ये नश्वर तन अपना फिर भी संजोए बैठता हैं बुढ़ापे का सपना। अध्यात्म साधना के लिए उम्र की कोई दरकार नही होती यदि ये होता तो क्या छोटे-बालको की मुनी दीक्षा होती?
तो हम जब जागो तब सवेरा वाली नीति अपनाए । और समय रहते अध्यात्म साधना मे लग जाए ताकि भव भव के बन्धन को कुछ अंशो मे तोड़ पाए। तभी तो कहा है की काल करे सो आज कर
आज करे सो अब । पल में परलै होयेगी बहुरि करेगो कब|
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान)

 
                         
                                 
                                 
                                 
                             
                             
                             
                            