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कुछ आवश्यक सार्थक मेल

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इंसान के आगे बढ़ने की चाह व पिछड़ने का दुःख,पाने की ख़ुशी व खोने का दुःख, बटोरने की अभिलाषा व बिखरने का दुःख,
दिल की आवाज़ दिमाग़ का दुःख आदि तो हैं। तृष्णा की आग लगी है तो तपन रहेगी ही। ढ़लान की दिशा मे जल की धार तो बहेगी ही। जरूरी है परिमाण के कारण का सही से निराकरण
अगर नींव कमजोर है तो दिवार ढ़हेगी ही।। क्योंकि सुख दुःख का स्विच अपने हाथ में है।

ये संतोषसुखप्रमोदमुदितास्तेषां न भिन्ना मुदो, ये तवन्ये धनलोभसंकुलधियस्तेषां न तृष्णा हता।
इत्थं क़स्य कृत: सविधिना ताद्रक पदं संपदा, स्वात्मन्येव समाप्तहेममहिमा मेरुर्न में रोचते। जोलखपति हैं उसे करोडपति बनना है |करोडपति को अरबपति |ऐसे ही तृष्णा वाले को कभी प्रसन्नता की अनुभूति नहीं होती है । एक प्रसंग राजा शहर में प्रजाका हाल जानने निकला |वह एक गरीब बुढिया की झोंपडी के पास रुका और पूछा माता मैं यहाँ का राजा हूँ आपको कुछ चाहिए कमी आदि हो तो सिर्फ मुझे बोलो |शाम ढल चुकी थी |उसने जवाब दिया मेरा आज का खाने का काम हो गया कल की चिंता अभी क्यों करुँ|मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए |

इसे कहते हैं मानव की संतुष्टि |संतोष ही परम सुख व प्रसन्नता का कारण है| भौतिकता के फँसना,बाहरी साधनों की कामना क्षणिक है सुख और शांति ही स्थायी है वह बाहर नही अपितु अपने अंदर है। हम इंसान भी दुःख आता है तो अटक जाते है औऱ सुख आता है तो भटक जाते हैं। बहुत सौदे होते हैं संसार में मगर सुख बेचने वाले और दुःख खरीदने वाले नहीं मिलतें हैं ।तभी तो कहा हैं की बिना विवेक के ज्ञान निरर्थक है । और अंत में बिना भावों के धर्म ध्यान व्यर्थ हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान )

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