होली पर्व……
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होली पर्व पर खोल दो मुक्ति का ताला ।( अन्तरा ) ।
करना और कराना सदगुरू की सही सत्संगत ।
कर्मों के भारीपन से ही आत्मा भटका करती ।
कर्मों के हल्कापन से ही आत्मा भव सागर से तरती ।
होली पर्व पर खोल दो मुक्ति का ताला ।( अन्तरा ) ।
धन का प्रेमी मन का प्रेमी , मोह जाल में फँसता ।
धर्म नाम तो नहीं सुहाता , रूप रंग में बसता ।
दिल में मद ज्वाला , आठ प्रहर ही रहती जलती ।
होली पर्व पर खोल दो मुक्ति का ताला । ( अन्तरा ) ।
निर्मल रख मन को ,भव सागर से तरने को ।
धूल तुल्य पर धन को , आत्म तुल्य जन समझ को ।
कभी भी न होता मतवाला माया की ममता में ।
होली पर्व पर खोल दो मुक्ति का ताला । ( अन्तरा ) ।
हिंसक अर्जुन माली बना अहिंसक सत्संगत से ।
गौरवशाली ही बन पाता सदगुरू की सत्संगत से ।
क्षण में ही धो डाला सचित कर्म कलुष सारा ।
होली पर्व पर खोल दो मुक्ति का ताला । ( अन्तरा ) ।