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मानव जीवन में प्राइवेसी ( निजता )—

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आज हर कोई प्राइवेसी ( निजता ) चाहता है । मैं इसको ऐसे कहूँ की बाहर कुछ और भीतर कुछ में रहते है तो गलत भी नहीं होगा । देखा देखी का चलन भी यही हो गया है की अपने आप में रहना है । निजता किसी व्यक्ति या समूह से अपने या अपने बारे में जानकारी छुपाने या अलग रखने की क्षमता है। इस प्रकार वह व्यक्ति उस जानकारी को अपने अनुसार ही सिर्फ चुनिंदा लोगों से ही व्यक्त करता है। किसे निजी रखें या न रखें, ये काफी हद तक लोगों के संस्कृति पर निर्भर करती है। हालांकि कई ऐसी जानकारी होती हैं, जिसे सभी निजी जानकारी के रूप में मानते हैं। यदि किसी व्यक्ति के लिए कुछ निजी होता है तो उसका अर्थ स्वाभाविक रूप से विशेष या संवेदनशील जानकारी से होता है ।

मेरे सोच से एक दृष्टिकोण से प्राइवेसी ने इतना अधिक पैर पसार लिये है की आदमी की सोच सिर्फ और सिर्फ अपने खुद के परिवार के इर्द – गिर्द तक ही रह गयी है । यह निजता चिन्तन
का विषय है । निजता रखनी भी होती है और रखी भी जाती है काफी जगह जो सही भी है लेकिन निजता का अपने स्वार्थ के हिसाब से उपयोग कर परिवार से दूर होना गलत है । पहले एक जन परिवार में कमाता था तो पूरे परिवार की जिंदगी आराम से कट जाती थी ।आज पति-पत्नी दोनों काम करते हैं परंतु उसमें भी परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है ।

इसका कारण है अहं की भावना, आंतरिक प्राइवेसी, दिखावे की प्रवृत्ति ,मोबाइल आदि में ज्यादा समय व्यतीत करना मेल-जोल कम आदि ने मजबूत रिश्तों को दूर कर दिया है और सब दूसरी दुनिया में रम रहे हैं इन सबसे बचने के लिए शिष्टाचार ,संस्कार, सदाचार , प्यार, त्याग , सम्मान आदि भावनाओं को जीवन में अपनाना जरूरी है ताकि परिवार समाज व देश सुचारू रूप से चले। खुशी पाने की इच्छा तो सबको होती है व हर कोई पाना चाहता है पर दूसरे को खुशी बांटना यह सबसे बड़ा व महान काम है ।हम सदा इस पर चिंतन करें फिर उसका क्रियान्वयन भी हो ।क्योंकि दूसरे के हित का चिंतन ही इस जीवन का सबसे बड़ा व सबसे महत्वपूर्ण आयाम है ।

अपने स्वार्थ के लिए तो पशु भी सब कुछ करते है । महान वे व्यक्ति होते है जो दूसरों की भलाई करने के लिए खुद मरते है । चाहे किसी की खुशी का कारण न बन सको पर किसी के दर्द का मरहम जरूर बनकर देखना शायद उनकी दुआओं से आपके अपने घाव ही भर जाएँ ।अतः खुशी उन्हें नहीं मिलती जो जिंदगी को अपनी शर्तो पर जीते है बल्कि खुशी उन्हे मिलती है जो दूसरों की खुशी के लिए अपनी जिंदगी की शर्तो को बदल देते है । जिसके मन में होता है जीवन को जीने का व अमृत के घूंट पीने का उत्साह वह चुनता है सदा कोई नई व कांटों से भरी कठिन राह । उसे पथरीली व ऊबड़ खाबड़ राह में चलने में भी मजा आता है ।

वह बाधाओं व समस्याओं को भी बड़े धैर्य व प्यार के साथ गले लगाता है । उत्साही के आगे निराशा को हार जाना जरूरी होता है क्योंकि विपरीत परिस्थितियों में भी वह आशा के बीज ही बोता है । ज्ञान है मन और दिमाग का सम्यक उपयोग। जीवन को साकार बनाने का सफल प्रयोग है । निज हित और परहित को सही से समझ कर साधने का संयोग है । ज्ञान से ही धर्म के सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है । नित नये-नये आविष्कारों की उत्पत्ति होती है । चिकित्सा विज्ञान द्वारा मौत को भी चुनौती दी जाती है । ज्ञान के आगे सारी दुनिया शीश झुकाती है ।

ज्ञान की महिमा बड़ी निराली है । पहले आदिनाथ भगवान ने ज्ञान की नीव डाली। जो हमें हर कला में ज्ञान की महिमा दिखाई देती है ।कर्मभूमिज मनुष्य ने ज्ञान को सर्वोच्च स्थान की सर्वोत्कृष्ट यह उपाधि दिलाई है । विनय और सेवा है ज्ञान की शोभा। मृदुता और ऋजुता है ज्ञान की सुन्दरता। इसमें निर्लोभिता और परोपकारिता है असीम शक्ति। सदभावना से सबको सिखाना है ज्ञान की भक्ति। शक्ति में भक्ति साथ मे और सुन्दरता से ज्ञान की शोभा चारो और कीर्ति बिखेरती है । ज्ञान सबसे आगे सर्वोच्च स्थान स्थापित कर देता है ।इसलिये प्राइवेसी हो सही समझ से कार्य आदि में ।

जरूरी है बैटरी चार्ज रखना….

मोबाईल फोन को हम इतना देख समझ रहे है इससे कोई आज के समय में अछूता भी नहीं है । सारी दुनिया को हम देख , समझ ,बात आदि इससे कर सकते है । इसके पिछे सही से चलने का जरूरी है उपकरण वो है बैटरी चार्ज रखना । क्या इसी तरह हमारी जिन्दगी में भी हर दृष्टिकोण से यह आवश्यक नहीं है बैटरी की तरह चार्ज करना स्वयं को । एक घटना प्रसंग एक सम्पन्न व्यवसायी कार में मुम्बई से गोवा जा रहे थे ।

रास्ते में यूँ ही शौक़िया मोबाईल एप में ओशो का व्याख्यान सुन रहे थे । तभी अचानक एक छोटे से गतिअवरोधक के झटके ने तन्द्रा से उनको जगा दिया। उस समय यह एक वाक्य कान में टकराया की जो भी करना है करो अभी। अभी नहीं तो कभी पता नहीं । अवसर मिलेगा सही से कि नहीं फिर कभी जीवन में । यह बात दिमाग़ में चोट कर गई। तत्क्षण भीतर में अंतर्मन में घर कर गई। वह घड़ी नवजागरण की धड़ी बन गई। तुरन्त ड्राइवर को बोले कार की दिशा बदली और सीधे आ गये पुणे। बिना कुछ सोचे बिना कुछ गुणे आदि । और ओशो ध्यान केन्द्र में सीधे प्रवेश ले लिया। पता नहीं क्यों उनको प्रवेश लेते ही मन में एक अजीब सा सन्तोष हुआ।

यह उनके लिए आध्यात्मिकता की तरफ अकस्मात ही टर्निंग प्वाइंट था। यह सब सम्भव हुआ मोबाईल फोन से । तभी तो कहा है की इससे ( स्वयं से ) कितनी भी आप बात कर ले आपकी बैटरी कभी डिस्चार्ज नही होगी बल्कि जितनी बात करेंगे उतनी ही फुल चार्ज होगी ।इस से बात करने के लिए यह सब जगह संसार भर में रोमिग फ्री है । यह नया स्मार्ट फ़ोन हैं Meditation इसलिए थोडा सा ध्यान का स्पर्श तो करके देखिये और साथ में बैटरी चार्ज से अपना मन जोड़ेंगे तो हम पायेंगे की हम भी आत्म सूखो की और गतिमान है।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़,राजस्थान )

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