मानव जीवन में तनाव …
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इस व्यस्त जीवन की आपा धापी में जो तनाव ग्रस्त नही होकर
अपने मन पर विवेक की लगाम हाथ में रखता है वह हजारों माईल चलकर भी कभी नहीं थकता है ।क्योंकि वह इस जीवन
की हर चाल को बड़े गौर से निरख कर इस जीवन की हर
सच्चाई को जागरुकता के साथ परखता है । जो जीवन के इस प्रांगण में उभर रही हर शिकायत को नजरंदाज करना जान लेता है वह तनाव मुक्त रहकर जीने की हर कला को पहचान लेता है।
तुम वाधाओं का सामना करके आने वाली हर वाधा के सीने को
अपनी बहादुरी से चीर डालो । और उसी कंकरीले पथ में से
हाई वे तक पहुंचने का कोई अकल्पित नया मार्ग निकालो । बचपन बीत गया मौज मस्ती में और यौवन व्यवसाय परस्ती में ।
बुढ़ापे में हो गया शक्ति का अभाव तब तुम्हीं बताओ कब घटेगा तनाव और कब जागेगा भक्ति का भाव । आकांक्षाओ मे हो विवेक कहावत है यह प्रसिद्ध जितनी चादर, उतना ही पैर पसारे।
वरना, चादर रह जायेगी छोटी, पैरो को बाहर निकलना होगा बिन चादर। विवेक कहता- पैरो को रखो समेट कर। आकांक्षाओ पर भी रोक लगाए इस हद तक। कोई भी तनाव न रहे सिर पर।हमें सहजता से जो मिले उसमे रहे सन्तोष। सन्तोष धन ही तो है अधिक सबसे अनमोल। जो चला गया उसे भूल जाओ बेकार के विवाद से मन को मत सताओ ।चिंता व तनाव से कुछ नहीं मिलने वाला कब इसने समाधान का मार्ग निकाला।जो बीत गया वह तो रीत गया ।अब खोजना है कोई मार्ग नया ।न अतीत की चिंता, न भावी का चिंतन,तभी बन पाएगा निर्भीक यह मन आंगन ।
भगवान महावीर के पास गौतम आए तो अहंकार से थे, परंतु भगवान को देखते ही पूरी तरह समर्पित हो गए, झुक गए। झुक गए तो महान् हो गए, अरहंत हो गए ।और गौशालक अहंकार के कारण झुक नहीं पाया तो अन्त तक कुछ भी नहीं पाया ।मीरा कृष्ण के प्रति इतनी झुक गई कि कृष्ण ने उसे अपने भीतर समाहित कर लिया। उसी प्रकार जीवन पथ पर बढ़ने के लिए जरूरी है झुकना ।
परिवार को सही से जोड़े रखना है तो झुकना अर्थात नम्रता, विनयशीलता , सहनशीलता समर्पणता जरूरी है ।जिस तरह पहाड़ों पर चढ़ने के लिए लकड़ी या झुककर चलने की जरूरत होती है उसी तरह जीवन में विनय ,समर्पण सद्भाव की जरूरत होती है जिससे जीवन सुखमय ,शांति पूर्वक व तनाव रहित कट जाता है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान )