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शब्द हैं वही , पर…..

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शब्द कोई बाजार में बिकते नहीं है । शब्द कोई चलते – फिरते नहीं है । शब्द में बहुत असीमित शक्ति होती है । बल्कि हमे तो शब्द मुफ्त में मिलते हैं ।हम उन्हें जिस तरह उपयोग करें वैसी ही कीमत उसकी हमको चुकानी पड़ती है ।वाणी में भी अजीब शक्ति होती है । कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वाली की मिर्ची भी बिक जाती है ।बेहतरीन इंसान अपनी मीठी जुबान से ही जाना जाता है वरना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती हैं । जैसे इंसान एक दुकान है और जुबान उसका ताला है ।जब ताला खुलता है तभी मालूम पड़ता है
कि दुकान सोने की है या कोयले की है । अतः हमें हमेशा मीठे बोल बोलने चाहिए क्योंकि यह समंदर के वह मोती हैं,जिनसे इंसानों की पहचान होती है । नरम शब्दों से हमेशा सख्त दिलों को जीता जा सकता है। शब्द की एक सही चोट जीवन की दिशा-दशा को बदल सकती है। सूरज की एक किरण तिमिर के साम्राज्य को ध्वस्त कर सकती है। महत्व क्षमता और शक्ति का है ।केवल फैलाव या विस्तार का नहीं है । जहर की एक बूंद भी हजारों प्राणों का क्षण मे हरण कर सकती है। शब्दों की मृदुता मन में उल्लास के भाव भरती है और शब्दों की कटुता दुर्भावना का संचार करती है।बोली की करामात पराए को भी अपना बना लेती है ।वह भी बोली ही होती है जो अपनों को भी दूर भगा देती है । इसलिए जो बोलना जानता है वही माधुर्य के मिठास को भी
दूर -दूर तक पहचाहता है । वाणी से व्यक्ति के ज्ञान और नम्रता का पता चलता हैं । वाणी में इतनी शक्ति होती है कि यह हृदय को जीत लेता हैं । कटु वाणी बोलने से इंसान खुद भी दुखी होता हैं और दूसरो को भी दुःख देता हैं । प्रिय वचन बोलने से खुद को भी सुख मिलता हैं और दूसरों को भी । अतः कठोर वचन बुरा है क्योकि यह तन-मन को जला देता है और मृदुल वचन अमृत वर्षा के समान हैं।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान )

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