आत्मविश्वास, साहस और धर्म ध्यान आदि ही है मन के मित्र
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मानव का सही से अपने आप नियंत्रण QUALITY CONTROL होता है । मानव जितना ज्यादा नियंत्रित रहेगा उतना ही मानव गुणगान होगा । वह सभी जगह प्रशंसनीय भी होगा । जिन्दगी मे धूप है तो घनी छांव भी तो है। गति के साथ -साथ मे ठहराव भी तो है।पर जो जानते है हर पल समभाव मे जीना उनके लिए जिन्दगी केवल वरदान ही तो है। 9 दुर्गम तिर्यंच घाटियां पार करके मुश्किल से भव भवान्तर मे भटकते हुए हमें दुर्लभ मनुष्य शरीर मिला है और आज तक हमें कितनी ही बार मिला भी हो सकता है ।
हम अभी तक नहीं सम्भले है क्योंकि हम भटक रहे है इसी भव भवान्तर के चक्कर में। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने सम्बोधि पुस्तक में मन की प्रसन्नता का राज संवेगों पर नियंत्रण रखना,आग्रही विचारों का निरोध, विधेयात्मक चिंतन आदि मन को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखते हैं।हमें अपने आप पर दृढ़ विश्वास हो कि हम अपनी आत्मा का शुद्ध स्वरूप पा सकते हैं । हमारे सामने वो मार्ग प्रशस्त किया है हमारे तीर्थंकरों ने आगम वाणी में। गुरुदेव तुलसी जी ने भी श्रावक सम्बोध में हमें बताया है की यों चले निषेधात्मक चिंतन में हो सदा हमारे विधेयात्मक भाव, सम्यक दर्शन के ये स्वभाव।
हम अपने दुर्व्यवहार ,दुर्गुणों को त्यागकर स्वस्थ और प्रसन्न मन का राज पा सकते हैं ।सुखी रहना सब चाहते है । तब क्यूँ मन को हम बनाते दुखी । स्वयं का आत्मविश्वास, साहस और धर्म ध्यान आदि ही है मन के मित्र । मन पर सदा रहे उनका नियन्त्रण । हमेशा ही मन रहेगा प्रसन्न । वाणी, विचार, आचार, व्यवहार व स्वभाव हैं ये सब प्रायः आदमी की है पैतृक कम्पनी के ही उत्पाद।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान)