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SPECIAL ARTICLE : भोजन की बर्बादी बनाम भूख से बेहाल जिंदगी

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प्रस्तुति -अरविन्द जयतिलक

आज विश्व खाद्य दिवस है। विश्व खाद्य दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य भूख और कुपोषण को खत्म करने के लिए वैश्विक जागरुकता बढ़ाना, सभी के लिए सुरक्षित और स्वस्थ भोजन सुनिश्चित करना और स्थायी खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देना है। लेकिन विडंबना है कि इस सार्थक उद्देश्य और पहल के बावजूद भी हर वर्ष करोड़ों टन भोजन बर्बाद हो रहा है। वहीं दूसरी ओर दुनिया में हर दिन करोड़ों लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे हैं। विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (एसओएफआई) रिपोर्ट-2025 से उद्घाटित हुआ है कि वर्ष 2024 में 63.8 करोड़ से 72 करोड़ लोग जो वैश्विक जनसंख्या का क्रमशः 7.8 और 8.8 प्रतिशत है, भूख का सामना करेंगे।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों में बढ़ी हुई मुद्रास्फिति ने क्रय शक्ति को कमजोर कर दिया है जिसके कारण 2030 तक भूख और खाद्य असुरक्षा के उन्मूलन यानि एसडीजी लक्ष्य 2.1 बहुत दूर हो गया है। संयुक्त राष्ट्र की 2024 की ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 36 देशों में भूख का स्तर बेहद गंभीर है। इस रिपोर्ट के मुताबिक विश्व स्तर पर 2025 तक 673 मिलियन लोग भूख का अनुभव करेंगे जो कुल जनसंख्या का 8.2 प्रतिशत है। आंकड़ों के मुताबिक यह 2023 एवं 2022 की तुलना में थोड़ा कम है लेकिन चुनौती जस की तस बरकरार है। संयुक्त राष्ट्र की 2024 की रिपोर्ट पर गौर करें तो विश्व में हर साल लगभग 1.05 अरब टन खाना बर्बाद होता है जो कि कुल खाद्य उत्पादन का 19 प्रतिशत है।

इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया भर में हर दिन लगभग एक अरब से ज्यादा थालियां बर्बाद हो जाती है। खाने की बर्बादी के मामले में पहला स्थान चीन का है जहां हर साल 9.6 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है। दूसरे स्थान पर भारत है जहां हर साल 6.7 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है। यह प्रति व्यक्ति के हिसाब से 50 किलो ठहरता है। खाने की यह बर्बादी इस अर्थ में ज्यादा चिंतनीय है कि एक ओर जहां दुनिया भर के करोडों लोग भुखमरी के शिकार हैं वहीं करोड़ों टन खाना बर्बाद हो रहा है। याद होगा गत वर्ष पहले एसोचैम और एमआरएसएस इंडिया की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ था कि भारत में हर वर्ष 440 अरब डॉलर के दूध, फल और सब्जियां बर्बाद होते हैं।

इस रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के एक बड़े उत्पादक देश होने के बावजूद भी भारत में कुल उत्पादन का करीब 40 से 50 फीसदी भाग जिसका मूल्य लगभग 440 अरब डॉलर के बराबर है, बर्बाद हो जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक देश में हर साल उतना भोजन बर्बाद होता है जितना ब्रिटेन उपभोग करता है। आंकड़ों पर गौर करें तो देश में 2023-24 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 3322.98 लाख मिट्रिक टन था। लेकिन इसके बावजूद भी यह अन्न लोगों की भूख नहीं मिटा पा रहा है। ऐसा नहीं है कि यह उत्पादित देश की आबादी के लिए कम है। लेकिन अन्न की बर्बादी के कारण करोड़ों लोगों को भूखे पेट रहना पड़ रहा है। भोजन की कमी से हुई बीमारियों से देश में सालाना हजारों बच्चों की जान जाती है। वैश्विक भूख सूचकांक-2024 के मुताबिक ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत दुनिया के 127 देशों में 105 वें स्थान पर रहा।

भारत को इस सूचकांक में गंभीर श्रेणी में रखा गया है। भारत का स्कोर 27.3 है जो गत साल से थोड़ा बेहतर है। यहां ध्यान देना होगा कि बर्बाद भोजन को पैदा करने में 25 प्रतिशत स्वच्छ जल का इस्तेमाल होता है और साथ ही कृषि के लिए जंगलों को भी नष्ट किया जाता है। इसके अलावा बर्बाद हो रहे भोजन को उगाने में 30 करोड़ बैरल तेल की भी खपत होती है। बर्बाद हो रहे भोजन से जलवायु प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। उसी का नतीजा है कि खाद्यान्नों में प्रोटीन और आयरन की मात्रा लगातार कम हो रही है।

खाद्य वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन की अधिकता से भोजन से पोषक तत्व नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण चावल, गेहूं, जौ जैसे प्रमुख खाद्यान में प्रोटीन की कमी होने लगी है। आंकड़ों के मुताबिक चावल में 7.6 प्रतिशत, जौ में 14.1 प्रतिशत, गेहूं में 7.8 प्रतिशत और आलू में 6.4 प्रतिशत प्रोटीन की कमी दर्ज की गयी है। अगर कार्बन उत्सर्जन की यही स्थिति रही तो 2050 तक दुनिया भर में 15 करोड़ लोग इस नई वजह के चलते प्रोटीन की कमी का शिकार हो जाएंगे। यह दावा हार्वर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में किया है। यह शोध एनवायरमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव जर्नल में प्रकाशित हुआ। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक भारतीयों के प्रमुख खुराक से 5.3 प्रतिशत प्रोटीन गायब हो जाएगा। इस कारण 5.3 करोड़ भारतीय प्रोटीन की कमी से जूझेंगे।

गौरतलब है कि प्रोटीन की कमी होने पर शरीर की कोशिकाएं उतकों से उर्जा प्रदान करने लगती हैं। चूंकि कोशिकाओं में प्रोटीन भी नहीं बनता है लिहाजा इससे उतक नष्ट होने लगते हैं। इसके परिणामस्वरुप व्यक्ति धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है और उसका शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। अगर भोज्य पदार्थों में प्रोटीन की मात्रा में कमी आयी तो भारत के अलावा उप सहारा अफ्रीका के देशों के लिए भी यह स्थिति भयावह होगी। इसलिए और भी कि यहां लोग पहले से ही प्रोटीन की कमी और कुपोषण से जूझ रहे हैं। बढ़ते कार्बन डाई आक्साइड के प्रभाव से सिर्फ प्रोटीन ही नहीं आयरन कमी की समस्या भी बढ़ेगी। दक्षिण एशिया एवं उत्तर अफ्रीका समेत दुनिया भर में पांच वर्ष से कम उम्र के 35.4 करोड़ बच्चों और 1.06 महिलाओं के इस खतरे से ग्रस्त होने की संभावनाएं हैं।

इसके कारण उनके भोजन में 3.8 प्रतिशत आयरन कम हो जाएगा। फिर एनीमिया से पीड़ित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी। प्रोटीन की कमी से कई तरह की बीमारियों का खतरा उत्पन हो गया है। अभी गत वर्ष ही इफको की रिपोर्ट में कहा गया कि कुपोषण की वजह से देश के लोगों का शरीर कई तरह की बीमारियों का घर बनता जा रहा है। कुछ इसी तरह की चिंता ग्लोबर हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट में भी जताया गया है। हालांकि यूनाइटेड नेशन के फूड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं के कारण अब भारत में पिछले एक दशक में भूखमरी की समस्या में तेजी से कमी हुई है जिससे कुपोषण का संकट घटा है। यहां ध्यान देना होगा कि दुनिया भर में सालाना जितना अन्न की वैश्विक बर्बादी हो रही है उसकी कीमत तकरीबन 1000 अरब डॉलर है।

दुनिया भर में अन्न की बर्बादी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यदि कुल बर्बाद भोजन को 20 घनमीटर आयतन वाले किसी कंटेनर में एक के बाद एक करके रखें और ऊंचाई में बढ़ाते जाएं तो 1.6 अरब टन भोजन से चांद तक जाकर आया जा सकता है। आंकड़ों के मुताबिक विकसित देशों में अन्न की बर्बादी के कारण 680 अरब डॉलर और विकासशील देशों में 310 अबर डॉलर का नुकसान हो रहा है। ध्यान देने वाली बात यह कि अमीर देश भोजन के सदुपयोग के मामले में सबसे ज्यादा संवेदनहीन और लापरवाह हैं। इन देशों में सालाना 22 करोड़ टन अन्न बर्बाद होता है। जबकि उप सहारा अफ्रीका में सालाना कुल 23 करोड़ टन अनाज पैदा किया जाता है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की ही बात करें तो यहां जितना अन्न खाया जाता है उससे कहीं अधिक बर्बाद होता है। आंकड़ों के मुताबिक केवल खुदरा कारोबारियों और उपभोक्ताओं के स्तर पर अमेरिका में हर साल 6 करोड़ टन अन्न बर्बाद होता है। उचित होगा कि विश्व समाज के अग्रणी देश दुनिया भर में भूख और कुपोषण से बेहाल लोगों की सुध लें। करोड़ों टन जो भोजन बर्बाद हो रहा है उसे जरुरतमंदों तक पहुंचाने की महती व्यवस्था सुनिश्चित करें।

 

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