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वृद्धावस्था……

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हर अवस्था में अवस्थानुसार समझ , नासमझ, ज़िम्मेदारियाँ आदि तो रहेंगी ही | अत: हम समझ पकड़ने के बाद दैनिक समय सारणी में एक निश्चित अवधि रहे सुरक्षित । करने को आध्यात्मिक चर्या में सतत वृद्धि तब हो सकती है जब जीवन लक्ष्य की ओर प्रस्थान की गति में अनवरत प्रगति होती है ।

इस चढ़ती और ढलती उम्र के निराशावादी वृद्धो के कारण वृद्धावस्था बदनाम होते जा रही है । अब समय आ गया है कि वृद्धावस्था को दुर्दशा से बचाया जाए ।वृद्घ कहे जाने वाले पुरुष स्वयं अपने बुढ़ापे में अपने उत्साह को मंद न होने दे । अपनी आशाओं को वो स्थिर रखें । शरीर और मस्तिक से सामर्थ्य के अनुसार बराबर काम लें । जीवन में लाभ उठाने की इच्छा रखें । जो ज्ञान और अनुभव संचित कर लिया वह अगले जन्म में काम देगा ।

ऐसा सोच कर मृत्यु की घड़ी तक ज्ञान संपादन करने योग्यता बढ़ाने ।अनुभव प्राप्त करने व भूलो का सुधार कर अपने अनुभव से दूसरों को लाभान्वित करने का प्रयास करें । ऐसा प्रयास वृद्घ लोग करते रहे तो वृद्घ होना दुःख की बात नहीं गौरव की बात होंगी। बुढ़ापा वह पड़ाव है जहाँ अनुभवों का अच्छा-खासा भंडार है।इस उम्र में यदि इच्छाओं पर नियंत्रण,व्यवहार में कोमलता और सब तरीके से मिलनसारिता हो तो काहे की मायूसी। सोच को वृद्ध मत होने दीजिए।उसे बुलंद रखिए।सदा खिलखिलाकर हँसिए।बच्चों के साथ बन जाइए बच्चे और हमजोलियों के साथ रहे हमजोली। मन में सदा रखिए जिंदादिली। यों बुढ़ापे शब्द को रखिए दूर रहिए सदा आनंद से भरपूर।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़,राजस्थान)

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