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क्या करें आनंदमय जीवन के लिए

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 प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़, राजस्थान)

हम आनंदमय जीवन जीने के लिये कहते है लेकिन क्या हम सही से आनंदमय जीवन जीते है । बिन्दु से सिन्धु बनाता जो प्रभुता का मार्ग दिखाता जो हिम खंडो सम अविरल गलकर तरूवर ज्यों रहता है फलता वो । जीवन को सुंदर और सरल बनाने के लिए महत्वपूर्ण बातों पर विशेष ध्यान दिलाता जीवन ।जीवनोपयोग़ी स्मरणीय बातों से घर परिवार व्यवहार आनंदमय एवं कल्पनाओं से भरा होगा ।

अपना मन भावनाओं से भरेगा और प्रेम, संस्कार का स्तर उँचा । बिन्दु से सिन्धु बनने की यात्रा में आगे बढ़ने हेतु विशेष उपयोगी बने । जङ से कट कर कोई भी वृक्ष कभी भी पल्लवित, पुष्पित नहीं हो सकता है। करूणा,दया,संतोष का प्रकाश ही,क्रूरता,अहंकार की कालिमा धो सकता है।विनय, क्षमा,आत्म विश्वास की शक्ति ही है परम विजय का एक मात्र मंत्र ।नेक दिलो-दिमाग ही प्राणीमात्र को स्नेह,प्यार के धागे मे पिरो सकता है।

सुख और दुःख धूप-छाया की तरह सदा इंसान के साथ रहते हैं ।लंबी जिन्दगी में खट्ठे-मीठे पदार्थों के समान दोनों का स्वाद चखना होता है ।सुख-दुःख के सह-अस्तित्व को आज तक कोई मिटा नहीं सका है ।जीवन की प्रतिमा को सुन्दर और सुसज्जित बनाने में सुख और दुःख आभूषण के समान है । इस स्थिति में सुख से प्यार और दुःख से घृणा की मनोवृत्ति ही अनेक समस्याओं का कारण बनती है ।और इसी से जीवन उलझन भरा प्रतीत होता है ।

अतः जरूरत है इन दोनों स्थितियों के बीच संतुलन स्थापित करने की, सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की। सुख और दुख का आपसी मेल जो निश्चित रचाता है कुछ नए खेल । कोई अपनी स्थिति से कभी भी तुष्ट वा संतुष्ट क्यों नहीं होता ।वह स्वभाव और अभाव दोनो ही स्थितियो में क्यों रहता है सदैव रोता । मेरी थाली से तेरी थाली में है घी ज्यादा ।दीखता है अपनी थाली में सदा आधा । हम अपनी सभी स्थितियों संतुष्ट रहना सीखें ।और सदा खुश व आनंदमय दीखेँ ।

रहें सुख में भी राजी व दुख में भी राजी और सदा जीतते रहे जीवन की हर बाजी । रखें सदा सुख के लिए संतोष।पाएँ पर-सेवा कर आत्मतोष। ईर्ष्या न फटके कभी पास घर में रहे धर्म का वास।कठिन है जीवन में इतना सब सधना पर मन में रहे हरदम कि हमें है धीरे-धीरे इस पथ पर आगे बढ़ना।

(लेखक ने अपने विचार हैं )

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