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राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त स्वामी श्रीराम शर्मा का स्मृति महोत्सव धूमधाम से संपन्न

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वृन्दावन।वंशीवट क्षेत्र स्थित श्रीमलूक पीठ में राष्ट्रपति पुरूस्कार प्राप्त प्रख्यात रासाचार्य व श्रीनिकुंज बिहारी रासलीला मंडल के संस्थापक स्वामी पंडित श्रीराम शर्मा का स्मृति महोत्सव संतों व विद्वानों की उपस्थिति में अत्यंत हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ।
मलूक पीठाधीश्वर स्वामी डॉ. राजेन्द्र दास देवाचार्य महाराज ने कहा कि स्वामी श्रीराम शर्मा गृहस्थ संत थे।साथ ही वे शास्त्रीय संगीत के पहुंचे हुए ज्ञाता थे।उन्होंने अपना सारा जीवन कर्मयोगी की भांति जीया।वह रास जगत की बहुमूल्य निधि थे।ऐसी पुण्यात्माओं का अब युग ही समाप्त होता जा रहा है।हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।पीपाद्वाराचाचार्य बलरामदास देवाचार्य महाराज व श्रीमहंत फूलडोल बिहारीदास महाराज ने कहा कि स्वामी श्रीराम शर्मा ने आधुनिक युग में भी रासलीला की प्राचीन परम्पराओं के अनुसार ही ठाकुर रासबिहारी सरकारी की सेवा की।वे आधुनिक युग में रास जगत में हुए बदलाव व इस क्षेत्र में कन्याओं के प्रवेश के घोर विरोधी थे।ब्रज सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. गोपाल चतुर्वेदी व प्रमुख समाजसेवी पंडित बिहारीलाल वशिष्ठ ने कहा कि स्वामी श्रीराम शर्मा को प्रख्यात संत बालकृष्ण दास महाराज, उड़िया बाबा महाराज,हरिबाबा महाराज, करह सरकार व आनंदमयी मां आदि जैसे प्रमुख संतों की अपार कृपा, स्नेह व आशीष प्राप्त था।
श्रीमहंत लाड़िली शरण महाराज व साध्वी डॉ. राकेश हरिप्रिया ने कहा कि स्वामी श्रीराम शर्मा रासलीला के स्वरूपों को भगवद स्वरूप मानते हुए उन्हें अत्यंत आदर व सम्मान देते थे।उन्होंने उनको कभी भी अपना अधीनस्थ नहीं माना।वह निकुंज लीलाओं के मंचन में अत्यंत पारंगत थे।उनके निर्देशन में की गईं गौरांग लीला व संत चरित्रों के मंचन अत्यंत भावमय व चित्ताकर्षक हुआ करते थे।
इस अवसर पर ब्रजबिहारी दास महाराज,गोपेश कृष्ण दास,शिवराम दास महाराज,भंडारी बाबा,महंत सुंदरदास महाराज,बाबा मोहनदास महाराज,रसिक माधव दास,गिरि बाबा महाराज,बाबा गणपति दास महाराज,रासाचार्य स्वामी कुंजबिहारी शर्मा,स्वामी पुलिनबिहारी शर्मा,विपिनबिहारी शर्मा,स्वामी रामेश्वरानंद महाराज,युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा,डॉ. चंद्रप्रकाश शर्मा, जुगल गोस्वामी,महंत मधुमंगल शरण शुक्ल,मनमोहन शर्मा,डॉ. चंद्रेश गुप्ता व अवधेश मिश्रा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इससे पूर्व गिरधर गोपाल शास्त्री की मुखियायी में श्रीमदभक्तमाल ग्रंथ का संगीतमय सामूहिक गायन किया गया।महोत्सव का समापन संत-ब्रजवासी-वैष्णव सेवा व भंडारे के साथ हुआ।संचालन डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने किया।

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