ओंकार स्वरूप है श्रीमद्भगवद्गीता : स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज
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वृन्दावन।रतन छतरी-कालीदह रोड़ स्थित गीता विज्ञान कुटीर में 109 वर्षीय वयोवृद्ध व प्रख्यात संत गीता विज्ञान पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज (हरिद्वार) अपनी धार्मिक यात्रा पर इन दिनों श्रीधाम वृन्दावन आए हुए हैं।उन्होंने यहां के कई प्रख्यात संतों, धर्माचार्यों व प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मुलाकात कर धर्म- अध्यात्म व अन्य विषयों पर विचार-मंथन किया।
उन्होंने अपने आश्रम में प्रवचन करते हुए कहा कि श्रीकृष्ण के मुख से निकली श्रीमद्भगवद्गीता साक्षात ओंकार स्वरूप है।गीता एक ऐसा सेतु है जिस पर से प्रत्येक व्यक्ति अत्यंत सरलता से भव सागर को पार कर सकता है।साथ ही यह एक ऐसा दर्पण है जिसमें मनुष्य को अपने वास्तविक स्वरूप के दर्शन होते हैं।इसीलिए इस ग्रंथ को संस्कृत वांग्मय का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य माना गया है।इसको “युद्धोपनिषद” भी कहा गया है।
गीता विज्ञान पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि निष्कामता परमार्थ के सभी साधनों की जननी है।अत: हम सभी को अपने कार्य निष्काम भाव से करने चाहिए।साथ ही जगत से समता व परमात्मा से ममता रखनी चाहिए।संसार व शरीर को अपना मानना सभी पापों का मूल है।अत: संसार के सभी प्राणियों की सेवा, ईश्वर से प्रेम तथा स्वयं को त्याग करना चाहिए।साथ ही हम सभी को संयम, सेवा, सुमिरन और सादगी का पंचामृत सदैव पान करते रहना चाहिए।
इस अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज के विशेष कृपापात्र डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने महाराजश्री और उनके द्वारा संचालित विभिन्न सेवा प्रकल्पों की जानकारी दी।साथ ही यह बताया कि महाराजश्री अपनी 109 वर्ष की आयु में भी समूचे विश्व में श्रीमद्भगवद्गीता का सघन प्रचार-प्रसार कर असंख्य व्यक्तियों को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
सत्संग कार्यक्रम में महाराजश्री की पत्रिका “गीता लोक” के नवीन अंक का लोकार्पण भी किया गया।साथ ही ब्रज साहित्य सेवा मंडल के द्वारा महाराजश्री का सम्मान भी हुआ।कार्यक्रम में हरिकेश ब्रह्मचारी, स्वामी लोकेशानंद, पंडित बिहारीलाल वशिष्ठ, डॉ. राधाकांत शर्मा एवं चित्रकार द्वारिका आनंद की उपस्थिति विशेष रही।