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मन्नतों को पूरी करते हैं बाबा शाहमल

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अमेठी I

उत्तर प्रदेश के जनपद अमेठी के शाहगढ़ कस्बा में गुरुवार की रात को बाबा शाहमल की मजार पर सलाना उर्स मनाया गया। जिसमें हजारों की संख्या में दोनों समुदाय के श्रद्धालु एकत्रित होकर बाबा की मजार पर चादर चढ़ाकर दुआएं मांगी। आयोजन कमेटी द्वारा द्वारा रात्रि में जबाबी कव्वाली के कार्यक्रम की व्यवस्था की गई थी। जिसका श्रद्धालुओं ने पूरा लुत्फ उठाया। जायरीन प्रत्येक वीरवार को बाबा की मजार पर आकर चादर प्रासाद चढ़ाते है। और सलाना उर्स का आयोजन प्रत्येक वर्ष दीवाली के बाद पहले वीरवार को मनाया जाता हैं। अपने किसी भी शुभ कार्य को करने से पूर्व स्थानीय लोग बाबा की मजार पर जरूर जाते हैं, वहां पर मन्नत मांगते है, उसके पूरा हो जाने पर बाबा की मजार पर चादर और प्रासाद चढ़ाते हैं।

गौरतलब हो कि बाबा की मजार हिंदू मुस्लिम दोनों कौमी एकता का आस्था केंद्र है। क्षेत्र में बाबा साम्प्रदायिक सौहार्द भाईचारा के जनक के रूप में जाने जाते हैं। जो सदियों से चला आ रहा हैं। बाबा शाहगढ कस्बे के संस्थापक के रूप में भी जाने जाते हैं। और बाबा का क्षेत्र के दोनों समुदायों के श्रद्धालुओं पर सदैव आशीर्वाद बना रहता है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि किसी भी शुभ कार्य करने से पूर्व बाबा के मजार पर मत्था टेकने से कार्य सकुशल सम्पन्न हो जाता है। उसमें सफलता अवश्य मिलती हैं। कोट के बाहर बाबा शाहमल की मजार है, बाबा के सम्बन्ध में क्षेत्रीय कई किवदंतियां प्रचलित हैं, स्थानीय लोगो का मानना है कि बाबा शाहमल शाहगढ के संस्थापक हैं। उनका अपना यहां पर राज्य था, जब बाबा की दुनिया से मोह माया सत्ता से मोह भंग हो गया। तो उन्होंने राजपाट त्याग कर बैराग्य धारण कर लिया, और क्षेत्र की जनता की सेवा करने लगे, रोगियों को निःशुल्क इलाज के साथ-साथ गरीब, असहाय व जरूरतमंदों की मदद करना दिनचर्या हो गई। जिसकी वजह से बाबा की ख्याति दूर-दूर तक फैलती चली गई। उनके कुछ अनुनायी उन्हें हिंदू मानते है और कोई मुसलमान। कुछ लोगों का मानना है कि बाबा पहले हिंदू थे, वह बाद में मुसलमान बन गए, वह एक सूफी संत थे। जनता के बीच उनका अच्छा खासा प्रभाव था, बाबा शाहमल सिद्ध महापुरुष थे, उनके मुंह से निकली दुआ बद्दुआ कभी खाली नहीं जाती थी। कथनानुसार एक समय बाबा के आश्रम में मांस पक रहा था, तो उसकी शिकायत किसी ने राजा से कर दी, जिस पर राजा ने तालुकदार को आश्रम भेजकर जांच करवाया। तालुकदार आश्रम पहुंचकर पैर से डेग पर रखे ढक्कन को हटाते हुए पूछा कि बाबा इसमें क्या पक रहा है, बाबा के मुंह से निकल गया कि इसमें दाल पक रही हैं। जब उसने देखा तो दाल ही पक रही थी। तालुकदार की इस हरकत से बाबा नाराज हो गए, और उन्होंने श्राप दे दिया। लोगों का मानना है कि बाबा की बात आगे चलकर सही साबित हुई, कालांतर में राजा के दो पुत्र हुए, दोनों ही असमय काल के गाल में समा गए। कोट में बाबा की मजार पर श्रद्धालुओं का आवाजाही देखकर परेशान होकर अधिकारियों ने मजार पर आने-जाने वाले पर रोक लगाते हुए दरवाजे पर ताला बंद कर दिया। जिसकी वजह से महल के अन्दर तरह तरह की परेशानियां आने लगी। एक रात्रि सोते समय राजमाता को सपने में बाबा आकर दर्शन दिए, राजमाता ने पूजा अर्चना करते हुए अपनी परेशानियों से निजात पाने की बात कहने लगी, तो बाबा ने कहा कि मेरी मजार से दो ईट निकालकर कोट के बाहर मेरी मजार बना दो। जिससे हमारे श्रद्धालु बेरोक टोक आ सके, सुबह राजघराने ने स्वप्न की बात को संज्ञान में लेकर कोट के बाहर मजार का निर्माण शुरू कर दिया। जिससे वहां की मुसीबतें धीरे धीरे खत्म होने लगी। बाबा शाहमल की मजार पर अकीद्त करने वालों का तांता लगा रहता है। और लोगों को मन मांगी मुरादे पूरी हो जाती हैं, वही लोग फिर बाबा की मजार पर आकर चादर चढ़ाते हैं। बाबा की मजार पर श्रद्धालुओं का तांता लगने लगा, बाबा की मूल मजार कोट के अंदर है, जो बाबा के सलाना उर्स के समय आम जनता के लिए खोला जाता है। Aसभी धर्मो के लोग बाबा को अपना आराध्य मानते हुए हर वीरवार मजार पर जाते हैं। सलाना उर्स में दूर दराज के श्रद्धालु आते हैं। उर्स में वाराणसी से जवाबी कव्वाली की गई थी। कार्यक्रम में जिला पंचायत सदस्य धर्मेश धोबी, पप्पू सिंह, सर्वेश शर्मा, मो शरीफ, राम सेठ, बाबा, धारिया, अनिल जायसवाल, शकील खान, गोलू बारी, हरिशंकर, संजय मौर्य, मुंशी लाल चौरसिया, बब्लू खान, चुन्नू, राम सजीवन मौर्य, अनुभव, राजू यादव, पिंटू खान, विपिन शर्मा, संतोष यादव, राम सजीवन मटियारी, पिंटू शर्मा, शिवम सोनी, अपार, मोहम्मद हसीब, विनय अग्रहरि, राम ललन यादव, राम बरन सेठ, राम अचल अग्रहरि, बृजलाल सेठ, कन्हैया लाल, संतराम, राजू लाला, संजय मिश्रा, मो हबीब आदि सहित काफी संख्या में लोग मौजूद रहे।

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