प्रेम की भाषा गूँगा ही जाने…..
1 min readवर्षा वार्ष्णेय –
आज दिल मे एक विचार बार बार घुमड़ रहा था कि क्या मैं सच में इस दुनिया मे रहने लाइक नहीं या फिर मैं ज्यादा ही सोचती हूँ?न जाने क्यों लोगों को लगता है कि मैं दिखावा करती हूं ।शायद मेरा पवित्र प्यार दिखावा ही तो है ।नहीं आता मुझे झूठी व्यवहारिकता निभाना ,जो दिल में होता है तुरंत बोल देती हूं । यदि किसी को मेरा सादापन दिखावा लगता है तो शायद यहां भी मैं ही गलत हूँ । रिश्ते …. हाँ …..वही रिश्ते जिनके लिए कभी कभी हम खुद अपना वजूद भी खो देते हैं और जब वही हमें और हमारे प्यार को दिखावा बोलते हैं तब ये दुनिया झूठ लगने लगती है । बहुत सारे रिश्तों को खोया है मैंने और अब कुछ भी खोने से डर लगता है । माँ …..इस दुनिया का वो सर्वप्रथम चेहरा जिसे देखकर एक बच्चा अपना सुख दुःख सब बाँट लेना चाहता है जब वही आपसे दूर हो जाये तो आप किससे अपनी बात को बाँट सकते हैं ?पिता …….वो चेहरा जिसकी गोद मे सर रखकर बच्चा अपना दिल हल्का कर लेता है जब आपके पास वो ऑप्शन भी न बचे तब आपको क्या करना चाहिए ? शायद आपमें से कोई नहीं बता सकता मेरे इस प्रश्न का जवाब ,इसका जवाब सिर्फ वही दे सकता है जो मेरी जैसी परिस्थितियों से गुजर चुका हो बाकी सबके लिए प्रेम प्यार एक दिखावा ही तो है ।
प्रेम की भाषा गूँगा ही जाने
प्रेम है क्या उसको कैसे बखाने ।
प्रेम है निरन्तर बहती नदिया का नाम
प्रेम की मिसाल हर दिल क्या पहचाने ।
माँ और पिता की कमी एक बच्चा ताउम्र नहीं भुला सकता ।उम्र के हर मोड़ पर जब वो खुद को अकेला पाता है तब दिल की गहराइयों में दबा दर्द एक नासूर बन जाता है और वो हर सामने वाले व्यक्ति को अपना दर्द समझाना चाहता है ।एक अनाथ बच्चा ही प्रेम का मतलब समझा सकता है बाकी तो इस दुनिया में दोस्ती भी स्कूल कॉलेज के बाद खत्म हो जाती है फिर वो चाहे कितने भी पक्के मित्र रहे हों ।क्या दोस्ती भी आजकल एक बदला बन कर रह गयी है या फिर जिनके पेट भर हुए हैं वो दोस्ती का अर्थ भूल चुके हैं ?
आइये इस जीवन को क्यों न कुछ ऐसा बनाएं कि कल आपके जाने के बाद वो भी आपको याद रखें जो कल तक कहते थे
छोड़ेंगे न हम तेरा साथ
जब तक जान में जान है
यकीन न हो तो चाँद से पूछ लो
वो आज भी अंधरों में भी साथ है ।