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पराली जलाने वालों की अब खैर नहीं !

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किसान फसल अवशेष को न जलाये, क्योंकि उन्हें जलाने से उनके जड़, तना, पत्तियों के लाभदायक पोषक तत्व नष्ट व मृदा ताप में वृद्धि होती है जिसके कारण मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु नष्ट होने से मृदा में उपस्थित जीवांश पदार्थ सड़ नही पाता है तथा पौधे पोषक तत्व प्राप्त करने में असमर्थ होते है परिणामस्वरूप उत्पादकता में गिरावट आती है। इसके अतिरिक्त वातावरण के साथ-साथ पशुओं के चारे की व्यवस्था पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने से फसलों व आबादी में आग लगने की सम्भावना बनी रहती है। फसल अवशेष जलाने से हो रहे वायु प्रदुषण से अस्थमा व एलर्जी जैसी अन्य कई प्रकार की बीमारियों को बढावा मिलता है एवं धुंध के कारण दुर्घटनाएं हो सकती है।

किसानों का कहना है-

धान की फसल (Paddy Crop) पर पहले ही बहुत अधिक खर्च आता है I अगर सरकार के बताए तरीके से पराली से निपटने के लिए मशीनों का इंतजाम भी कर लिया जाए तो भी प्रति एकड़ पांच से छह हजार रुपये का खर्च आता है. वो कौन वहन करेगा? किसानों की मजबूरी ये है कि अगली फसल की तैयारी के लिए समय कम होता है, तो दूसरी तरफ पराली को इकट्ठा करने में खर्चा भी आता है I वहीं एक तीली में समस्या का समाधान हो जाता है I

पराली न जलाने के फायदे 

किसान फसल अवशेषों का उचित प्रबन्ध कर फसल अवशेषों से कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाकर प्रयोग करें तो खेत की उर्वरता के साथ ही भूमि में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में भी वृद्धि होगी एवं मृदा की भौतिक एवं रासायनिक संरचना में सुधार होगा जिससे भूमि में जल धारण की क्षमता एवं वायु संचार में वृद्धि होगी। फसल अवशेषों की मल्चिंग करने से खरपतवार कम होते है तथा जल का वाष्पोत्सर्जन भी कम व सिंचाई जल की उपयोग दक्षता बढ़ती है। इसके अतिरिक्त 05 कि0ग्रा0 यूरिया को एक एकड़ में छिटकवा विधि से डालकर सिंचाई करने पर फसल अपशिष्ट जल्दी सड़कर खेतों में मिल जातें है। इस सम्बन्ध में उन्होंने बताया कि अतिरिक्त पराली को गोशालाओं में समर्पित कर इसमें लगने वाले परिवहन संबंधित व्यय को ग्राम पंचायतों द्वारा वहन किये जाने के निर्देश दिये गये है एवं संबंधित ग्राम पंचायत ग्राम प्रधान/सचिव/कृषि विभाग के कार्मिक को किसान सूचित कर सकते है।

पराली नष्ट करने के साधन 

शासन द्वारा हार्वेस्टर के साथ सुपर स्ट्रा मैनेजमेन्ट के प्रयोग करने के निर्देश है, सुपर स्ट्रा मैनेजमेन्ट के विकल्प के रूप में अन्य फसल अवशेष प्रबन्धन के यंत्र जैसे मल्चर, स्ट्रा रीपर, स्ट्रा रेक, पैडी स्ट्रा चापर आदि के प्रयोग करने के निर्देश शासन द्वारा दिये गये है। साथ ही पराली जलाने की घटना प्रकाश में आने पर संबंधित कृषक/कम्बाइन हार्वेस्टर के मालिक के विरूद्ध जांचोपरान्त यथा विधि कार्यवाही भी की जा सकती है। बिना सुपर स्ट्रा मैनेजमेन्ट युक्त कम्बाइन हार्वेस्टर को सीज भी किया जा सकता है।

पराली जलाने पर दंड के क्या हैं प्रावधान

फसल अवशेषों के जलाने से होने वाली हानियों को दृष्टिगत रखते हुए  राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा फसल अवशेष जलाना दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है वर्ष 1981 में बनाए गए ‘द एयर प्रीवेंशन एंड कंट्रोल एक्ट’ में 500 से 15,000 रुपये तक जुर्माना लगाने का प्रावधान है I अर्थदण्ड के रूप में कृषि भूमि का क्षेत्र 02 एकड़ से कम होने की दशा में अर्थदण्ड रू0 2500, पांच एकड़ तक होने की दशा में अर्थदण्ड रू0 5000 एवं पांच एकड़ से अधिक होने की दशा में अर्थदण्ड रू0 15000 निर्धारित किया गया है तथा अपशिष्ट के जलाये जाने की पुनरावृत्ति होने की दशा में अर्थदण्ड इत्यादि की कार्यवाही हो सकती है।

 समस्या से निजात पाने के लिए सरकारों ने क्या उठाया कदम 

पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकारें किसानों को पराली नहीं जलाने पर नकद प्रोत्साहन राशि देने की योजना बना रही हैं और केंद्र सरकार से इसमें लागत साझा करने का अनुरोध किया गया है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने धान की पराली जलाने के प्रबंधन के लिए राज्यों की तैयारियों की उच्चस्तरीय बैठक में समीक्षा की I तोमर ने कहा कि इस मामले में राज्यों की सफलता तभी है, जब पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं I मंत्री ने बताया कि केंद्र सरकार इस मामले में चिंतित है और फसल अवशेष प्रबंधन योजना के अंतर्गत चालू वित्तीय वर्ष में भारत सरकार ने राज्यों को 600 करोड़ रुपये जारी किए हैं I हरियाणा के मुख्य सचिव ने कहा कि पराली जलाने पर नियंत्रण के लिए राज्य सरकार एक ढांचा लागू कर रही है जिसमें इन-सीटू/फसल अवशेष प्रबंधन, एक्स-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन, प्रभावी निगरानी/प्रवर्तन, आईईसी गतिविधियां शामिल हैं I

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