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Nepal Revolution : नेपाल में हिंसा पर काबू पाने उतरी सेना, कई जिलों में तनाव बरकरार

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विशेष रिपोर्ट – रवि नाथ दीक्षित 

काठमांडू, नेपाल।

नेपाल इन दिनों अशांति और हिंसक प्रदर्शनों की गिरफ्त में है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि सरकार को सड़कों पर नेपाल आर्मी उतारनी पड़ी। सेना हालात पर नियंत्रण पाने की हरसंभव कोशिश कर रही है, लेकिन कई इलाकों में अब भी प्रदर्शनकारी कानून-व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। राजधानी काठमांडू से लेकर तराई और बॉर्डर क्षेत्रों तक तनाव पसरा है।

आर्मी की तैनाती क्यों हुई?

नेपाल में बीते कई दिनों से राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक मुद्दों को लेकर विरोध-प्रदर्शन जारी हैं। आंदोलनकारी जगह-जगह टायर जला रहे हैं, पथराव कर रहे हैं और कई जगह सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पुलिस बल कई बार लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर चुकी है, लेकिन स्थिति काबू से बाहर होती दिखी। नतीजतन, नेपाल सरकार ने सेना को मैदान में उतारने का निर्णय लिया।

सूत्रों के मुताबिक, सेना की तैनाती खासकर उन जिलों में की गई है जहां हिंसा का स्तर ज्यादा बढ़ गया है। वहां पुलिस और स्थानीय प्रशासन हालात संभालने में नाकाम साबित हो रहे थे।

कर्फ्यू और इंटरनेट बंद

नेपाल सरकार ने हिंसा प्रभावित जिलों में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया है। साथ ही, अफवाहों को रोकने और भीड़ को भड़कने से बचाने के लिए कई जगह इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं।

काठमांडू, नेपालगंज, बिराटनगर और तराई के कुछ अन्य क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की गश्त लगातार जारी है।

सेना की रणनीति

सेना ने प्रमुख चौक-चौराहों, सरकारी दफ्तरों और संवेदनशील इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया है। वीडियो फुटेज में साफ देखा जा सकता है कि भारी संख्या में सैनिक सड़कों पर मौजूद हैं। उनके साथ बख्तरबंद गाड़ियां और आधुनिक हथियार भी तैनात किए गए हैं। सेना न केवल भीड़ को काबू करने में लगी है, बल्कि लोगों को भरोसा दिलाने की कोशिश भी कर रही है कि हालात जल्द सामान्य होंगे।

आंदोलनकारियों का आरोप

दूसरी तरफ आंदोलनकारी सरकार पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है और पुलिस-सेना मिलकर उनके दमन में लगी है। आंदोलनकारियों का आरोप है कि अब तक दर्जनों लोग घायल हो चुके हैं और कई को बिना कारण गिरफ्तार कर लिया गया है।

भारत-नेपाल सीमा पर असर

नेपाल में फैली हिंसा का असर भारत के सीमावर्ती जिलों तक भी पहुंचा है। उत्तर प्रदेश और बिहार से सटे बॉर्डर पर खास निगरानी रखी जा रही है। सुरक्षा बलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। नेपालगंज, बहराइच और लखीमपुर खीरी के बॉर्डर चौकियों पर अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं ताकि उपद्रवी भारतीय सीमा में प्रवेश न कर पाएं।

व्यापार और जनजीवन प्रभावित

नेपाल की इस हिंसा का असर आम जनजीवन पर भी गहराता जा रहा है। बाजार बंद हैं, परिवहन व्यवस्था ठप हो चुकी है और लोग घरों से बाहर निकलने से बच रहे हैं। व्यापारिक गतिविधियां पूरी तरह ठहर गई हैं। खासकर भारत-नेपाल के बीच होने वाला आयात-निर्यात भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

सरकार की अपील

नेपाल सरकार ने जनता से शांति बनाए रखने की अपील की है। प्रधानमंत्री ने बयान जारी कर कहा है कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है और बातचीत ही एकमात्र रास्ता है। सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि आंदोलनकारियों की मांगों पर विचार करने के लिए उच्चस्तरीय समिति बनाई जाएगी।

सेना की चुनौतियां

हालांकि, सेना के लिए हालात सामान्य करना आसान नहीं होगा। कई इलाकों में भीड़ अचानक भड़क जाती है। पत्थरबाजी और तोड़फोड़ की घटनाएं लगातार हो रही हैं। महिलाओं और बच्चों तक को विरोध प्रदर्शनों में आगे किया जा रहा है, जिससे सुरक्षा बलों के लिए स्थिति को नियंत्रित करना और भी कठिन हो रहा है।

भविष्य का खतरा

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हालात जल्द काबू में नहीं आए, तो नेपाल एक बड़े राजनीतिक संकट की ओर बढ़ सकता है। इससे न केवल नेपाल की आंतरिक स्थिति खराब होगी, बल्कि भारत और चीन जैसे पड़ोसी देशों पर भी असर पड़ेगा।

नेपाल की घटना को लेकर अंतरराष्ट्रीय चिंता

नेपाल की इस स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता जताई जा रही है। संयुक्त राष्ट्र ने नेपाल सरकार से संयम बरतने और आंदोलनकारियों से शांतिपूर्ण ढंग से निपटने की अपील की है। भारत सरकार ने भी अपने नागरिकों को नेपाल की यात्रा फिलहाल टालने की सलाह दी है।

नेपाल इस समय एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां सेना की मौजूदगी तो हालात को कुछ समय के लिए काबू में ला सकती है, लेकिन स्थायी समाधान केवल संवाद और राजनीतिक इच्छाशक्ति से ही संभव होगा। जनता की मांगों और सरकार की नीतियों के बीच संतुलन बनाना ही नेपाल के भविष्य की दिशा तय करेगा।

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