दो सौ बारह वर्ष पुरानी है शिवरतनगंज के दशहरा की परंपरा
1 min readपन्हौना रियासत के तालुकेदार शिवरतनसिंह ने डाली थी परंपरा
अर्जुन सिंह भदौरिया-
उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के तहसील तिलोई के सिंहपुर क्षेत्र के शिवरतनगंज में सन १८१० में पन्हौना रियासत के तालुकेदार शिवरंतन सिंह ने पहली बार दशहरे का आयोजन कराते हुए राम लीला की शुरुवात करायी थी। और तालुकेदार ने दस बीघे जमीन दशहरा आयोजन के लिए दी थी जो राजस्व अभिलेखों में आज भी राम लीला कमेटी के नाम दर्ज है।हालांकि इस जमीन के काफी भू-भाग पर अवैध कब्जा भी हो गया है। दो सौ बारह वर्ष पूर्व शुरू हुई रामलीला आज भी स्थानीय कस्बाइयों द्वारा उल्लास पूर्वक परंपरागत रूप से जारी है |
पन्हौना रियासत के तालुकेदार की रंग मंच की दिलचस्पी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रामलीला कराने के लिए एक महीने तक डेरा डालकर सभी कलाकारों के साथ यहीं रहते थे यहीं पर रिहर्सल होता था तत्पश्चात राम लीला का मंचन होता था। जानकार बताते हैं कि जहाँ पर शिवरतन गंज कस्बा बसा है यहाँ पर कभी बहुत ही बियावान जंगल हुआ करता था।और इसी जंगल को दशहरा मेला आयोजन का केंद्र बनाते हुए तालुकेदार शिवरतन सिंह ने पन्हौना गाँव से ही एक राम लीला का मंचन करने वालों की टोली तैयार करते हुए शुरुवात करायी थी। बाद में दर्जन भर से अधिक बनिया जाति के परिवारो को यहीं लाकर बसाया था। और कालान्तर में इस स्थान का नाम शिवरतन गंज पड गया|तालुकेदार शिव रतन सिंह की मौत के बाद इनके पुत्र तालुकेदार रावत कन्हैया बक्स सिंह ने बाजार की भी शुरुवात कराई थी।समय के साथ रामलीला व दशहरा के आयोजन को और् बृहद रूप देते हुए इस कार्यक्रम को तीन दिन से बढाकर एक सप्ताह कर दिया गया और आज भी वही परम्परा जारी है राम लीला में वर्षों से पात्र की भूमिका अदा करने वाले रमेश गुप्ता (दशरथ और बाली तथा नारद)बाबू लाल गुप्ता (जामवंत)राम शंकर मौर्य (सुग्रीव)सिद्धेश्वर अवस्थी परदे के पीछे प्राउंटर तथा विनोद या राकेश अवस्थी (हनुमान)अशोक अवस्थी (रावण) श्रवण कुमार अवस्थी (राम)अश्वनी अवस्थी(लक्ष्मण)चंदन श्रीवास्तव(भरत) रामप्रकाश यादव(शत्रुहन) का पात्र अदा करते हैं।यह सभी लोग आज भी एक वर्ष दशहरे के आयोजन का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते है और अपने अपने पात्र का अभिनय बड़ी ही तल्लीनता के साथ निभाते हैं। राम व सीता जैसे पात्र का अभिनय करने वाले कलाकार लगातार उम्र के अनुसार बदलते रहते है | वर्तमान में श्रवण कुमार( राम )व अश्वनी (लक्ष्मण)के पात्र अभिनीत कर रहे हैं ।राम लीला कमेटी के प्रबंधक सुरेश सिंह (धुन्नी)जो पेशे से अधिवक्ता है का कहना है कि शिवरतनगंज कस्बे का नाम यहाँ पर राम लीला व दशहरा के आयोजन की शुरुवात करने वाले तालुकेदार शिवरतन सिंह के नाम पर पडा और शुरुवात में कस्बे में वही परिवार बसे थे। जो रामलीला में भूमिकाएं अदा करते थे| वर्ष 1904 में शिवरतन गंज में थाना बनने के साथ ही कस्बे में आबादी का बिस्तार होना शुरू हुआ जो आज हजारों की आबादी में तब्दील हो गया है | विजय दशमी के दिन दशहरा मैदान में रावण बध की सजीव लीला का आनंद लेने के लिए क्षेत्र के सैकड़ों गांवों की हजारों की भीड़ आज भी उमड़ती है |
तालुकेदार द्वारा रचित किताब से होती है रामलीला
तालुकेदार कन्हैया बक्श सिंह की लिखी राधेश्याम कृत रामलीला की पुस्तक से शिवरतनगंज की रामलीला का मंचन आज भी होता है।बताते हैं कि लगभग पचास वर्षों तक रामलीला मंचन में पात्र करने वालों के लिए तालुकेदार द्वारा लिखी रामलीला की किताब के अनुसार सभी पात्रों के लिए उनके संवाद लिखने का काम मोक्षेलाल जायसवाल करते थे।कुछ साल पहले उनकी मौत हो गई है लेकिन आज भी उन्ही के लिखे संवाद रामलीला मंचन में बोले जाते हैं।