#MAHAKUMBH2025 : महाकुम्भ का शुभारम्भ एक करोड़ से अधिक श्रद्धांलुओं ने संगम में लगाई डुबकी, आइये जानते हैं कुम्भ का महत्व !
1 min read
REPORT BY NEERAJ SINGH
NEWS DESK PRAYAGRAJ ।
#MAHAKUMBH2025
प्रयागराज में पौष पूर्णिमा पर महाकुंभ 2025 का भव्य शुभारंभ हो गया है जोकि करीब दो माह तक चलेगा जिसमें करीब 45करोड़ लोगों के आने की सम्भावना है। पहले स्नान पर्व पर श्रद्धालुओं का आस्था का समागम देखा गया, जहां हर हर गंगे के जयकारों के बीच श्रद्धा का महासंगम हुआ।तड़के भोर से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं।संगम नोज सहित तीन दर्जन स्नान घाटों पर श्रद्धालु स्नान कर रहे हैं।
इस पूर्णिमा स्नान के साथ ही कुंभ मेले की औपचारिक शुरुआत हो गई है।कल्पवासी आज से कल्पवास शुरू करेंगे, बड़ी तादाद में श्रद्धालु संगम पहुंच रहे हैं, जहां सुरक्षा के चाक चौबंद इंतजाम किए गए हैं।जल पुलिस और NDRF की टीम स्नान घाटों पर तैनात हैं और श्रद्धालुओं के आने-जाने के लिए निर्धारित मार्ग बनाए गए हैं।
सीएम योगी ने X पर दी महाकुंभ के शुभारंभ
सीएम योगी आदित्यनाथ ने X पर पोस्ट करते हुए पौष पूर्णिमा की बधाई दी और महाकुंभ के शुभारंभ की जानकारी दी।उन्होंने लिखा, “आज से तीर्थराज प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ हो रहा है, जो विश्व के विशालतम आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम के रूप में जाना जाता है।”सीएम ने पूज्य संतों, कल्पवासियों और श्रद्धालुओं का हार्दिक स्वागत करते हुए मां गंगा से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना की…
महाकुम्भ को लेकर पीएम ने किया ट्वीट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया “भारतीय मूल्यों और संस्कृति को संजोने वाले करोड़ों लोगों के लिए यह एक बहुत ही खास दिन है। महाकुंभ 2025 प्रयागराज में शुरू हो रहा है, जो आस्था, भक्ति और संस्कृति के पवित्र संगम में अनगिनत लोगों को एक साथ लाएगा। महाकुंभ भारत की कालातीत आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है और आस्था और सद्भाव का उत्सव मनाता है…”
कब कब आता है महाकुम्भ
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति, आस्था और परंपरा का एक अद्वितीय उत्सव है। इसकी खासियतें इसे न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाती हैं। महाकुंभ हर 12 वर्ष बाद इसलिए आता है क्योंकि इसका आधार ज्योतिषीय और खगोलीय गणनाओं पर आधारित है। यह हिंदू धर्म में गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम पर आयोजित होने वाला एक पवित्र मेला है। इसके पीछे मुख्य कारण हैं –
ग्रहों की विशेष स्थितियां
महाकुंभ तब आयोजित होता है जब बृहस्पति (गुरु) ग्रह और सूर्य की स्थिति एक विशेष राशि में होती है।
हरिद्वार: सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में।
प्रयागराज: सूर्य मकर राशि में और बृहस्पति वृषभ राशि में।
उज्जैन: सूर्य सिंह राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में।
नासिक: सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में।
संपूर्ण ज्योतिष चक्र
बृहस्पति को अपनी एक कक्षा पूरी करने में लगभग 12 वर्ष लगते हैं। इसी कारण महाकुंभ हर 12 वर्ष में आयोजित होता है।
कुम्भ की पौराणिक मान्यता
समुद्र मंथन के दौरान अमृत प्राप्ति के बाद देवताओं और असुरों में अमृत-कलश को लेकर संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में 12 दिव्य दिन लगे, जो मानवों के लिए 12 वर्षों के बराबर होते हैं।
इन 12 दिव्य दिनों के दौरान अमृत की बूंदें चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक) पर गिरीं। यही स्थान कुंभ मेले के आयोजन स्थल बने।
धर्म और आस्था का चक्र
भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार, इन स्थानों पर कुंभ स्नान करने से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए हर 12 वर्षों के अंतराल पर इस महायोग का आयोजन होता है। महाकुंभ एक अद्वितीय धार्मिक और खगोलीय परंपरा है, जो आस्था और विज्ञान का अद्भुत संगम दर्शाता है।
इन अनोखे साधु-संतों की उपस्थिति महाकुंभ 2025 को और भी रोचक और आकर्षक बना रही है।कुंभ मेला भारतीय संस्कृति, आस्था और परंपरा का एक अद्वितीय उत्सव है। इसकी खासियतें इसे न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाती हैं।
कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा जनसमागम का केंद्र
कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जिसमें लाखों-करोड़ों लोग एक साथ शामिल होते हैं। इसमें भारत और दुनिया के कोने-कोने से श्रद्धालु, पर्यटक और साधु-संत आते हैं और इस मेले का आंनद प्राप्त करते हैँ। दुनिया भर को मेले में भारतीय धार्मिक संस्कृति को करीब से देखने का मौका मिलता है।
सामाजिक समरसता का प्रतीक है कुम्भ
कुंभ मेला जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र से ऊपर उठकर सभी को एक समान मंच पर लाता है। यह सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
आध्यात्मिकता और ज्ञान
कुंभ मेला केवल स्नान तक सीमित नहीं है; यहां धार्मिक प्रवचन, योग शिविर, और ध्यान सत्र आयोजित किए जाते हैं।धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन और चर्चा यहां का प्रमुख आकर्षण होता है।
सांस्कृतिक धरोहर
मेले में पारंपरिक नृत्य, संगीत और भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।यहां हस्तशिल्प, स्थानीय खानपान और प्राचीन भारतीय कला का प्रदर्शन होता है।
आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव
कुंभ मेला को पवित्र ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। यहां आने वाले लोग मन की शांति और आत्मशुद्धि का अनुभव करते हैं।
मेले की भव्यता
कुंभ मेला विशेष रूप से भव्य आयोजन होता है। यहां के घाट, शिविर, झांकियां और साधु-संतों का जमावड़ा एक अलग ही दृश्य प्रस्तुत करता है।
अंतरराष्ट्रीय पहचान
कुंभ मेले को यूनेस्को ने “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर” के रूप में मान्यता दी है, जो इसकी वैश्विक प्रतिष्ठा को दर्शाता है।कुंभ मेला न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और आस्था का जीवंत प्रतीक भी है।
आकर्षण का केंद्र होते हैं मेले में साधु संत
महाकुंभ 2025 में विभिन्न प्रकार के साधु-संत शामिल होते हैं, जैसे नागा साधु, अग्नि साधु, तपस्वी, अवधूत, और दिगंबर साधु। ये अपनी साधना और जीवनशैली से मेले को खास बनाते हैं। कुछ साधु अजीबोगरीब साधना करते हैं, जैसे सिर के बल खड़े रहना, मौन व्रत, एक हाथ ऊपर उठाए रखना, आदि।इनमें कुछ साधु संतो का विवरण निम्नवत है –
महाकाल गिरी बाबा: राजस्थान के जोधपुर निवासी ये बाबा पिछले 9 वर्षों से अपना एक हाथ ऊपर उठाए हुए हैं, जिससे उनके नाखून अत्यधिक बढ़ गए हैं।
कंप्यूटर बाबा: दास त्यागी नामक ये बाबा तकनीक में विशेष रुचि रखते हैं और अपने साथ लैपटॉप रखते हैं, जिस पर वे कार्टून देखते हैं।
लिलिपुट बाबा: 57 वर्षीय बाबा गंगा गिरी अपनी अनोखी कद-काठी और जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने पिछले 32 वर्षों से स्नान नहीं किया है।
चाबी वाले बाबा: उत्तर प्रदेश के रायबरेली निवासी हरिशचंद्र विश्वकर्मा के पास 20 किलो की बड़ी चाबी है, जिससे वे लोगों के मन में बसे अहंकार का ताला खोलते हैं।
रुद्राक्ष बाबा: इन बाबाओं के शरीर पर 11,000 से अधिक रुद्राक्ष की मालाएं हैं, जिनका कुल वजन 30 किलो से अधिक है।
डिजिटल मौनी बाबा: ये बाबा पिछले 12 वर्षों से मौन व्रत धारण किए हुए हैं और अपनी बात डिजिटल बोर्ड पर लिखकर व्यक्त करते हैं।
बवंडर बाबा: इन्होंने अब तक एक लाख किलोमीटर की यात्रा की है और अपनी घुमक्कड़ी जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं।
स्प्लेंडर बाबा: ये बाबा 14 दिनों तक मोटरसाइकिल से सफर करते हैं और अपनी अनोखी साधना के लिए प्रसिद्ध हैं।
ई-रिक्शा बाबा: इन बाबाओं का वाहन विशेष रूप से सजाया गया है, जो मेले में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इन अनोखे साधु-संतों की उपस्थिति महाकुंभ 2025 को और भी रोचक और आकर्षक बना रही है।
महाकुम्भ का मेला प्रारम्भ हो गया है। मेले के पहले दिन ही एक करोड़ लोगों ने संगम में डुबकी लगाई। भारत के कोने कोने से लोग कुम्भ स्नान के लिए पहुँच रहे हैं। यही नहीं भारत के अलावा अमेरिका इक्वाडोर फ़्रॉन्स, इंग्लैंण्ड, जर्मनी, स्पेन रशिया सहित अनेक देशों से श्रद्धालू महाकुम्भ में पहुँच रहे हैं।