Lok Dastak

Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi.Lok Dastak

RELIGION SPIRITUALITY : स्वधर्मो निधनं श्रेय: पर धर्मो भयावह

1 min read
Spread the love

PRESENTED BY PRADEEP CHHAJER

BORAVAL RAJSTHAN

मौलिक सात्विक और शाश्वत स्वभाव है क्योंकि आत्मा का मूल स्वभाव शुद्ध रूप है । इन्हीं आत्मिक गुण और धर्म को मनुष्य की संपदा भी कहा गया है वह इसके विपरीत अहंकार, अपवित्रता, काम, क्रोध, लोभ, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, हिंसा, उपद्रव, निर्दयता, भय, दुख, अशांति आदि – आदि नकारात्मक गुण किसी भी आत्मा के ‘स्व’ धर्म नहीं हैं, अपितु हमारी प्रकृति के विरुद्ध परधर्म हैं। ये किसी भी मनुष्य का मूल स्वभाव नहीं है।

ये नकारात्मक वृत्तियां, वास्तव में परधर्म और भौतिकता के धर्म हैं अर्थात अंतरात्मा के दुर्बल, क्षण भंगुर और तामसिक दुष्प्रवृति आदि है। हमको पवित्रता और सुख-शांति रूपी स्वधर्म को स्थापित करना है । वह हमारे द्वारा सद्गुण रूपी स्वधर्म का मनन चिंतन, कर्म व्यवहार आदि जीवन में पालन करने से ही ईर्ष्या, द्वेष, नफरत, वैमनष्यता या हिंसक प्रवृत्तियों आदि का अंत हो सकता है।

हम अगर नियमित रूप से व्यक्तिगत, व्यावसायिक, सामाजिक और शिक्षा के स्तर पर स्वधर्म रूपी आध्यात्मिक व मानवीय मूल्यों का प्रयोग, विकास, प्रोहत्सान और प्रसार आदि में करे तो राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर सही से अच्छा माहौल स्थापित कर सकते है । वह यह होने में देरी नहीं लगेगी।

हमारे द्वारा ज्ञान, ध्यान एवं आगम ग्रथों आदि द्वारा वर्णित शुद्ध, स्वस्थ व सात्विक जीवन शैली का नियमित अभ्यास, अनुभव एवं आचरण से ही, ये विकार व कुसंस्कार आदि समाप्त हो सकते हैं और उसकी जगह सद्गुण, स्वधर्म आदि संपदा विकसित हो सकती है।

अतः संस्कार से ही संसार में सही संस्कृति वाली नीति के अनुसार, स्वधर्म के आधार से ही इस धरा पर विश्व बंधुत्व, वसुधैव कुटुंबकम, की पुनर्स्थापना हो सकती है। यही हमारे लिए काम्य है ।

नोट- लेख में लेखक के अपने निजी विचार हैं I 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright ©2022 All rights reserved | For Website Designing and Development call Us:-8920664806
Translate »