ईश्वर की प्रार्थना करने से बुद्धि एवं विवेक जागृत होती है- स्वामी मुक्तिनाथानंद
1 min readREPORT BY AMIT CHAWLA
LUCKNOW NEWS I
सोमवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद ने बताया कि ज्ञान लाभ करने के लिए श्रद्धा अत्यंत जरूरी है। श्रद्धा की संज्ञा देते हुए शास्त्र में कहा गया है,
गुरु वेदांत वाक्येषु अतीवविश्वास: इति श्रद्धा।
अर्थात गुरु वाक्य में एवं वेदांत शास्त्र में जो लिखित ज्ञान है उसमें संपूर्ण विश्वास को ही श्रद्धा कहा जाता है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं, “श्रद्धा ही हमारे जीवन की सफलता की नीव है, जिसके भीतर जितनी श्रद्धा होगी वो उतना आगे बढ़ेंगे।”
श्रीमद्भगवद्गीता में इसलिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा –
श्रद्धावांल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।
अर्थात “जितेंद्रिय, साधन परायण और श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है तथा ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलंब के तत्काल ही भगवत् प्राप्ति रूप परम शांति को प्राप्त हो जाता है।”
श्रीमद्भगवद्गीता (4:40)* में कहा गया है –
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:।।
अर्थात “विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है। ऐसे संशययुक्त मनुष्य के लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है।”
स्वामी मुक्तिनाथानंद ने कहा अतएव हमें ईश्वर के चरणों में निरंतर प्रार्थना करना चाहिए ताकि हमारी विवेक-बुद्धि जाग्रत हो एवं हम गुरु एवं शास्त्र के वचन में अविचलित विश्वास रखते हुए उसी अनुसार जीवन गठन कर सके एवं यह दुर्लभ मनुष्य जीवन को पाकर इस जीवन में ही ईश्वर को प्रत्यक्ष करते हुए जीवन सफल और सार्थक कर सके। मन में कभी संशय का स्थान न दिया जाए, अविचलित श्रद्धा के साथ अगर हम जीवन निर्वाह करें तब जीवन में सफलता अनिवार्य है।