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आदि शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का विस्तार किया-स्वामी मुक्तिनाथानन्द

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REPORT BY LOK REPORTER

LUCKNOW NEWS I 

रामकृष्ण मठ, निराला नगर, लखनऊ में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जयंती बडे ही हर्षोल्लास के साथ रामकृष्ण मन्दिर में मनाया गया I कार्यक्रम की शुरूआत मंगल आरती के बाद ‘श्री शंकर देशिकाष्टकम’ की स्तुति के साथ वैदिक मन्त्रोंचारण, पूजा एवं आरती रामकृष्ण मठ के स्वामी इष्टकृपानन्द द्वारा किया।

युवाओं के व्यक्तित्व विकास और निर्देशित ध्यान का कार्यक्रम स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज द्वारा हुआ जिसमें बड़ी संख्या में विवेकानन्द युवा संघ व अन्य युवाओं ने भाग लिया। सायं श्री श्री ठाकुर जी की संध्या आरती एवं भजन के उपरान्त श्री श्री शंकराचार्य की आरती हुई। श्री शंकराचार्य द्वारा रचित “चरपटपंजारिका स्तोत्रम“ का समूह में गायन रामकृष्ण मठ के स्वामी पारगानन्द के नेतृत्व में किया गया।

 

तत्पश्चात *मठ के अध्यक्ष, श्रीमत् स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज ने अपने अध्यक्षीय भाषण में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की जयंती पर उनकी जीवनी एवं वाणी पर व्याख्यान देते हुए कहा कि* भारत में चार मठों की स्थापना करने वाले जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की जयंती आज पूरा सनातन धर्म मना रहा

शंकराचार्य का निधन 32 साल की उम्र में उत्तराखंड के केदारनाथ में हुआ। लेकिन इससे पहले उन्होंने हिंदू धर्म से जुड़ी कई रूढ़िवादी विचारधाराओं से लेकर बौद्ध और जैन दर्शन को लेकर कई चर्चा की हैं.जिसके बाद शंकराचार्य को अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिए प्रयोग की जाने वाली उपाधि माना जाता है।

उन्हें जगतगुरु या भगवत्पाद आचार्य भी कहा जाता था क्योंकि उन्होंने वेदों के ज्ञान का प्रचार किया और लोगों को अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को समझाया, जो हिंदू धर्म के आध्यात्मिक अहसास को प्रभावित करने के लिए जाना जाता था।

शंकराचार्य ने सनातन धर्म के प्रचार और प्रतिष्ठा के लिए भारत के 4 क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए। उन्होंने अपने नाम वाले इस शंकराचार्य पद पर अपने चार मुख्य शिष्यों को बैठाया। जिसके बाद इन चारों मठों में शंकराचार्य पद को निभाने की शुरुआत हुई। चंद्रमा के समान दीप्तिमान, ज्ञान और आनंद का प्रतिनिधित्व करने वाला श्री चंद्रमौलीश्वर क्रिस्टल लिंग, न केवल श्रृंगेरी में बल्कि अन्य तीन- बद्री, द्वारका और पुरी में भी पूजा की प्रमुख मूर्ति है।

किंवदंती है कि इस स्फटिक लिंग को श्री आदि शंकराचार्य ने अपने चार शिष्यों को सौंप दिया था। श्री आदि शंकराचार्य ने स्वयं भगवान शिव से चार लिंग प्राप्त किये थे। तब से, लिंगों को विभिन्न आचार्यों द्वारा प्रसन्न किया गया है जिन्होंने पीठों को सुशोभित किया है। आज, चंद्रमौलेश्वर लिंग को दिन में तीन बार, सुबह और शाम, शास्त्रों के अनुसार “षोडश-उपचार“ से प्रसन्न किया जाता है।

देशभर में धर्म और आध्यात्म के प्रसार के लिए 4 दिशाओं में चार मठों की स्थापना की गई। जिनका नाम है – ओडिशा में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन मठ, कर्नाटक का शृंगेरीपीठ, गुजरात का द्वारका में शारदा मठ और उत्तराखंड का वदरिकाश्रम के जोशीमठ आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों में सबसे योग्यतम शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरु की थी, जो आज भी प्रचलित है।

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