दो युवतियों में प्यार का चढ़ा ऐसा नशा घर छोड़ हुई फ़रार
1 min readREPORT BY LOK REPORTER
LUCKNOW NEWS।
प्यार का नशा ऐसा होता है कि जाति धर्म की बात भूल जाते हैं और लड़के ल़डकियों के साथ भाग जाते हैं और एक दूसरे के साथ रहने की कसम खाते हैं I लेकिन यहां तो माजरा कुछ और ही है। यहां पर प्यार करने वाले दोनों समलैंगिक हैं I एक युवती को युवती से प्यार हो गया। प्यार इस कदर परवान चढ़ा कि युवती दूसरी युवती को लुधियाना से भगाकर घर ले आई। अब दोनों शादी रचाएंगी।
जिले के पहले समलैंगिक विवाह के मामले से जहां परिजन कुछ बोल नहीं रहे हैं, वहीं इस प्रकरण को लेकर ग्रामीणों में नाराजगी है। उनका कहना है कि ऐसा होने से उनके गांव की बदनामी हो रही है। इसका प्रभाव अन्य लड़कियों पर पड़ेगा। दरअसल, भदोखर थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली युवती करीब छह महीने पहले नौकरी के सिलसिले में लुधियाना गई थी। युवती लुधियाना की कताई फैक्टरी में काम करने लगी।
इस दौरान लुधियाना की रहने वाली एक युवती से वह प्यार कर बैठी। दोनों के बीच प्यार गहरा हुआ तो उन्होंने शादी करने की ठान ली। यही वजह है कि यहां से गई युवती दूसरी युवती को भगाकर अपने घर ले आई और परिजनों से दोनों की शादी करने की बात कही। परिजन भी इस पर राजी हो गए।
बताया जा रहा है कि दोनों युवतियां शहर के एक आश्रम में विवाह करेंगी। दोनों की फोटो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रही है। यह बात गांववालों को पता चली तो उनमें नाराजगी व्याप्त हो गई। ग्रामीण दबी जुबान से कहते हैं कि इस शादी का विरोध होना चाहिए। इस शादी से उनके गांव व समाज में अलग संदेश जाएगा। उधर, थाना प्रभारी शिवाकांत पांडेय ने बताया कि उन्हेंं प्रकरण की जानकारी नहीं है।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं
विगत वर्ष अक्टूबर में कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी अनुमति नहीं दी है। सुप्रीम कोर्ट का समान लिंग के व्यक्तियों के बीच शादी को कानूनी मान्यता देने से इनकार करना, देश के समलैंगिक समुदाय के लिए बड़ा कानूनी धक्का है। हाल के वर्षों में कानून में हुई प्रगति और व्यक्तिगत अधिकारों के गहरे होते अर्थ को देखते हुए, व्यापक रूप से यह उम्मीद थी कि पांच न्यायाधीशों
भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल ने फैसला दिया है कि समलैंगिक जोड़ों को अपने मिलन (यूनियन) के लिए मान्यता हासिल करने का अधिकार है, लेकिन साथ ही विशेष विवाह अधिनियम के उस आशय के प्रावधानों में काट-छांट करने (रीड डाउन) से इनकार किया है।
दूसरी तरफ, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा ने इस नजरिए को खारिज किया है और कहा है कि कोई भी ऐसी मान्यता विधायिका द्वारा बनाये गये कानून पर ही आधारित हो सकती है। यानी, अदालत ने सरकार के इस दृष्टिकोण को स्वीकार किया है कि समलैंगिक शादियों को कानूनी बनाने का कोई भी कदम विधायिका के अधिकार-क्षेत्र में आयेगा।
यह निष्कर्ष निकालते हुए कि विवाह का अधिकार कोई मौलिक अधिकार नहीं है, अदालत ने इस उम्मीद को खारिज कर दिया है कि वह विवाह के मामले में समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव जारी रखने की इजाजत नहीं देगी।