बाल्यकाल से ही बच्चों को देना चाहिए धर्म व अध्यात्म का ज्ञान
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REPORT BY GOPAL CHATURVEDI
VRINDAVAN NEWS I
रमणरेती रोड़ स्थित श्रीजी सदन (फोगला आश्रम) में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में श्रीस्वामी करपात्र धाम के संस्थापक स्वामी त्र्यंबकेश्वर चैतन्य महाराज ने अपनी अमृतमयी वाणी के द्वारा सभी भक्तों-श्रृद्धालुओं को श्रीमद्भागवत की कथा की कथा श्रवण कराते हुए कहा कि बाल्यकाल में दिया गया ज्ञान बच्चों को जीवन भर स्मरण रहता है।इसलिए बाल्यकाल में बच्चों को धर्म व आध्यात्म का ज्ञान दिया जाना चाहिए।
माता-पिता व गुरु की सेवा एवं प्रेम के साथ समाज में रहने की प्रेरणा ही भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति का मूल मंत्र है।माता के दिए हुए अच्छे संस्कारों के कारण ही बाल भक्त ध्रुव को पांच वर्ष की आयु में ही भगवान का दर्शन प्राप्त हुआ।साथ ही उन्हें 36 हजार वर्ष तक राज्य भोगने का वरदान प्राप्त हुआ था। पूज्य महाराजश्री कहा कि पिता अगर कुमार्ग पर चले, तो पुत्र का कर्तव्य है कि उसे सही मार्ग पर लाए।
अनेकों विपरीत परिस्थितियों के उपरांत भी भक्त प्रहलाद ने प्रभु भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा।इसी के फलस्वरूप भगवान नारायण ने नरसिंह रूप धारण कर दैत्यराज हिरण्यकश्यप का वध कर अपने परमधाम को पंहुचाया। कथा में पधारे ब्रजभूमि कल्याण परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पण्डित बिहारीलाल वशिष्ठ व ब्रज सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने व्यासपीठ पर आसीन स्वामी त्र्यंबकेश्वर चैतन्य महाराज का माल्यार्पण कर, शॉल ओढ़ाकर एवं ठाकुरजी का पटुका, चित्रपट आदि भेंट कर सम्मान किया।
इस अवसर पर संत गुण प्रकाश चैतन्य महाराज, पवन कृष्ण महाराज, युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा, बाल किशन शर्मा उर्फ बालो पण्डित आदि के अलावा विभिन्न क्षेत्रों के तमाम गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। कथा के आयोजक तुलस्यान परिवार (बराकर) ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।