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प्रत्येक जीव भक्ति अर्जन कर भगवान को प्राप्त कर सकते हैं- स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

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REPORT BY LOK REPORTER 

LUCKNOW NEWS I 

बुधवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि भक्ति अर्जन करने के लिए कोई भी योग्यता का प्रयोजन नहीं है एवं न केवल मनुष्य, पशु-पक्षी आदि भी भक्ति अर्जन कर सकते हैं।

स्वामी जी ने बताया कि भगवान श्री रामचंद्र शबरी जैसे अशिक्षित भील रमणी के भक्ति के कारण चलकर उनके आश्रम में पदार्पण करते हुए उनको मुक्ति प्रदान किया एवं यह भी बताया कि न केवल मनुष्य वरन् मनुष्येतर प्राणी भी भक्ति अर्जन कर सकते हैं।

अध्यात्म रामायण (3:10:28)* में लिखा है –

स्त्रियो वा पुरुषस्यापि तिर्यग्योनिगतस्य वा।

भक्ति: सजांयते प्रेमलक्षणा शुभलक्षणे।।

अर्थात श्री रामचंद्र ने शबरी को बताया – हे शुभलक्षणें ! भाग्यशीला रमणी, जिस किसी में यह भक्ति साधन होते हैं वो स्त्री-पुरुष अथवा पशु-पक्षी आदि कोई भी क्यों न हो उसमें प्रेमलक्षणा भक्ति का आविर्भाव हो सकता है। यह एक आश्चर्य की बात है कि न केवल मनुष्य, पशु-पक्षी आदि भी भक्ति के माध्यम से इस जन्म में ही मुक्ति लाभ कर सकते हैं।

स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने इसका दृष्टांत देते हुए कहा स्वयं हनुमान जी बंदर का शरीर प्राप्त करते हुए भी ज्ञानियों के भीतर सर्वश्रेष्ठ थे। श्री रामनाम संकीर्तन में उनकी स्तुति में कहा गया है –

वैदेहीसहितं सुरद्रुमतले हैमे महामण्डपे

मध्ये पुष्पक आसने मणिमये वीरासने संस्थितम्।

अग्रे वाचयति प्रभजंनसुते तत्त्वं मुनीन्द्रै: परं

व्याख्यातं भरतादिभि: परिवृतं रामं भजे श्यामलम्।।

अर्थात जानकी माता तथा श्री रामचंद्र एवं भरत आदि उनके भ्रातवन्द के परिवार के सहित स्वयं हनुमान जी रामचंद्र के दरबार में विराजमान है एवं सभा मंडल के केंद्र में मुनिगण के समक्ष वीरासन में बैठे हुए तत्व व्याख्या कर रहे हैं एवं स्वयं श्री रामचंद्र सभी के प्रश्न का समाधान कर रहे हैं। अर्थात भक्ति के कारण हनुमान जी भी श्रेष्ठ बन गए।

वैसे ही महाभारत में कागभुशुण्डि एवं वक का उल्लेख है जहां पर पशु योनि में भक्ति एवं ज्ञान की पराकाष्ठा दिखाई पड़ती है।
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी  ने कहा भक्ति सबके लिए सहज उपलब्ध है, यह मानते हुए अगर कोई ईश्वर के चरणों में भक्ति के लिए प्रार्थना करें तब अवश्य वे इस जीवन में ही ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं एवं ईश्वर की कृपा से इस जीवन में ही उनका दर्शन करते हुए जीवन सार्थक कर सकते हैं।

 

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