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आचार्य श्री तुलसी का 110 वाँ अणुव्रत दिवस…

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PRESENTED BY PRADEEP CHHAJER

BORAVER, RAJSTHAN I 

वि. सं. 1971 को कार्तिक शुक्ल द्वितीया को के दिन क्रांति की
मशाल-पौरुष का चिराग़- युग को बदलने का फ़ौलादी संकल्प लेकर जन्मे बीसवीं सदी के आध्यात्मिक क्षितिज पर प्रमुखता से उभरने वाले एक महान संत ,आँखों में तेजस्विता- वाणी में ओज- चुंबकीय आकर्षण ,मानवता के मसीहा, ओजस्वी आभामंडल ,तेजस्वी महान वक्तृत्व , नारी जाती के उन्नायक,महान अवदानों को प्रदत्त करने वाले ,गहन गम्भीर,आगम सम्पादन का काम को सुचारू रूप देने वाले,पद निर्लप्त ,अपने आचार्यपद का विसर्जन कर ममत्व के प्रति अनासक्त प्रेरक, जन जन के मसीहा,जो नश्वर शरीर से मुक्त होकर भी लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों में राज करते महावीर के इस पट्टधर तेरापंथ धर्मसंघ के भव्य सूर्य परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी जैसे महामानव की अभिवंदना ।

आचार्यश्री तुलसी की पावन स्मृति का अर्थ है – समाज और देश को उन्नति की दिशाओं की ओर अग्रसर करना क्योंकि देश की ज्वलंत राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में उनके अप्रतिम योगदान रहे हैं। सुप्रसिद्ध जैनाचार्य होते हुए भी उनके कार्यक्रम संप्रदाय की सीमा-रेखाओं से सदा ऊपर रहें। उनका दृष्टिकोण असांप्रदायिक था। जब लोग उनसे उनका परिचय पूछते तब वे स्वयं अपना परिचय इस तरह से देते थे- ‘मैं सबसे पहले एक मानव हूं, फिर मैं एक धार्मिक व्यक्ति हूं, फिर मैं एक साधनाशील जैन मुनि हूं और उसके बाद तेरापंथ संप्रदाय का आचार्य हूं।’

आचार्य तुलसी सचमुच में व्यक्ति नहीं वे धर्म, दर्शन, कला, साहित्य और संस्कृति के प्रतिनिधि ऋषि-पुरुष थे। उनका संवाद, साहित्य, साधना, सोच, सपने और संकल्प सभी मानवीय-मूल्यों के उत्थान और उन्नयन से जुड़े थे जिनका हर संवाद संदेश बन गया।नकारात्मकता में भी सदैव सकारात्मकता खोजने का मार्ग बताने वाले गुरुदेव तुलसी का अमर वाक्य है की जो तुम्हारा करे विरोध तुम समझो उसे विनोद । उक्त बात अगर हम आत्मसात कर ले तो विपरीत परिस्थिति में भी सम्भल पाएँगे। गणाधिपती गुरुदेव तुलसी द्वारा रचित गीत की पँक्तियाँ – चेतन चिदानंद चरणा में सबकुछ अर्पण कर थारो ।

बहुत ही प्रेरणा दायक गीत आत्मा से जुड़ जाएँ प्रीत । पर इन्सान की यह कैसी नीति? भटक रही है उसकी मति । कस कर पकड़ रखी है कर्मॉ की रस्सी ।जो पड़ सकतीं है ढीली । अगर इन्सान छोड़ दे अपनी नादानी धर्म के सार पर तन, मन और वाणी से । अर्पित कर दे अपनी जिन्दगानी तो स्वत; ही आशक्ति छुट जानी । मोहनीय कर्म पर गहरी चोट लगनी । संसार से विमुख हो आत्मशक्ति जगनी जरुरी है संसार की नश्वरता समझ आनी ।अणुव्रत का ऐसा अवदान दिया कि संघ भौगोलिक सीमाओं के पार गया। नई मोड़, जीवन विज्ञान , अहिंसा समवाय , युवा व महिला उत्थान। उपासक श्रेणी, ज्ञानशाला, जैन विद्या आदि-आदि कितने ऐतिहासिक काम किए। पारमार्थिक शिक्षण संस्थान, जैन विश्व भारती संस्थान जैसे भी महान अवदान दिए।

ऐसे विरल युगपुरुष की गौरवगाथा बड़ी लंबी है। मैं तो कहूँगा उन्होंने जो दो-दो आचार्योंको तैयार किया व संघ के लिए महनीय काम किया। ऐसे विरल आचार्य को उनके 110 वें जन्म दिवस पर देते हैं हम भाव भरी श्रद्धांजलि श्रद्धासिक्त भावांजली।

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