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आमंत्रित विशेष रचना…….. बाल दिवस

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PRESENTED BY PRADEEP CHHAJER 

BORAVER,  RAJSTHAN I 

बाल मन हैं जीवन का अलग ही आधार
इसमें आते रहते हैं नित-नए उर्वर विचार
हम पढ़ते है महत्व बाल मन का मगर
हम सही से अपनाए इसको जीवन आचरण
में तो बन जायेंगे हमारे निर्मल आचार ।
बाल मन की तरह हमारी सुंदर सोच है
तो सारा संसार हमको सुंदर नज़र आएगा ।
ज़िंदगी में हम कभी भी अपने किसी भी ,
तरह के हुनर पर किंचित घमंड ना करे ।
क्योंकि बाल मन की तरह निर्मलता
जब खत्म होती है तो पत्थर के
पानी में गिरने के समान अपने ही
कर्म रूपी वजन में हम भारी हो जाते है ।
बाल मन पल – पल में हंसना
पल – पल में रोना और रूठ जाना
हर पल को अपने ढंग से जीता हैं ।
लम्बी डोर न किसी बात की खिंचता
भूल भूत को,वर्तमान में ही जीता।
नहीं परिभाषा मैं दुश्मनी की जानता
सब मुझे अपने से ही प्यारे प्यारे लगते
अपना पराया क्या होता ? मिल बांटकर
साथ सबके खाता पीता खेला करता।

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