हर वाक्य है कीमती, वाकई_______
1 min readपैसे की माया कितनी ही बढ़ जाए मन में दीन- दुखी के प्रति संवेदना की भावना रहे।धन के अहम ने अच्छे अच्छे राजाओं को रंक बना दिया तो हम किस खेत की मूली हैं। लक्ष्मी का सदुपयोग सद्दकार्य उसका अपने जीवन में ठहराव का सम्पन्नता का प्रतीक हैं। इसलिए ना करे घमंड हम पूत- परिवार धन का,मिला सब पिछले भव की पुण्याई का।
अब उसे सुकृत दान कर आगे का टिफ़िन तैयार रखे कमल सम निर्लिप्त भाव से अपने जीवन को आगे बढ़ाए। घन आज है कल नही व्यवहार आज है और कल भी रहेगा। जन्म लिया वो प्रथम दिन ओर जिस दिन होगी आखिरी स्वाँस वो होगा हमारा अंतिम दिन । समय तो आज़ाद है इसको बांधे नहीं क्योंकि यह कभी भी बँधा नहीं है । घड़ी बंद हो सकती है लेकिन समय बंद नहीं होता है । इंसान ने ग़लती कर दी।उसको भय सताता है कि उस ग़लती की भयंकर डाँट पड़ेगी।
उस ग़लती को छुपाने के लिए पहले झूठ बोलता है फिर उसकी सफ़ाई के लिए झूठ पर झूठ बोलता है।अरे हमने ग़लती की,उसको स्वीकार करो। एक ग़लती को छुपाने के एवज़ में पता नहीं कितने झूठ बोलना पड़ता है।फिर वो झूठ बोलना हमारे संस्कार में आने लगता है।हो सकता है वो झूठ उस समय तो हमारा बचाव कर दिया।पर वो झूठ आप ज़िंदगी भर भूल नहीं पाओगे।हर समय आपको भय भी रहेगा कि कंहि मेरा झूठ पकड़ा ना जाए। झूठ बोलना और किसी से फ़रेब करना हर दृष्टि से घाटे का सौदा है।झूठ बोलने से हमारी पुण्यायी समाप्त होती है और फ़रेब करने से आत्मा काली और असंख्य कर्मों का बंधन।
अपनी ग़लती छुपाना और भय के कारण इंसान झूठ बोलता है।
क्यों झूठ बोलना ? वही लाया कलयुग जिसने अपने काम को कल पर टाला।जो अपने वर्तमान को बेच उसका दुरूपयोग कर भविष्य में सुख से जीने की कल्पना करने लगा।एक युग वह था जब मानव प्राचीन काल में घर संसार परिवार का त्याग कर अन्तश्चेतना की गहराई में झाँकता था ।अपने मानवीय हृदयांगम में करुणा संचारित होती थी। पर आज आज बिलकुल विपरीत
जैसे बाहरी जगत की चकाचौंध में मनुष्य स्वयं को भूल बैठा।अपने भीतर की परख छोड़कर बहिर्जगत में देखना शुरू कर दिया घर संसार परिवार त्याग आज दुनिया को बदलने की धुन में
ख़ुद को बादशाह समझ रहा ।
यही संसार की रीत हो चली की अपनी आत्मा सुधरे ना सुधरे अपनी छवि टिपटाप हो तो इसमें कोई दो राय नही है और कलयुग हम ही लाए है । संसार का सबसे बड़ा न्यायालय हमारे मन में हैं जिसको सब पता हैं कि क्या है सही और क्या है गलत जो अनवरत हमारे ज़ेहन में चलता रहता है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़,राजस्थान )