देव भूमि की दुर्गम और साहसिक यात्रा का अविस्मरणीय वृतांत
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यात्राएं हमें नये स्थान पर जाने पर नये लोगों के बारे जानने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करती हैं। इन यात्राओं से नये लोगों से मिलना और वहाँ के लोगों के त्योहार, संस्कार, रहन-सहन और उनके खान-पान के बारे मे जानकारी होती है। साथ ही, वहाँ के भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों के बारे मे भी पता चलता है।
यात्रा की कड़ी में इस बार मैं सपरिवार अप्रैल के अंतिम सप्ताह मे लखनऊ से मुंशियारी पिथौरागढ़ के लिए अपनी कार से प्रातः 6 बजे निकल गया, 85 किलोमीटर चलने के बाद चाय की तलब ने सीतापुर मे रुकने को मजबूर किया जहां कुल्हड़ की चाय की चुस्की ली।
उसके बाद फिर से ड्राइविंग सीट संभाली और गोला गोकरण नाथ, पूरनपुर, चूका इको टूरिस्म स्पॉट होते हुए पीलीभीत मे टाइगर रिजर्व के जंगल मे 13 किलोमीटर के सँकरे और रंबल स्ट्रिप(स्पीड ब्रेकर) जो कि वन्य जीव की सुरक्षा के मद्देनज़र बनाया गया है जिससे कोई भी रफ्तार से गाड़ी ना चला सके, के रास्ते होते हुए खटीमा से टनकपुर दिन मे 2:30 पर पहुंचे जहां सभी ने होटल मे लंच लिया।
उसके बाद हमलोग माँ पूर्णगिरी के दर्शन के लिए शाम 3:30 बजे दर्शन के लिए 3000 फीट की ऊंचाई पर चढ़ने के लिए 500 सीधी खड़ी सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए यात्रा शुरू की। एकदम सीधी खड़ी सीढ़ियों पर रुकते-चढ़ते माँ के दरबार मे 06:30 बजे शाम को पहुँचकर विधिवत दर्शन किया और माँ का आशीर्वाद लिया। मंदिर के प्रांगण से नेपाल की सीमा के भी दीदार हुए।
मंदिर से नीचे उतर कर आने मे 45 मिनट लगे, फिर वहाँ चाय से थकान मिटाकर चंपावत के रास्ते होते हुए रात्रि 10:30 बजे लोहाघाट पहुंचे, जहां रात्रि मे रुकने हेतु होटल लिया और रात्रि भोज कर सभी ने बिस्तर पकड़ लिया। अगले दिन प्रातः सभी लोग तैयार होने के बाद नाश्ते की टेबल पर बैठ गए और सभी ने स्वादिष्ट गरम-गरम आलू के पराठे और चाय का लुत्फ उठाया और आगे की 200 किलोमीटर मुंशियारी तक की यात्रा पिथौरागढ़, डिडिहाट और मदकोट होते हुए अंतिम पड़ाव मुंशियारी के लिए निकल पड़े।
रास्ते की प्राकृत्रिक सुंदरता देखने लायक थी और उस मौसम मे शुद्ध हवा लेने से बहुत सुकून मिल रहा था, मन तो ये कर रहा था की जीवन भर के लिए ये शुद्ध ऑक्सीज़न ग्रहण कर लूँ। रास्ते मे जहां-जहां झरने, नदी और गरम पानी का स्रोत मिल रहा था वहाँ रुककर प्रकृति का आनंद ले रहे थे।
प्रकृति की सुंदरता और खूबसूरती तो ऐसी थी कि जैसे आँखों मे बस गई हो। दिन मे 2 बजे पिथौरागढ़ जहां से धारचूला का रास्ता कटता है वहीं एक धामी के होटल मे सभी ने गरमा-गरम राजमा चावल का आनंद लिया, इस पड़ाव पर पहुँचते तक वातावरण मे अच्छी ठंड महसूस होनी शुरू हो चुकी थी।
मदकोट मे गरम पानी के स्रोत पर रुककर सभी लोग गरम पानी मे पैर डालकर थोड़ी देर बैठे, फिर शाम की चाय का आनंद लेते हुए झरनो के बीच से होते हुए शाम 7 बजे मुंशियारी पहुंचे, जो कि समुद्री तल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां कि छटा देखते ही बनती थी I
मुंशियारी मे काफी लोगों की भीड़ देखकर समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात हुई लेकिन कुछ दूर आगे बढने पर शंका दूर हो गई, क्योंकि नीचे मैदान मे फुटबाल का मैच चल रहा था और वे सभी उत्साहित दर्शक थे जो ऊपर सड़क के किनारे खड़े होकर मैच का मजा ले रहे थे। पहले से बुक किए होटल मे 7:30 बजे प्रवेश किया और फिर से चाय पी कर सभी ने ठंड और थकावट से राहत की सांस ली।
चाय के बाद पुनः हम सभी होटल से बाहर टहलने के लिए निकले तब तक पूरा बाज़ार बंद हो चुका था और सभी के घर पर अंधेरा छा गया था मानो कर्फ़्यू सा लग गया हो , हमलोग एकांत मे शांति के ठंडे वातावरण मे धीरे धीरे टहल रहे थे, 30 मिनट की वॉक के बाद हमलोगों ने होटल पहुँच कर रात्रि भोज किया और सोने चले गए।
अगले दिन की सुबह तो वास्तव मे देखने लायक थी सामने बर्फ से ढंकी पंचाचूली पर्वत की छटा देखने लायक थी। लगातार मैं उसको निहारते जा रहा था तभी कुछ पलों मे पर्वत पर लालिमा बिखरने लगी मानो ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने बर्फ पर सिंदूर छिड़क दिया हो, बिना पलक झपकाए इस सुंदरता को आँखों मे बसा लेना चाहता था, तभी सात घोड़ों पर सवार भगवान सूर्यदेव बर्फ के पहाड़ के पीछे से अवतरित हुए।
पंचाचूली पर्वत के बारे मे वहाँ के लोगों से जानकारी ली तो इसके इतिहास के बारे मे पता चला कि पंचाचूली पर पांचों पांडव भाई और पांचाली विराजमान हैं, इसीलिए इन पर्वत श्रेणियों को ‘पंचाचूली’ कहा जाता है। मुंशियारी आगमन पर पंचाचूली पर्वत, छिपलाकोट पर्वत, राजरम्भा पर्वत, हंसलिंग पर्वत, कैलाश द्वार एवं बद्रीनाथ द्वार का दर्शन होता है।
मुंशियारी मे दो दिन रुककर नन्दा देवी मंदिर, ट्राइबल हेरिटेज म्यूज़ियम, थमरी कुंड, ट्यूलिप गार्डेन और भग्गू फ़ॉल्स घूमे। मुंशियारी से 42 किलोमीटर की दूरी पर चीन की सीमा शुरू हो जाती है। तीसरे दिन प्रातः 8 बजे मुंशियारी से बागेश्वर के लिए प्रस्थान किया और रास्ते मे खलिया टॉप और बेर्थी फॉल पर समय व्यतीत किया। कई किलोमीटर तक कच्चा और दुर्गम रास्ता मिला और कई स्थानों पर पहाड़ के दरकने के कारण लंबे जाम को भी झेलना पड़ा।
अंततः शाम 6 बजे बागेश्वर पहुँच कर आराम फरमाया। रात्रि भोज और आराम करने के बाद अगले दिन सुबह 8 बजे लखनऊ वापसी के लिए अल्मोड़ा, हल्द्वानी, काठगोदाम, रुद्रपुर, काशीपुर, किच्छा, बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर, सीतापुर के रास्ते के लिए निकल पड़े।
लौटते समय पहले अलमोड़ा के निकट चितई देव ‘गोलू देवता मंदिर’ दर्शन के लिए पहुंचे जहां मान्यता है कि जो लोग यहाँ पत्र लिखकर गोलू देवता के पास फरियाद करते हैं उनकी मुरादें भगवान पूरी करते हैं। यहाँ पहुँचने के बाद देखा कि मंदिर के अंदर बाहर सभी तरफ पत्र और घंटियाँ बंधी हुईं थी, जो लोगों की मजबूत आस्था का प्रमाण है।
उसके बाद मॉल रोड स्थित खेम सिंह मोहन सिंह रौतेला की प्रसिद्ध दुकान से ‘बाल मिठाई’ खरीदी और स्वाद का आनंद लिया। अल्मोड़ा मे लंच करने के उपरांत भोवाली स्थित ‘नीम करौली बाबा’ जी के कैंचीधाम मंदिर और आश्रम मे दर्शन के लिए प्रस्थान किया, पहाड़ों में स्थित मंदिर मे जाने से एक अलग ऊर्जा की अनुभूति हुई और जिससे यह निश्चित हो गया कि उत्तराखंड को क्यूँ ‘देवभूमि’ कहा जाता है।
दर्शन करने के उपरांत शाम की चाय पीने के बाद लखनऊ के लिए निकल पड़े और रात्रि 2 बजे घर वापिस आ गए। इस प्रकार पहाड़ों कि दुर्गम और साहसिक यात्रा पर विराम लगा। देशाटन के बहुत फायदे होते हैं जैसे रोग प्रतिशोधक क्षमता बढ़ती है, बदलाव से नई ऊर्जा का संचार होता है , तनाव दूर होता है, दिमाग स्वस्थ रहता है, अवसाद से मुक्ति मिलती है और जीवन को खुश रहकर जीने का मन करता है।
सर्व मित्र भट्ट
लेखक – केनरा बैंक अंचल कार्यालय लखनऊ, वरिष्ठ प्रबन्धक पद पर कार्यरत हैं I जोकि यात्रा का वृतांत एवं अनुभवों को अपनी लेखनी के माध्यम से साझा किया है I