ARTICLE ________ एनएचआरसी का स्वतः संज्ञान बनता वरदान
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स्वतः संज्ञान सदैव न्यायाधिकरणों के प्रति विश्वास जागते हैं. भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग–एनएचआरसी ने ऐसे मुद्दे पर इस बार जो स्वतः संज्ञान लिया वह किसी के भीतर बसे दहशत और कठोर भय को विराम देता है. वैसे तो भारत में यह काम त्वरित गति से न्यायालयों द्वारा हमेशा किया जाना चाहिए कि वे स्वतः संज्ञान लें लेकिन भारत में अब अभी न्यायालयों में फौरी तौर पर किसी मामले को संज्ञान में लेकर उस पर शासन या प्रशासन को क्रियाशील बनाने की संवेदनात्मक कार्यवाही की गति धीमी है.
भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने इस मिथ को तोड़ने का प्रयास किया है, और उसने ऐसा बार-बार किया है. इस बार ट्रिब्यून में छपी एक खबर एनएचआरसी की स्वतः संज्ञान का विषय बनी है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा के पलवल जिले के एक मुस्लिम बहुल गांव में एक हिंदू परिवार पर कथित तौर पर हमला किया गया, जान से मारने की धमकी दी गई एवं सोशल मीडिया पर रोहिंग्या विरोधी पोस्ट शेयर करने पर गांव छोड़ने का आदेश दिया गया. कथित तौर पर उस व्यक्ति ने रोहिंग्या समुदाय के लोगों को नागरिकता न दिए जाने का समर्थन किया था, मामला बस यही था और उसे मारने, धमकाने और उसको अपना घर-गाँव छोड़ चले जाने का फरमान जारी करने वाले आ धमके.
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने अपने एक संबोधन में कहा था कि ऑनलाइन माध्यमों पर फैल रही नफ़रत अक्सर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसक, शारीरिक हमले भड़कने का कारण बनती है. महासचिव ने सरकारों, टैक्नॉलॉजी कम्पनियों और अन्य सम्बद्ध पक्षों से अपील की थी कि वे ऑनलाइन नफ़रत की भाषा पर अंकुश लगाने के लिए, अगले वर्ष होने वाले भविष्यवादी शिखर सम्मेलन से पहले, डिजिटल मंचों पर सूचना की प्रामाणिकता हेतु, स्वैच्छिक आचार संहिता विकसित करें और इस वर्ष, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणापत्र-यूडीएचआर की 75वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही है.
ऐसे में, इस बार विशेषत: इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि यूएन चार्टर विरोधी उद्देश्यों या किसी अन्य मक़सद के लिए धर्म या आस्था का इस्तेमाल करना पूर्णत: अस्वीकार्य और निन्दनीय होगा. यहाँ मामला डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म से जुड़ा है, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक से जुड़ा है लेकिन जिस पर एनएचआरसी ने स्वतः संज्ञान लिया है वह थोड़ा सा भिन्न है. इस पूरे परिवाद में अल्पसंख्यक लोगों ने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति को धमकी दी है और उसे पलायन करने हेतु सलाह दी है. मीडिया में यह छपा कि पलवल के सराय गांव में एक परिवार पर कुछ लोगों ने घर में घुसकर हथियारों के बल पर जानलेवा हमला किया. इस मामले में मुंडकटी थाना पुलिस ने पीड़ित की शिकायत पर आरोपियों के खिलाफ़ विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया.
इसमें यह मामला उभरकर सामने आया कि जब देश आज़ादी का ज़श्न मना रहा था तो 15 अगस्त की देर शाम साढ़े चार बजे सराय गांव निवासी दीपक और उसके परिवार वाले महफूज नहीं थे. उसी दौरान गांव के ही निवासी जो कि दूसरे मजहब के मानने वाले थे, उनके हाथों में देसी कट्टा, लाठी, फरसा व डंडा लेकर उनके घर में घुसे और आते ही उनके साथ मारपीट शुरू कर दी. जाते-जाते आरोपियों ने परिवार को गांव छोड़ने की धमकी दी.
इसके बाद जो एनएचआरसी ने स्वतः संज्ञान लिया उस पर आते हैं. आयोग का कहना है कि 18 अगस्त, 2023 को जारी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित सराय गांव में रहता है और उसी गांव के तीन पहचाने गए व्यक्ति, अन्य लोगों के साथ लाठी-डंडे और देशी पिस्तौल से लैस होकर जबरन उसके घर में घुस गए और तोड़फोड़ शुरू कर दी. उन्होंने पीड़ित परिवार को गांव न छोड़ने पर जान से मारने की धमकी दी. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का कहना है कि पलवल में रोहिंग्या विरोधी सोशल मीडिया पोस्ट के बाद एक व्यक्ति पर कथित हमले के बाद उसे अपने परिवार के साथ गांव छोड़ने के लिए कहने से संबंधित घटना पर हरियाणा के डीजीपी और डीएम को नोटिस जारी किया गया.
इसके साथ राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की ख़ास हिदायत भी है कि यदि सत्य है घटना तो पुलिस महानिदेशक, हरियाणा और जिला मजिस्ट्रेट, पलवल कथित अपराधियों के खिलाफ की गई कार्रवाई, मामले में दर्ज एफआईआर की स्थिति और राज्य में भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो यह सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए या प्रस्तावित निवारक कदमों की स्थिति प्रस्तुत करें.
अब जब आयोग ने रोष व्यक्त किया है तो उसकी संवेदनशीलता को बहुत ही गंभीरता से समझने की ज़रूरत है. आयोग इसलिए भी इस मुद्दे और घटना पर बहुत गंभीर है क्योंकि यह घटना, उसकी दृष्टि में आम घटना नहीं है, अपितु उसकी दृष्टि में यह एक संगीन घटना है. आयोग का कथन है कि इस वर्ष के अन्तरराष्ट्रीय दिवस को धर्म या आस्था के आधार पर होने वाली विविध, दैनिक और गम्भीर हिंसा को उजागर करने और इसके मूल कारणों के ख़िलाफ़, अधिक दृढ़ संकल्प के साथ, तत्काल कार्रवाई करने का अवसर बताया गया है, इसलिए भी हमें इस घटना को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है.
दूसरी बात यह है कि सोशल मीडिया पर कुछ सामग्री पोस्ट करने पर कुछ व्यक्तियों द्वारा नागरिक को जान से मारने की धमकी देना, एक नागरिक के मूलभूत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. नागरिकों के लिए सुरक्षित वातावरण और कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना कानून लागू करने वाली एजेंसियों का अनिवार्य कर्तव्य है. इस प्रकार आयोग ने अपने कर्त्तव्य के प्रति सजग होने में विश्वास जताया है भले ही इसमें मनुष्यों के मूल अधिकार और उनकी गरिमा के प्रश्न जुड़े हों.
ये तो रही स्वतः संज्ञान की इस विशेष घटना की बात, लेकिन यहाँ एक बात समझने की आवश्यकता है कि एनएचआरसी इतना सक्रिय होकर क्यों अब तमाम मुद्दों को अपने संज्ञान में ले रहा है. दूसरी बात कि आज के समय में स्वतः संज्ञान के मामले क्या आम नागरिक के लिए संजीवनी बनने लगे हैं जिससे उन्हें न्याय की संभावनाएं कुछ ज्यादा करीब लग रही हैं? जी, दूसरे सवाल का ज़वाब बिलकुल आसान है- हाँ, बिलकुल हाशिये का समाज इस स्वतः संज्ञान के मामले से ज्यादा खुश हुआ है. और पहले सवाल का उत्तर यह है कि इस समय जो एनएचआरसी की लीडरशिप है वह बहुत ही उत्कृष्ट, अति-सक्रिय, संवेदनशील और भारतीय नागरिकों के प्रति ज्यादा ज़वाबदेह बन पड़ी है.
उनके इस इनिशिएटिव से ऐसा लगता है कि वे अपने औपचारिक कार्यशैली में बदलाव लाकर आगे बढ़ने के आग्रही लोग हैं. जो इस समय माननीय अध्यक्ष या माननीय सदस्य बनकर आयोग को अपना नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं, उनके बारे में यह राय आम व्यक्ति भी आज प्रकट कर सकता है. मैं ऐसे नेतृत्व की प्रशंसा करता हूँ और हर भारतीय इसकी प्रशंसा करेगा, ऐसा मैं मानता भी हूँ.
वस्तुतः जीव को जीवन मिलता है तो वह अपने जीवन के साथ विभिन्न अधिकारों का अधिकारी भी हो जाता है लेकिन बीच के अनेक झंझावतों से होने वाले मानवाधिकारों का जब हनन होने लगता है तो उसके संरक्षण के लिए किसी न किसी का दयित्त्व बनता ही है जो उन्हें उनके साथ न्यायपूर्वक खड़े हों. निश्चय ही इस दयित्त्व की प्रतिपूर्ति में मानव अधिकारों का स्वतः संज्ञान कार्यक्रम भी है. यदि ऐसा न हो तो बहुत से लोग अपने जीवन की आशाओं को छोड़ देंगे और उन्हें अपना जीवन ही बोझ बन जाएगा. इसलिए यह ज़रूरी है कि अधिकारों के संरक्षणकर्ता भी हमारे लिए तत्पर हों ताकि हमारा जीवन भले ही बहुत ही ग्लैमर को न पा सके लेकिन सामान्य जीवन ही गरिमा से परिपूर्ण बन जाए.
फ़िलहाल, आयोग ने जिस घटना को संज्ञान में लेकर अपनी सक्रियता दिखायी है उससे भारत के भयाक्रांत करने वाले लोगों के बीच एक सन्देश भी गया है कि वे इस मुगालते में न रहें कि धमकियाँ देकर वे किसी को भी आहत करने में सफल हो जाएंगे बल्कि उनके साथ उनके आसपास के लोग भी सहअस्तित्व के साथ जीने के हकदार हैं और वे गरिमापूर्ण जीवन जिएंगे, भयाक्रंताओं के लिए भारतीय लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है.
प्रो. कन्हैया त्रिपाठी
लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं। आप केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में चेयर प्रोफेसर, अहिंसा आयोग व अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं।