वही बीच मा अहंय बिराजत, माता शेरावाली______
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हुवा तैयार फटाफट सबहीं,
गढाधाम दर्शन कै आई,
मंगलवार का दिन भी पावन,
औ खुद का पावन कै आई.
पचपन फुट ऊँची मूरत बा,
महावीर हनुमान कै,
रोग दोष देखतय कटि जाए,
रक्षा करिहैं प्रान कै..
मुंह फैलाए सुरसा मिलिहैं,
वही बीच से रस्ता,
आज बजारौ लाग रहत है,
सर समान सब सस्ता.
लेकिन लरिकौ चल्या ध्यान से,
हुंआँ महाहौ बंदर,
एक दुसरे कै साथ ना छोड्या,
मेला परिसर के अंदर…
शिव पार्वती कै दिव्य मूर्ती,
सामने हैं नंदी बाबा,
टिकिया चाट चाउमीन जलेबी,
सब मिले जोन कुछ खाबा..
जंगल बगिया पेड़ औ पालव,
चहुंदिशि है हरियाली,
वही बीच मा अहंय बिराजत,
माता शेरावाली..
मन प्रसन्न होइ जाए बच्चा,
जब तू हुंआँ पै जाबा,
वही सुरम्य माहौल मा बैठा,
शिरडी वाले सांई बाबा..
एक पुरान मंदिर बा बीच मा,
खड़े हनुमान से थोड़ी दूरी,
बजरंगी कै वास वही मा,
मानता करंय सब पूरी..
वहीं बगल से थोड़ा आगे,
एक ठी पडे ढलान,
दिव्य भव्य एक मूरत औरो,
खींचत सब कै ध्यान..
लेटा बाटें श्रीहरि विष्णु,
शेष शैय्या पर विश्राम,
दर्शन मात्र से बनि जाय,
सारा बिगडा़ काम…
संग मा बैठी माता लक्ष्मी,
रही चरण प्रभू के दाब,
संग मा उनके लेबै सेल्फी,
जौ तुहका लइ जाब..
जगत पिता ब्रम्हा जी भी,
बैठा हैं कमल के फूले,
यै पेडे से वै पेडे कुल,
बांदर झलुआ झूले…
धूप फूल परसाद लेहा तौ,
चनव लै लेहा साथे मा,
बंदर बंदर बाहर अंदर,
परसाद बचाया हाथे मा..
चना लेब बंदरेन के ताईं,
औ लड्डू कै परसाद चढे,
वह देखात बा दूरिन से,
जल्दी जल्दी चला बढे..
थका ना पहिले दर्शन कइलिया,
फिर खाबा जोन खियाउब,
जोन बताए मम्मी होइहैं,
सबकुछ पैक कराउब..
लौटत बेरी चला हो लरिकौ,
गढा बाबू से मिलि आई,
नहीं जौ जनिहैं ओरहन देइहैं,
हुंवईं सबका चाय पियाई..
यहे परिवार से रिश्ता आपन,
बाटय पीढ़ी दर पीढ़ी,
आएन गए से प्रेम बढत है,
प्रेम हर रिश्ता कै सीढ़ी..
सियावर रामचंद्र की जय
पवनसुत हनुमान की जय..
रचयिता-
राजू पाण्डेय बहेलियापुर (अमेठी, यूपी)