सेवा कार्यों में संकोच कैसा_____
1 min readकिसी भी बड़े काम की शुरुआत हमेशा छोटे-छोटे प्रयासों से होती है और यह छोटे-छोटे प्रयास सामूहिक रूप से हो पाते हैं।कोई एक व्यक्ति किसी अपने काम को अकेले नहीं कर सकता I उसके लिए उसके साथ लोगों का जुड़ना जरूरी होता है ,सेवा कार्य की पहल करने में हमेशा लोग संकोच करते हैं I
अपने-अपने तर्क देते हैं या यूं कहें कि बचते हैं ठीक वैसे ही जैसे आपके घर जागरण ,माता की चौकी के आयोजन के लिए कोई चंदा मांगने आ जाए या फिर आपका कोई पड़ोसी, रिश्तेदार अपनी समस्या बता कर आप से पैसे मांगने आ जाए दोनों ही स्थितियों में या तो यह कहकर कि हम चंदा मंदिर में ही दे देते हैं या फिर मैं तो खुद परेशान चल रहा हूं कहकर पैसा उधार मांगने आए पड़ोसी या रिश्तेदार को टरका ने का प्रयास करते हैं।
सवाल यह है कि सेवा कार्यों /अच्छे कार्यों को करने में हम संकोच क्यों करते हैं ? हमें ऐसा क्यों लगता है कि हम से जो पैसा मांगने ,आर्थिक सहयोग लेने आया है वो हमारे पैसे पर डाका डालने आ गया है इसमें कोई संदेह नहीं कि पैसा कमाने के लिए आदमी दिन-रात जी तोड़ मेहनत करता है I इसलिए पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण उसके जीवन में कुछ भी नहीं, लेकिन इंसानियत भी कोई चीज है I
यह बहुत अच्छी बात है कि जिस देश में बेरोजगारी की दर रोजगारी की तुलना में बहुत ज्यादा है वहां आप पैसा कमाने में सक्षम है ,आपके पास रोजगार है आप अपने परिवार का पालन पोषण करने में समर्थ है .लेकिन आप यह कैसे भूल सकते हैं कि आप भी समाज का एक हिस्सा है? समाज में जो कुछ भी घटित होता है। उसका असर आप पर भी पड़ता है फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा I
हम सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं, संकट भी आते हैं कभी-कभी तो मौत के मुंह तक जाकर भी बच कर लौट आते हैं .जरा सोचिए कैसे और क्यों? क्योंकि भले ही आप समाज के लिए इंसानियत के लिए अच्छा ना सोचे, प्रकृति या यूं कहें ईश्वर हर पल आपका भला चाहता है और हमारे पुण्य कर्मों के प्रभाव हमें जीवन की परेशानियों से बचाते हैं और हम खुद भी सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि ‘पता नहीं कैसे रास्ता मिल गया ‘,पता नहीं कैसे बच गए?
कोविड-19 के दौरान जो हालात थे, कल्पना कीजिए जो बचे रहे भाग्यशाली थे। और वो जो संक्रमित होने के बावजूद सही सलामत आज अपने घर में ,अपनों के बीच है उन भाग्यशाली लोगों से भी कई गुना ज्यादा भाग्यशाली है. लोगों का पैसा धरा का धरा रह गया ,जाने वालों को लाखों रुपए खर्च कर भी ना बचा सके और बचने वालों को भले ही अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा मगर उनका एक भी रुपया ऑक्सीजन सिलेंडर लेने के लिए खर्च नहीं हुआ और ठीक हो कर घर आ गए I
यहां यह चर्चा करना इसलिए जरूरी हो गया क्योंकि इस ने यह साफ कर दिया कि आपकी परेशानी में आपको आपका पैसा ही नहीं आपके पुण्य कर्मों का प्रभाव , किसी की आप को दी गई दुआ भी आपको मुसीबत से बचा लेती है बस यह सामने दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि आदमी हर चीज में दिमाग लगाता है I
इसलिए इस बात को समझ नहीं पाता कि बुरे हालात में भी जो अच्छा हुआ वह देवी शक्ति के द्वारा संपन्न हुआ, उसके अपने अच्छे कर्मों की वजह से हुआ। इसलिए निवेदन यही है कि अच्छे कार्य ,सेवा कार्य में आगे आइए ! बिना किसी देरी ,के बिना किसी झिझक के .खुद भी करिए, जो लोग सच्ची सेवा में लगे हैं उनके साथ तन मन और धन से खड़े रहिए।
क्योंकि ऊपर वाले के कैमरे की नजर में हम सब हैं और देर सवेर हमारा किया,हमारे पास वापस लौटकर आता ही है अब यह हमारे हाथों में है कि हम अच्छे कार्यों ,सेवा कार्यों को करने के लिए कितने तत्पर है और जिंदगी से अपने लिए क्या पाना चाहते हैं?
समाज में जो कुछ भी घटित होता है। उसका असर आप पर भी पड़ता है फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा ,हम सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं, संकट भी आते हैं कभी-कभी तो मौत के मुंह तक जाकर भी बच कर लौट आते हैं,जरा सोचिए कैसे और क्यों?
क्योंकि भले ही आप समाज के लिए इंसानियत के लिए अच्छा ना सोचे, प्रकृति या यूं कहें ईश्वर हर पल आपका भला चाहता है और हमारे पुण्य कर्मों के प्रभाव हमें जीवन की परेशानियों से बचाते हैं और हम खुद भी सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि ‘पता नहीं कैसे रास्ता मिल गया ‘,पता नहीं कैसे बच कर वापस आ गए?
प्रस्तुति :अमित कुमार चावला
(लखनऊ, यूपी)