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भारतीय उपमहाद्वीप में पांव पसारता अलकायदा

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दुनिया के खूंखार आतंकी संगठनों में से एक अलकायदा एक बार फिर भारतीय उपमहाद्वीप में अपना पांव पसारने की रणनीति बुनना शुरु कर दिया है। यह खुलासा सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 32 वीं रिपोर्ट से हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अलकायदा को लेकर एक सदस्य देश ने खुलासा किया है कि यह संगठन एक्यूआईएस (भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा) को मजबूत करने में जुटा है।

सदस्य देश का दावा है कि एक्यूआईएस के कुछ तत्व आईएसआईएल (इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड द लेवेंट-खोरासान) में शामिल होने या उसके साथ सहयोग करने को तैयार है। उल्लेखनीय है कि यह संगठन बांग्लादेश और म्यांमार में एक्यूआईएस को मजबूत करने की कोशिश में है।

सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट से यह भी उद्घाटित हुआ है कि अलकायदा सैफ अल-अदल को अपना नया चीफ बनाना चाहता है। यह आयमान अल-जवाहिरी का स्थान लेगा। फिलहाल यह ईरान में सक्रिय है। मौजूदा समय में आईएसआईएल (इस्लामिक स्टेट आॅफ इराक एंड द लेवेंट-खोरासान) अफगानिस्तान और आसपास के इलाके में सबसे खतरनाक आतंकी संगठन के रुप में चिंहित है।

इसके सदस्यों की संख्या तकरीबन 6000 के आसपास है। अफगानिस्तान में अलकायदा का कोर 30 से 60 सदस्यों पर स्थिर है जबकि उसके लड़ाकों की संख्या 400 के आसपास है। भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा के लगभग 200 आतंकी हैं जिसका प्रमुख ओसामा महमूद है।

गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब अलकायदा द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप में पांव पसारने की कोशिश का खुलासा हुआ है। याद होगा गत वर्ष पहले इस संगठन का पूर्व सरगना अल जवाहिरी ने तो बकायदा एक विडियो जारी कर भारतीय उपमहाद्वीप में कायदात अल जिहाद बनाने, जिहाद का परचम लहराने और इस्लामिक शरीयत की बदौलत खलीफा राज लागू करने का एलान किया था।

अलकायदा का मौजूदा नेतृत्व अब उसे धार देने की कोशिश कर रहा है। सच यह भी है कि अलकायदा गत वर्ष पहले ही भारतीय उपमहाद्वीप में कायदात अल जिहाद आतंकी शाखा की नींव रख चुका है। अब उसके विस्तार की कोशिश में है। यहां समझना होगा कि अलकायदा का भारतीय उपमहाद्वीप में पांव पसारने और भारत को निशाना पर लेने की मुहिम के पीछे आतंकी गिरोहों के बीच वर्चस्व की लड़ाई है।

किसी से छिपा नहीं है कि इस्लामिक स्टेट दुनिया भर के अन्य आतंकी संगठनों को ताकत और विस्तार के मामले में पीछे छोड़ चुका है। अलकायदा को अपना संगठन कमजोर दिख रहा है। वह अच्छी तरह समझ रहा है कि पश्चिम एशिया में इस्लामिक स्टेट की मौजूदगी में न तो वह फंड जुटा सकता है और न ही जिहादी मुस्लिम युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है।

ऐसे में उसकी कोशिश खुद को भारतीय उपमहाद्वीप के इर्द-गिर्द केंद्रित कर इस्लामिक स्टेट से बढ़त बनाना है। यह तथ्य है कि भारत के विभिन हिस्सों में इस्लामिक स्टेट के स्लीपर सेल मौजूद हैं। आए दिन देश के विभिन्न हिस्से से मुस्लिम युवाओं का इस्लामिक स्टेट में शामिल होने की खबरें सुर्खियां बनती हैं। ऐसे में अलकायदा को लग रहा है कि अगर वह दक्षिण एशिया विशेष रुप से भारत में अपनी ताकत का विस्तार नहीं किया तो जिहादी मुस्लिम युवा उसके बजाए इस्लामिक स्टेट को तरजीह देंगे।

चूंकि अफगानिस्तान में तालिबान का शासन है और वहां उसकी दाल नहीं गल रही है लिहाजा वह पूरी तरह से भारत पर केंदित है। तथ्य यह भी कि पाकिस्तान के कबायली इलाकों में अमेरिकी ड्रोन हमलों की मार से वह बूरी तह लहूलुहान है। पिछले कई वर्षों से उसे न सिर्फ लड़ाकों की कमी से जूझना पड़ रहा है बल्कि बम और गोला-बारुद की किल्लत भी दो-चार होना पड़ रहा है। उधर, इस्लामिक स्टेट ने फंड जुटाने के मामले में अलकायदा के सभी स्रोतों पर कब्जा कर लिया है।

इराक और सीरिया के कई बड़े क्षेत्रों पर इस्लामिक स्टेट की कब्जेदारी है। उसकी आर्थिक स्थिती मजबूत है। दूसरी ओर अलकायदा की आर्थिक स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अब अलकायदा को सऊदी अरब से मिलने वाला 90 फीसद फंड बंद हो चुका है। अभी तक अलकायदा का प्लान था कि 2014 के अंत तक जब नाटो फौज अफगानिस्तान से विदा हो जाएगी तो वह खुद को प्रासंगिक बना लेगा।

लेकिन इस्लामिक स्टेट के बढ़ते दबदबा और अफगानिस्तान में तालिबान के शासन ने उसके गेम प्लान को खराब कर दिया है। अब उसे डर सताने लगा है कि अपनी ताकत का विस्तार नहीं किया तो आने वाले वर्षों में उसका वजूद मिटना तय है। वैसे भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के जिहादी युवाओं में अब अलकायदा को लेकर वह आकर्षण नहीं है जैसा कि कभी ओसामा बिन लादेन को लेकर हुआ करता था। इन दोनों मुल्कों के जिहादी युवाओं में इस्लामिक स्टेट को लेकर सबसे ज्यादा आकर्षण है।

दरअसल पाकिस्तान के आतंकी संगठनों और जिहादी मानसिकता के युवाओं को लग रहा है कि वह इस्लामिक स्टेट के मार्फत जम्मू-कश्मीर में अपनी हुकूमत स्थापित कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में पहले से ही कई आतंकी संगठन सक्रिय हैं। इनको फंडिग पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई करती है। फिलहाल जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 की समाप्ति के बाद हालात में तेजी से बदलाए आए हैं।

विकास की योजनाएं फलीभूत हो रही हैं और शांति का वातावरण निर्मित हुआ है। लेकिन अगर कहीं अलकायदा यहां पैर पसारने की मुहिम में कामयाब हुआ तो मुश्किलें बढ़ सकती है। समझना होगा कि अलकायदा का भारतीय उपमहाद्वीप में पांव पसारने का मकसद भले ही इस्लामिक स्टेट से प्रतिद्वंदिता का नतीजा हो लेकिन उसके खतरनाक मंसूबे को हल्के में नहीं लिया जा सकता। इसलिए कि 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में हुए आतंकी हमले को दुनिया नहीं भूल सकती।

इस हमले में तकरीबन 3000 से अधिक लोग मारे गए थे और 10 बिलियन डाॅलर से अधिक संपत्ति का नुकसान हुआ था। अलकायदा छिटपुट ही सही यूरोप की धरती को कई बार लहूलुहान कर चुका है। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां बार-बार आशंका जाहिर कर चुकी हंै कि अलकायदा 9/11 जैसे हमलों को दोबारा अंजाम देकर इस्लामिक स्टेट से अधिक ताकतवर दिखाने की कोशिश कर सकता है। इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

बेहतर होगा कि भारत अलकायदा को सबक सिखाने के लिए धारदार रणनीति तैयार करे। गौर करना होगा कि अलकायदा ने भारत के अलावा भारतीय उपमहाद्वीप के जिन देशों में पांव पसारने की रणनीति बुना है उसमें बांग्लादेश और म्यांमार शीर्ष पर हंै। वह वहां सक्रिय भी है। दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह भी कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में कई ऐसे आतंकी संगठन हैं जो भारत में इस्लामिक शासन के हिमायती हैं।

इनमें हूजी, जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश, द जाग्रत मुस्लिम जनता बांग्लादेश व इस्लामिक छात्र शिविर यानी आइसीएस बेहद खतरनाक हैं। भारत में सक्रिय हूजी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के सहयोग से कई आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में कामयाब रहा है। बांग्लादेश के अलावा म्यांमार में भी कई आतंकी संगठन हैं जिनका मकसद भारत में अस्थिरता पैदा करना है।

उल्लेखनीय है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच कईयों बार हिंसा हो चुकी है। बहुतायत संख्या में रोहिंग्या मुसलमान भारत में शरण लिए हुए हैं। इनमें हूजी के समर्थक भी हैं। ये बिहार, झारखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों में पसरे हैं। याद रखना होगा कि अगस्त 2012 में रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में देश में कई स्थानों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था। इसमें कई लोगों की जानें गयी थी।

असम में हुए दंगों के खिलाफ मुंबई समेत देश के अन्य कई स्थानों पर हुए प्रदर्शनों में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हो रही ज्यादती के नाम पर खूब अराजकता फैलायी गयी। इन प्रदर्शनों में जेहादी तत्वों की भूमिका स्पष्ट रुप से उजागर हुई थी। गत दिनों पहले पूर्वी राज्य मणिपुर में हुई हिंसा के पीछे भी म्यांमार से आने वाले रोहिंग्या घुसपैठियों की भूमिका सामने आ रही है।

मैतेई समुदाय के लोग मणिपुर में एनआरसी के जरिए घुसपैठियों को बाहर निकालने की मांग कर रहे हैं। फिलहाल भारत को अलकायदा के खतरनाक मंसूबे और पड़ोसी दुश्मन देश ची और पाकिस्तान की साजिशों से सावधान रहने की जरुरत है।   

अरविंद जयतिलक 

(लेखक/ स्तंभकार )

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