मणिपुर की क्रूरता से फैले आक्रोश को समझे सरकार _______
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हिंसा से भरे राज्य कभी भी उन्नति नहीं करते बल्कि उनके संपूर्ण शांति पर ग्रहण लग जाता है. क्या भारत की भी कहानी मणिपुर जैसे हालात के साथ ऐसी ही स्थितियों की ओर बढ़ चली हैं? मणिपुर में दो लड़कियों के साथ सामूहिक बर्बर वारदात से पूरा देश बौखला गया है. सब सोच रहे हैं कि मणिपुर में ऐसा कैसे हो गया लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत विचित्र देश है. हाँ, यह सच है. इस देश में लोग बौखलाते बहुत हैं पर उनकी बौखलाहट क्षणिक होती है. कुछ दिनों बाद पूर्ववत हो जाते हैं तो ऐसी बर्बर व शर्मसार घटनाएँ पुनः घट जाती हैं. निर्भया काण्ड के बाद दिल्ली में जो आन्दोलन हुआ स्त्री सम्मान की सुरक्षा के लिए, वह अब पन्नों में दब गया है. उसके बाद न जाने कितनी घटनाएँ होती रहीं पर देश में दावे और राजनीति की शिकार व्यवस्था स्त्रियों के लिए कुछ ठोस नहीं कर सकी.
भारत के लिए सच कहा जाए तो एक घटना के बाद फूटा गुस्सा जैसे ही ठंढा होता है, एक ऐसी ही ह्रदयविदारक नई घटना जन्म लेती है, फिर लोग आक्रोशित होते हैं. सवाल यह है कि इस पुनरावृत्ति से कोई भी हल निकलने वाला है क्या? उत्तर सभी जानते हैं कि बिलकुल नहीं. क्योंकि गुस्सा तो लॉ एंड ऑर्डर को संचालित कर रहे नेतृत्व को आना चाहिए. उसका क्रोध लुप्त सा है जिससे कुछ सकारात्मक पहल नहीं हो सकी आजतक, तो फिर आम आदमी के आक्रोश व गुस्से से केवल मीडिया की बाइट्स तैयार होंगी, हल नहीं निकलेगा. भारत की संवैधानिक शक्तियों के सहारे भारत की शासन व्यवस्था खूब चल रही है. लेकिन दुखद यह है कि भारत में मणिपुर हो रहा है. दूसरे कई राज्यों में हिंसाएँ हो रही हैं.
लेकिन अब मणिपुर में कुछ ज्यादा ही वीभत्स स्थिति हो गई है जिससे पूरे देश का गुस्सा फूटना अवश्यम्भावी हो गया था. यदि इसके बाद भी उन बहनों की सिसकियों को सुनने के बाद दुःख व चिंता के दो शब्द नहीं फूटें तो समझ जाओ वह मनुष्य नहीं अधम है. इसको यूं न सोचें कि वहां पर कैसे ऐसा हो सकता है बल्कि खुद पर उस पीडिता की जगह खुद को रखकर व एहसास करके देखें तो रूह काँप जाएगी. मणिपुर में इतनी बड़ी हैवानियत कि निर्वस्त्र करके दो लड़कियों के साथ हज़ार पुरुष लोग खेलते रहे, उनके प्राइवेट पार्ट्स के साथ खिलवाड़ करते रहे और उसको केवल पुलिस एफआईआर करके रफ़ादफ़ा कर दी, यह बहुत ही चिंता की बात है. वैसे मणिपुर में 12 हफ्ते से हिंसा हो रही है. विडंबना यह है कि लोग, घर, संपत्तियां सब जले और हमारे जीवन का स्वर्णिम क्षण जलता रहा, सब मौन होकर इसे देखते रहे. सबसे बड़ी बात यह है कि प्रदेश सरकार इंटरनेट बंद करके निश्चिंत हो गई कि होने दो, कुछ भी इस हिंसा व रक्तपात से फ़र्क नहीं पड़ने वाला है.
पूर्वोत्तर के राज्य व मणिपुर में वर्षों पहले स्थितियां बद से बदतर रहीं उसके करण कुछ और थे. उन दिनों स्त्रियाँ निर्वस्त्र, नग्न होकर भारत सरकार से मिलिट्री हटाने की मांग कर रही थीं. लेकिन मणिपुर में अब आज़ादी के 75 वर्ष बाद अमृतकाल में भी तो कुछ नहीं बदला. अब तो भारत की बेटी को निर्वस्त्र करके घुमाया जाने लगा है. यह इस देश का दुर्भाग्य है कि भारत में मनुष्यता को तारतार किया जा रहा है और सभ्यता के इस दमनचक्र से भारत का दुर्भाग्य अपने होने पर इतरा रहा है. मणिपुर प्रदेश के मुख्य मंत्री कह रहे हैं कि ऐसी अनेकों घटनाएँ मणिपुर में होती रहती हैं जबकि राज्यपाल एक इंटरव्यू में कहती हैं कि जो मुझे मणिपुर में जघन्य स्थितियां देखने व सुनने को मिलीं, ऐसा जीवन में कभी न मैंने देखी और न सुनी. मैं मणिपुर की घटना से बहुत दुखी हूँ.
इस बीच एक महत्त्वपूर्ण वक्तव्य डी वाई चंद्रचूड सिंह, चीफ जस्टिस ऑफ़ इण्डिया की ओर से आया कि मणिपुर की घटना बर्दाश्त से बाहर. सरकार से कार्रवाई नहीं हुई तो हम करेंगे. यह हिदायत और सन्देश दोनों सरकारों को है केंद्र सरकार को और राज्य सरकार को भी. मुख्य न्यायधीश का यह कथन कुछ मामूली ही लगा क्योंकि वीडियो वायरल होने के बाद जो पीड़ा, जो बर्बरता और अमानवीयता महिलाओं द्वारा सहने की स्थितियां सामने आईं, उस पर तो स्वतःसंज्ञान लेकर मुख्य न्यायधीश को प्रदेश के मुख्य मंत्री को बर्खास्त करने और पुलिस के आलाकमान को सश्रम कारावास करने की सजा देनी चाहिए थी. केंद्र सरकार से भी इस पर स्पष्टीकरण मांगने चाहिए थे कि इतने लम्बे समय से मणिपुर जल रहा है, आपके पास आईबी है, सीबीआई है, और दूसरी खूफिया एजेंसीज हैं, आप सूचना के अभाव में रहे या जानबूझकर चुप रहे. यदि जानबूझकर चुप रहे तो इसके पीछे क्या वजहें हैं? इस संपूर्ण हिंसा में क्षति की प्रतिपूर्ति कौन करेगा? इसलिए इसपर से यह लगता है कि इस देश में न्याय भी बहुत लडखडाया सा है. फिर भी चीफ जस्टिस ऑफ़ इण्डिया के कहने का मतलब है और उसका परिणाम निकट भविष्य में दिखेगा, ऐसी आशा कर भारतीय नागरिक सकते हैं क्योंकि माननीय मुख्य न्यायधीश अपने सिद्धांतों और संकल्पों के लिए जाने जाते हैं. स्थितियां बिगड़ी तो वह कार्रवाई अवश्य करेंगे, यह तय है.
वर्तमान स्थितियों में मीडिया भी एक बड़ा सवाल है. मीडिया का भी असली चेहरा सामने आ चुका है. वह अब बडबडा रही है. बुदबुदा रही है. ढोंग कर रही है. वैसे तो मीडिया हॉउस और मीडिया के लोग बड़े-बड़े दावे करते हैं कि वे सब जानते हैं. सब सच दिखाते हैं. सबसे आगे हैं. नंबर एक चैनल हैं. लेकिन मणिपुर ने यह बता दिया कि मीडिया वाले जो दावा करते हैं, वह सफ़ेद झूठ है, असल बात यह है कि सब के सब धूर्त हैं. जब वीडियो वाइरल हुआ तो सबके चैनल से शोर निकला कि हम शर्मसार हैं. देश शर्मसार है. पर वे अब तक कहाँ थे? घटना तो मई की है, उन दिनों से ये लोग कहाँ थे? क्यों नहीं दिखाए सच, सबसे आगे. सबसे तेज? हिंदुस्तान का दुर्भाग्य बनती इलेक्ट्रानिक मीडिया हिंदुस्तान को बर्बाद होते देखकर खुश होती है. उसको अपने एजेंडे पता होते हैं केवल, बाकी मणिपुर, मणिपुर मतलब उनके लिए जीरो है. इस देश में यदि ऐसा नहीं होता तो सब न सही मुख्यधारा में शामिल इक्के-दुक्के मीडिया वाले इस घटना पर लगातार फोकस करते, सवाल करते जैसे सीमा हैदर वाले केस में लगातार स्टोरीज बना रहे हैं. उस पर सक्रिय हैं. फिर सवाल वहीँ का वहीँ जा खड़ा होता है कि मणिपुर के लिए वे कहाँ नदारद रहे?
भारत में सामूहिक अपराध की बढती प्रवृत्ति भारत के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. भारत में अपराध तेजी से बढ़ेंगे आने वाले समय में, ऐसी आशंका है क्योंकि अब जनभागीदारी से सहयोग की जगह जनभागीदारी से अपराध, हिंसा, बलात जैसी घटनाएँ ज्यादा बढ़ रहे हैं. भारत में यह गुड गवर्नेंस और लॉ एंड ऑर्डर के लिए खतरा हैं, यह कैसे समझ आएगा. भारतीय सामाजिक स्थितियां यदि हिंसक हो जाएँगी तो इस भारत का क्या होगा, सोचकर मनुष्यता में विश्वास करने वाले लोग, सहिष्णु सभ्यता के हितधारक दुखी हो जाते हैं. सबसे अहम् बात यह है कि इस अपराध व हिंसा में और अब बलात के लिए युवाओं की संख्या में इजाफा हुआ है जो आने वाले सामाजिक संरचना के लिए सबसे ज्यादा पीड़ादायी बनने वाले हैं.
भारत के प्रधान मंत्री ने इस मणिपुर घटना को लेकर गहरा रोष व्यक्त किया तो लेकिन देरी से विपक्ष इसे काफी नहीं मान रहा है. काफी है भी नहीं क्योंकि प्रधान मंत्री से देश उम्मीद करता है. जब राज्य सरकारे व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में विफल होती दिखें तो प्रधान मंत्री से ही उम्मीदें नागरिक करेंगे, यह स्वाभाविक है. मणिपुर मामले में कहीं न कहीं चूक तो हुई है. इसलिए मणिपुर की क्रूर सचाई आज सबके आक्रोश का विषय बन गई है. आग जो मणिपुर में है वह और भी जगह फ़ैल सकती है. ये हैबिट का हिस्सा बनती अपराधी प्रवृत्ति अन्य नागरिकों को हिंसा और बर्बरता से अभिशप्त कर सकती हैं. अच्छा आज यही होगा कि भारत की इतनी बड़ी सर्वे भवन्तु सुखिनः की विरासत को बचा लें. मानवता की रक्षा करें नहीं तो हमारे लिए यह सब काला धब्बा बन जाएगा और दुनिया हमारा मजाक उड़ाएगी.
प्रो. कन्हैया त्रिपाठी –लेखक पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय भटिंडा के डॉ. आंबेडकर चेयर ऑन इनवायरमेंटल वैल्यूज एंड ह्यूमन राइट्स के चेयर प्रोफ़ेसर हैं। आप भारत के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी का भी दायित्व निभा चुके हैं। आप अहिंसक सभ्यता और अहिंसा आयोग के पैरोकार भी हैं।