Lok Dastak

Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi.Lok Dastak

पुरुषोत्तम मास पर विशेष — पुरुषोत्तम मास के स्वामी हैं भगवान विष्णु

1 min read
Spread the love

जिस महीने में सूर्य की कोई संक्रान्ति नहीं होती है,उसे अधिक मास,अधिमास,खरमास,मलमास अथवा पुरुषोत्तम मास कहते हैं।इसका एक नाम “मलिम्लुच” भी है।यह मास प्रत्येक 32 मास,16 दिन और 4 घड़ी के अनन्तर आता है।इसमें सभी कामना मूलक कार्य किए जा सकते हैं।इस मास में सभी पापों को दूर करने वाले व्रतों की भरमार रहती है। मलमास का प्राय: पूरा ही महीना व्रतों के लिए विहित है।ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में किए गए सभी धार्मिक कार्य 10 गुणा फलप्रद होते हैं।इस माह में किए गए धर्म-कर्म, भजन-कीर्तन, जप-तप, व्रत-अनुष्ठान आदि सहस्रगुणा फल प्रदान करने वाले होते हैं।इस मास में कैसी भी कोई स्थापना,विवाह, मुण्डन, नव वधु का गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, नामकरण, अष्टिका श्राद्ध आदि जैसे संस्कार व कर्म करने की मनाही है।साथ ही नए वस्त्रों का पहनने व नई खरीदारी आदि करने का भी निषेध है।

इस मास के स्वामी स्वयं भगवान विष्णु हैं।शास्त्रों व पुराणों में यह उल्लेख है कि एक बार मलमास ने अत्यंत दुखी होकर भगवान विष्णु से कहा कि”हे प्रभु ! क्षण,मुहूर्त, दिन,पक्ष,मास आदि अपने-अपने स्वामी की आज्ञानुसार निर्भय होकर विचरण करते हैं परन्तु मुझ अभागे का न तो कोई स्थान है और न स्वामी। और न ही मुझमें कोई शुभ कार्य ही किए जाते हैं।” मलमास की पीढ़ा को समझते हुए भगवान विष्णु ने कहा कि “मैं आज से तुमको अपना नाम देता हूं।” तभी से इस मलमास को पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा।अधिक मास फाल्गुन से कार्तिक मास के मध्य आता है।पुरुषोत्तम मास में दीपदान का भी विशेष महत्व है।साथ ही “विष्णु सहस्रनाम” का पाठ करना भी विशेष लाभ कारक है।चूंकि इस मास के अधिपति भगवान विष्णु हैं,इसलिए उनका ध्यान व उनका पूजन अर्चन इस मास में अत्यधिक लाभदायी है।

पुरुषोत्तम मास में भगवान विष्णु की प्रीति प्राप्त करने के लिए उनका 33 मालपुओं का भोग, उनके 33 प्रमुख नामों को लेकर लगाया जाता है।भगवान विष्णु के वे 33 प्रमुख नाम इस प्रकार हैं – “ॐ विष्णवे नम:, ॐ जिष्णवे नम:, ॐ महाविष्णवे नम:, ॐ हरये नम:, ॐ कृष्णाये नम:, ॐ अधोक्षजाय नम:, ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ रामाय नम:, ॐ अच्युताय नम:, ॐ पुरुषोत्तमाय नम:, ॐ गोविंदाय नम:, ॐ वामनाय नम:, ॐ श्रीशाय नम:, ॐ श्री कृष्णाय नम:, ॐ विश्वसाक्ष्णे नम:, ॐ नारायणाय नम:, ॐ मधुरिपवे नम:, ॐ अनिरुद्धाय नम:, ॐ त्रिविक्रमाय नम:, ॐ वासुदेवाय नम:, ॐ जगद्योनये नम:,ॐ अनंताय नम:, ॐ शेषशायने नम:, ॐ संकर्षणाय नम:, ॐ प्रद्युम्नाय नम:, ॐ दैत्यारये नम:, ॐ विश्वतोमुखाय नम:,ॐ जनार्दनाय नम:, ॐ धरावासाय नम:, ॐ दामोदराय नम:, ॐ मघार्धनाय नम:,ॐ श्रीपतये नम:।” साथ ही इनका बतौर प्रसाद भक्तों में वितरित कर दिया जाता है।

ऐसा करने वाले व्यक्ति के जन्म जन्मांतर में समृद्धि बनी रहती है।साथ ही उसे अपनी मृत्यु के बाद विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
अधिक मास के संदर्भ में पुराणों में एक बड़ी ही रोचक कथा सुनने को मिलती है।यह कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी हुई है।जो कि यह है – दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्माजी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा।जगतसृष्टा ब्रह्माजी ने उससे कोई अन्य वरदान मांगने को कहा।इस पर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी से यह वरदान मांगा कि “उसे संसार का कोई भी नर,नारी,पशु,पक्षी,देवता,असुर आदि कोई भी न मार सके।उसे न घर में मारा जा सके और न ही घर के बाहर मारा जा सके।वह वर्ष भर के बारह महीनों में से किसी भी महीने में न मारा जा सके।

जब वह मरे तो न तो दिन का समय हो और न रात्रि का।वह न किसी अस्त्र से मरे और न शस्त्र से।” ब्रह्माजी ने उसे यह वरदान दे दिया।इस वरदान के मिलते ही हिरण्य कश्यप स्वयं को अमर मानने लगा। और उसने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया।साथ ही वह प्रभु भक्तों पर अत्याचार करने लगा।विशेषतः वह अपने पुत्र प्रहलाद तक के खून का प्यासा हो गया।क्योंकि वह भगवान विष्णु का परम् भक्त था।इस पर भगवान विष्णु ने स्वयं द्वारा निर्मित अधिक मास की रचना करके और नरसिंह अवतार लेकर यानि आधे पुरुष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, सायं के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीरकर उसे मृत्यु के द्वार पर भेज दिया।अत: अधिक मास की उत्पत्ति इस प्रसंग से भी मानी जाती है।
“वशिष्ठ सिद्धांत” के अनुसार, भारतीय हिन्दू कैलेण्डर सूर्यमास और चंद्रमास की गणना के अनुसार चलता है। अधिक मास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है।इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच के अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है।

भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और लगभग 6 घंटे का होता है। वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है।दोनों वर्षों के मध्य लगभग 11 दिनों का अन्तर होता है, जो कि हर 3 वर्ष में लगभग 1 माह के बराबर हो जाता है।इसी अन्तर को पाटने के लिए 3 वर्ष में एक चंद्रमास अस्तित्व में आता है।जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिक मास का नाम दिया गया है।
पुरुषोत्तम मास में साधक को अपने सुकृत्यों ,चिंतन – मनन, ध्यान – योग, भजन – कीर्तन व हवन – यज्ञ आदि के द्वारा अपने शरीर में समाहित पंच तत्वों (जल,अग्नि,आकाश,वायु व पृथ्वी) में संतुलन बनाने एवं उन्हें अपने शरीर में समाहित करने का प्रयास करना चाहिए।क्योंकि यह पंच तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्युनाधिक रूप से निश्चित करते हैं।इससे उसकी भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति होती है।साथ ही इस तरह के कार्यों से व्यक्ति प्रत्येक 3 वर्ष बाद स्वयं को स्वच्छ,पवित्र व निर्मल करके नव ऊर्जा प्राप्त करता है।ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति के कुंडली दोषों का भी अंत हो जाता है।

पुरुषोत्तम मास के एक नहीं अपितु अनेकों महत्व हैं।इस मास में हम सभी को धार्मिक तीर्थ स्थलों पर जाकर पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए।प्रतिदिन तुलसी महारानी की पूजा – अर्चना करने से भी भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं।इस मास में भगवान विष्णु के निमित्त कोई न कोई नियम हम सभी वैष्णवों को लेना चाहिए।इस माह में धार्मिक ग्रंथों व अन्य विभिन्न वस्तुओं के दान आदि अत्यंत पुण्य-लाभ प्राप्त करने वाले माने गए हैं।धार्मिक स्थानों की परिक्रमा करना भी अत्यंत मंगलकारी माना गया है।साथ ही भगवान विष्णु के द्वादश अक्षर मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करना भी मोक्ष दायक माना गया है।अधिक मास में भक्तों व श्रृद्धालुओं को व्रत-उपवास, पूजा-पाठ,साधन – ध्यान, भजन-कीर्तन,चिंतन-मनन आदि को भी अपनी दिनचर्या बनाना चाहिए।साथ ही यज्ञ-हवन भी करने चाहिए। श्रीमद्भागवत, श्रीमद् देवीभागवत, श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीराम चरित मानस,विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से पुण्यदायी है।ऐसा करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं। और साधकों के पापों का शमन करके उन्हें अपना आशीर्वाद देते हैं।

पुरुषोत्तम मास में समूचे ब्रज के विभिन्न प्राचीन मंदिरों व अन्य स्थानों पर अत्यंत धूम रहती है।धर्म नगरी श्रीधाम वृन्दावन के विश्वविख्यात ठाकुर श्रीराधा वल्लभ मन्दिर में वर्ष भर के सभी त्योहार माह के पड़ने वाली तिथि के अनुसार अत्यंत श्रद्धा व धूमधाम के साथ मनाए जाते हैं।जिनमें झूलनोत्सव, नौका विहार लीला, होली, दिवाली, अन्नकूट – छप्पन भोग, वसंत पंचमी, शरद पूर्णिमा आदि के त्योहार धार्मिक पद्धति के अनुसार मनाए जाते हैं।इसके अलावा यहां के ठाकुर श्रीराधा रमण मन्दिर में प्रभु के सभी अवतारों की झांकी प्रतिदिन भक्तों – श्रृद्धालुओं को देखने को मिलती है।साथ ही ठाकुर श्रीराधा दामोदर मन्दिर में पूरे अधिक मास मन्दिर की 4 परिक्रमा करके गिर्राज गोवर्धन की परिक्रमा करने का पुण्य लाभ अर्जित किया जाता है।

इसके साथ ही नगर के ठाकुर श्रीबांके बिहारी मंदिर, श्रीराधा श्यामसुंदर मन्दिर,ठाकुर गोविंददेव मन्दिर,ठाकुर मदनमोहन देव मन्दिर,ठाकुर जुगल किशोर मन्दिर, ठाकुर श्रीराधा गोपीनाथ मंदिर, ठाकुर गोकुलानंद मन्दिर आदि में अधिक मास की अत्यधिक धूम रहती है।जगह-जगह श्रीमद्भागवत कथा, श्रीराम कथा, भक्तमाल कथा एवं विभिन्न धर्म ग्रंथों के पारायण आदि के आयोजन होते हैं।साथ ही रासलीला, रामलीला और भक्त चरित्रों के मंचन होते हैं।इसके अलावा श्रीधाम वृन्दावन की पंचकोसी परिक्रमा व यमुना स्नान करने के लिए लोगों का सैलाब उमड़ पड़ता है।

 डॉ. गोपाल चतुर्वेदी

(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं आध्यात्मिक पत्रकार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright ©2022 All rights reserved | For Website Designing and Development call Us:-8920664806
Translate »