विजिटर कांफ्रेंस में राष्ट्रपति का विकसित राष्ट्र बनाने का आह्वान
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भारत के राष्ट्रपति भवन में विजिटर्स कांफ्रेंस कई मायने में महत्त्वपूर्ण साबित हुई है। इस बार के इस कांफ्रेंस की थीम जो रखी गई थी-बेहतरीन विश्व निर्माण हेतु-सतत विकास के लिए शिक्षा, यह न केवल संदेशपूर्ण थी, अपितु देखा जाये तो परोक्ष रूप से हमें जागरूक भी कर रही थी कि हमारी सततता के लिए कुछ अनिवार्य पहलू हैं जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को भी संबोधित करने वाली थीम थी।
इस सम्मलेन में भारत के शिक्षा मंत्री समेत विश्वविद्यालय के कुलपतिगण, निदेशकगण और बौद्धिक लोगों के बीच में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी बात कहने से पूर्व यह स्पष्ट किया कि इस सम्मेलन की परिकल्पना और आयोजन के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और उनकी पूरी टीम की मैं सराहना करती हूं। उन्होंने इसके बाद विजिटर्स अवार्ड पाने वालों को बधाई दी और उनके कार्यों को सराहा।
लेकिन इसके बाद जो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा वह भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने वालों के लिए बहुत अहम् है। यह उन सभी भारतीय बद्धिकों के लिए अहम् है जो भारत को दुनिया में सर्वोत्कृष्ट स्थान पर देखना चाहते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि व्यक्ति, समाज और देश की प्रगति में शिक्षा का महत्व सर्वोपरि है, यह एक सर्वमान्य सत्य है। अमृत-काल के सम्पन्न होने तक, यानी वर्ष 2047 तक, भारत को विकसित राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करने के लक्ष्य को हासिल करने में उच्च शिक्षण संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रपति ने जिस मनोभाव से भारत भर से जुटे कुलपतियों, निदेशकों और बुद्धिजीवी समाज के गणमान्यों के बीच में अपनी बात स्पष्ट रूप से रखी देखा जाये तो वह भारत का भविष्य तय करने वाली है। उन्होंने एक तरह से सबके सामने चुनौती के रूप में अपनी बात को रख दिया है और वह उम्मीद भी करती हैं कि इस विशेष विजिटर्स सम्मलेन में जुटे लोग इसे गंभीरता से लेकर भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में ले जायेंगे।
हाल ही में, भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी दिल्ली विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में कहा था कि नई पीढ़ी को भविष्य के लिए तैयार होना चाहिए, चुनौतियों को स्वीकार करने और उनका सामना करने का स्वभाव होना चाहिए, यह केवल शैक्षणिक संस्थान के विजन और मिशन के माध्यम से ही संभव है। उन्होंने कहा था कि जब हम अपने जीवन में कोई लक्ष्य तय करते हैं, तो उसके लिए पहले हमें अपने मन-मस्तिष्क को तैयार करना होता है….ये शिक्षा संस्थान के विज़न और मिशन से ही संभव होता है।
भारत के प्रधान मंत्री और महामहिम राष्ट्रपति के विचारों को एक साथ यदि देखें तो विगत 15 दिन में शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों को जो मीठे शब्दों में टास्क दिया गया है और जो संभावनाओं को देखा गया है वह भारत की दशा और दिशा बदलने वाला है। इसी के साथ इस विजिटर कांफ्रेंस में राष्ट्रपतिजी के दिल्ली विश्वविद्यालय में दिए गए वक्तव्य का एक दुहराव है जो दोनों के संबोधनों को एक साथ जोड़ता है और हमें यह सन्देश देता है कि हमें शैक्षणिक विजन-पालन की एकात्मकता को आज समझने की आवश्यकता है।
विजिटर्स कांफ्रेंस में महामहिम द्रौपदी मुर्मू ने स्पष्ट रूप से अपने फरवरी में दिए गए दिल्ली विश्वविद्यालय के भाषण के अंश को उद्धृत करते हुए कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में कुछ बुनियादी सवालों का मैंने उल्लेख किया था। प्रसंग के अनुसार उन प्रश्नों को आप सबके साथ भी मैं साझा करना चाहती हूं। पहला, क्या हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों में महिलाओं के लिए स्वच्छ शौचालय पर्याप्त संख्या में तथा परिसर के विभिन्न स्थानों में उपलब्ध हैं? दूसरा, क्या हमारी लैबोरेटरीज विश्व-स्तर की हैं?
तीसरा, ग्लोबल-टैलेंट हब के रूप में अपने शिक्षण संस्थानों को आगे बढ़ाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?, चौथा सवाल उनका था कि क्या हमारा अध्ययन और शोध-कार्य, समाज, देश और विश्व की जरूरतों और चुनौतियों से जुड़ा हुआ है? उन्होंने इस क्रम में यह भी पूछा- कि क्या हम सभी कैम्पस में दिव्यांग-जनों की विशेष आवश्यकताओं के प्रति सचेत हैं? उन्होंने कहा इन बुनियादी प्रश्नों के उत्तर में, हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता, उपयोगिता और संवेदनशीलता के मानक विद्यमान हैं।
दरअसल, शैक्षणिक संस्थान अपने वार्षिक प्रगति रिपोर्ट में नानाप्रकार के दावे करते हैं। अपने होने को कुछ ज्यादा आंकते हैं पर वास्तविकता कुछ और होती है। लेकिन इन संस्थानों को यह नहीं समझना चाहिए कि राष्ट्रपति भवन या महामहिम राष्ट्रपति जी के पास आपके प्रस्तुत वार्षिक रिपोर्ट या नैक रिपोर्ट से ज्यादा ग्राउंड रियल्टी की समझ नहीं है। महामहिम राष्ट्रपति की चिंता इसलिए उन बुनियादी सवालों से जूझ रही है जिसे वह विश्वविद्यालय परिसरों और शैक्षणिक संस्थानों में ठीक होते देखना चाहती हैं।
वह चाहती हैं कि विश्वविद्यालय अपनी गुणवत्ता को पेपर्स की जगह परिसरों में सही करें। भारत में लगभग 900 विश्वविद्यालय कार्य कर रहे हैं, आईआईटी, ट्रिपल आईआईटी, एनआईटी, आइसर, नाइपर और मेडिकल संस्थानों की संख्या भी लगभग इतने ही हैं लेकिन कुछेक को छोड़कर बहुतेरे विभिन्न समस्याओं के शिकार हैं, ऐसे ही मिलेंगे।
आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के विजन प्लान से ग्लोबल नॉलेज सुपर पॉवर की श्रेणी में भारत अपना स्थान बना लेने से भारत विश्व गुरु होने का स्वप्न साकार कर सकेगा यह हम सभी जानते हैं। राष्ट्रपति जी ने इस लक्ष्य को हासिल करने में भी कांफ्रेंस में बैठे विशिष्टजनों को एक तरह से चेताया और कहा कि इस दृष्टिकोण से राष्ट्र निर्माण में आप सबका योगदान निर्णायक सिद्ध होगा। इस आह्वान और सन्देश को कितने जन अंतःकरण में उतारकर वापस हुए हैं, यह तो आने वाला समय बताएगा।
यह बात इसलिए भविष्य के परिणामों पर छोड़ने की हो रही है क्योंकि राष्ट्रपति जी ने अपने अनुभव भी इस विजिटर्स कांफ्रेंस में साझा किया और यहाँ तक कह दिया कि जिस तरह एक बड़े संयुक्त परिवार का समझदार और संवेदनशील मुखिया और वरिष्ठ सदस्य अपने परिवार के हर सदस्य की जरूरतों पर ध्यान देते हैं, उसी तरह आप सबको तथा शिक्षकों और कर्मचारियों को विद्यार्थियों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। आप सब, विद्यार्थियों के मार्गदर्शक भी हैं और अभिभावक भी।
आपका प्रयास होना चाहिए कि उच्च शिक्षण संस्थानों के परिसरों और छात्रावासों में विद्यार्थियों को अपने घर जैसा सुरक्षित और संवेदनापूर्ण वातावरण मिले। यह बात समझने वाली है कि आखिर वह क्यों इतने लम्बे अनुभवशील लोगों को अपने उत्तरदायी होने का आग्रह कर रही हैं क्योंकि सच में हमारे विश्वविद्यालय व दूसरे संस्थानों से आने वाली मीडिया में ख़बरें बहुत अच्छी नहीं हैं। आज विश्वविद्यालयों और संस्थानों को ज्यादा संवेदनशील होकर विश्वविद्यालय के वातावरण को ठीक करने की आवश्यकता महसूस हो रही है, इसलिए उन्होंने ऐसा कहा।
दरअसल, आईआईटी दिल्ली के एक 20 वर्ष के विद्यार्थी द्वारा आत्महत्या किए जाने की हृदय-विदारक घटना ने राष्ट्रपति जी को अन्दर तक दुखी किया है। उन्होंने इसीलिए कहा भी कि आत्महत्या की ऐसी दुखदाई घटनाएं और भी कई शिक्षण संस्थानों में हुई हैं। मेरी बात किसी संस्थान विशेष तक सीमित नहीं है। यह पूरे शिक्षा जगत के लिए चिंता का विषय है। विद्यार्थियों को परिसर में या छात्रावास में अथवा संस्थानों के कार्यालयों में तनाव, अपमान अथवा उपेक्षा से बचाना तथा उन्हें समझाना और सहारा देना शिक्षण संस्थानों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
फ़िलहाल, शिक्षा मंत्री की उपस्थिति में राष्ट्रपति ने यह सब बातें की है। वह सुपर नॉलेज सिस्टम डेवलप करने की बात के साथ ग्लोबल लेवल पर भारतीय प्रज्ञा के विस्तार का आह्वान करती हुई भारत के एनईपी-2020 से बेहतरीन विकसित भारत की तस्वीर देखना चाहती हैं लेकिन यह तो तभी हो पाएगा न जब हमारे देश का शिक्षा मंत्री, शिक्षा मंत्रालय, कुलपति, निदेशक और शिक्षा जगत से जुड़े लोग इस पर अमल करेंगे। विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा में शामिल होने की जिम्मेदारी हमारी है।
लक्ष्य प्राप्ति की जिम्मेदारी हमारी है। भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में ले जाने की जिम्मेदारी है किन्तु इस जिम्मेदारी को जिम्मेदार बनकर निभाने की भी जिम्मेदारी हमारी है, यदि इसे नहीं भूलेंगे तो भारत के महामहिम के सपने को हम अवश्य साकार कर सकेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।
(लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी-ओएसडी रह चुके हैं। आप केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में चेयर प्रोफेसर और अहिंसा आयोग और अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं। )